बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजा बहादुर कुशल पाल सिंह कोटला, पढ़ें कोटला रियासत का प्राचीन इतिहास।
नगर कोटला वसत है, मीन ताल के पास।
गद्दी राजा सोन की, यदुकुत करत प्रकाश।।
नैक दूर सिरसा नदी, खेरो शांतुन भूप ।
शांतेश्वर महादेव को दर्शन परम अनूप।।
कोटला जादौन रियासत का प्राचीन इतिहास-
बयाना के राजा विजयपाल के पुत्र सोनपाल की पन्द्रहवी पीड़ी में राजा तुलसी दास हुए थे जो अकबर के दरबार में तीन सौ घोड़े के मनसवदार थे। अकबर बादशाह के दक्षिण विजय में उन्होंने बावशाह की विशेष सहायता की थी और उसी के उपलक्ष में बादशाह में इन्हें राजा खिताव देते हुए नारखी कोटला का राजा स्वीकार किया था।
ऐसा प्रतीत होता है कि शाहजहाँ के अंतिम दिनों में जब दिल्ली-आगरा की गद्दी के लिए औरंगजेब और उसके भाइयों में आपस में युद्ध चल रहा था, उस समय अवसर पाकर मेवातियों ने कोटला लतीफपुर फरिहा पर कब्जा कर लिया था।
राजा तुलसी दास की छटवी पीड़ी पर राजा हरिकिशन दास हुए हैं उन्होंने कोटला, लतीफपुर, फरिहा को मेवातियों से मुक्त करा लिया। जिससे प्रसन्न होकर सम्राट औरंगजेब ने राजा हरिकिशनदास को बहादुर का खिताव देते हुए कोटला फरिहा को इनके राज्य का हिस्सा स्वीकार किया।
सन् 1784 में मराठों ने कोटला पर चढ़ाई कर दी और इस युद्ध में राजा हरिकिशन के पुत्र राजा पोप सिंह मारे गये और कोटला ग्वालियर राज्य में मिलाकर डी० वौगोना को जागीर के रूप में दे दिया गया सन् 1796 जब डी. वौगोना यूरोप चला गया तो राजा पोप सिंह के पुत्र राजा ईश्वरी सिंह ने फिर कोटला के 52 गाँवों पर अधिकार कर लिया। सन् 1804 ई0 में जब जनरल लेक ने दौलत राव सिंधिया के विरूद्ध युद्ध प्रारम्भ किया तो राजा ईश्वर सिंह ने मराठों के खिलाफ अंग्रेजों की सहायता की थी जिसमें मराठों की हार हुई थी, और फतेहगढ़ की संधि हुई थी।
इससे प्रसन्न होकर कोटला राज्य राजा ईश्वरी सिंह के अधिकार में अंग्रेजों ने रहने दिया। और कुछ लगान सालाना देने को कहा। लेकिन लगान न अदा करने के कारण अंग्रेजों ने कोटला राज्य को फिर जीत लिया, और और इस्त मुरारी पट्टे पर अवागढ़ के राजा को दे दिया।
इन्हीं उथल पुथलों से भयभीत होकर सन् 1831 में पिछला पूरा लगान अदाकर राजा सुमेर सिंह ने कोटला राज्य वापस कर लिया। आपके द्वारा निर्मित जी श्री लक्ष्मीनारायण का भव्य मन्दिर आपकी स्मृति को संजोरता है।
अंग्रेजी की भरपूर मदद की थी जिससे प्रसन्न होकर अंग्रेज सरकार ने 22811 रूपये नकद एवं 5 गाँव प्रदान किये थे। रानी मेहताव कंवर बहुत ठाठ किस्म की महिला थी। उस जमाने में वह कभी भी किसी सरकारी अधिकारी से मिलने नहीं जाती थी बल्कि अपने निवास पर बुलाती थी। एक बार अयोध्या तीर्थ यात्रा पर गयी।
तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग मछली पकड़ रहे हैं। रानी ने तुरंत वहाँ के कलक्टर को तलब किया और उन्हें बताया कि इस तरह का कृत्य हिन्दू भावना को ठेस पहुंचाता है उस दिन से अयोध्या में सरयू तट पर मछली पकड़ना वर्जित कर दिया गया। वहाँ से आकर रानी मेहताव कुवरि ने एक भव्य श्री सीताराम मंदिर का निर्माण कराया तथा आगरा में श्री नीलकण्ठ महादेव का भव्य मंदिर बनवाया तथा श्री सीताराम मंदिर के नाम 12 गाँव खर्चा के लिए प्रदान किये। आज भी यह मंदिर उनको चिरस्मर्णीय बनाये हुए है।
रियासत कालीन कोटला किला-
सन् 1884 ई. के गजेटियर में कोटला किला की रूपरेखा निम्न प्रकार है ।खाई 20 फीट चौड़ी तथा 14 फीट गहरी ऊंचाई 40 फीट/ भूमि की परिध 284 फीट उत्तर 220 फीट दक्षिण तथा 320 फीट पूर्व तथा 480 फीट पश्चिम ।
कोटला रियासत पर लली जसकंवर का अधिकार-
रानी मेहताव कंवर का देहांत सन् 1889 ई. में हुआ। तत्पश्चात उनकी पुत्री जसकंवर जो मलौसी राज्य में राजा लोक पाल सिंह को ब्याही थी का कोटला रियासत पर अधिकार हो गया। रानी जसकुवरि भी संतानहीन थी अतः अपने शौहर की रियासत अपने पति के भतीजे लाल तेजपाल सिंह को दे दी ।
कुशल पाल सिंह का जन्म एवं माता -पिता-
कुशलपाल सिंह का जन्म 15 दिसम्बर सन 1872 को जादौन राजपुत परिवार में ठाकुर उमराव सिंह के यहां हुआ था। इनकी माता जी आनन्द कुँवर मैनपुरी जनपद के चौहान राजपूत ठिकाना गढ़ी सुमेर की रहने वाली थी।
भाई - बन्धु-
राजा कुशल पाल सिंह के 4 भाई सौतेली मां से ठाकुर जोगेन्द्र पाल सिंह ,महेन्द्र पाल सिंह ,लोकेन्द्रपाल सिंह तथा भवनपाल सिंह पैदा हुए। पिता ठाकुर उमराव सिंह के कूटनीतिज्ञ प्रयासों से कुशलपाल सिंह को कोटला की रियासत मिली और वे राजा कहलाने लगे।
महेन्द्र पाल सिंह कानपुर में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट थे।कुँवर महेन्द्र पाल सिंह साहित्यक रुचि के व्यक्ति थे और उन्होंने हिन्दी मासिक " विशाल भारत " में अनेक लेख लिखे । सन 1936ई o लगभग आप झांसी के कलेक्टर भी रहे।कुँवर भवनपाल सिंह एम0 ए0(आक्सिन )ने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।आप भी तत्कालीन बलवन्त राजपूत कालेज के प्रबन्ध सिमित के सक्रिय सदस्य रहे ।
शिक्षा-
सम्भवतः सम्पूर्ण राजपूत जाति में कुशलपाल सिंह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने सन् 1892 ई० में बी0 ए 0 की उपाधि इलाहाबाद विश्व विद्यालय तथा 1893 ई0 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम० ए० तथा 1897 में एल 0एल0बी0 का प्रमाणपत्र प्राप्त किया था। आप की प्रारम्भिक शिक्षा बलवन्त राजपूत स्कूल और आगरा कॉलेज आगरा में हुई। आप अरबी, फारसी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता थे। आपकी विद्वत्ता का आदर करते हुए सरकार मे 'शमशुल उल्या" (विद्वानों में सूर्य) की उपाधि से अलंकृत किया था।
विवाह एवं रियासत की प्राप्ति-
राजा कुशलपाल सिंह का विवाह सिमी महासुदी 14 संवत 1949( 19 फरवरी 1893) को मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के कानपन्हारी सिकरवार राजपूत ठिकाना पहाड़गढ़ क्षेत्र की गोपाल कुमारी के साथ हुआ था।
कोटला रियासत की मालिक लली जसकंवर ने अपने पूर्वजों की यह रियासत अपने परिवार के लाली भाई बन्ध जाटऊ गांव के जमींदार ठाकुर उमराव सिंह के बड़े पुत्र कुशलपाल सिंह को 31 मई सन 1 905 को प्रदान कर दी ।
रानी जसकँवर ने कुशलपाल सिंह के पक्ष में जो हिबैनामा लिखा था उसके निम्नांकित शब्द कोटला राज परिवार के इतिहास पर भी प्रकाश डालते है।
रानी जस कँवर का बयान-
मेरे बाप का खानदान ठाकुर जादों का वह खानदान है जो महाराजा करौली का है ।पहले जमाने में मेरे पुरखा लोग करौली में व् करौली के आसपास में बसते थे ।वहां से उठकर अक्सर लोग उस खानदानके दूसरे मुल्कों में आ बसे ।ऐसे बसने बालों का बड़ा हिस्सा आगरा के सूबे में आकर बसा है ।इस खानदान का असली घर करौली है।
यह हिबैनाम 13 हजार रूपये मूल्य के स्टाम्प पर लिखा गया था तथा कोटला के राज परिवार के सभी सदस्य तथा संबंधी इस अवसर पर एकत्रित हुये थे ।उनसे भी ठाकुर उमराव सिंह ने दस्तबरदारी लिखबा ली थी ।रानी जस कँवर की मृत्यु सन् 1909 में हुई। इसके बाद कोटला रियासत पर ठाकुर उमराव सिंह जी और उनके बड़े बेटे राजा कुशलपाल सिंह जी का अधिकार होगया।
तत्कालीन सरकार में बड़े दायित्वों पर आसीन-
राजा कुशलपाल सिंह सन् 1905 में उ०प्र० विधान सभा के सदस्य रहे। 1909 में इम्पीरियल लेजिसलेटिब कौंसिल के सदस्य बनाये गये। सन् 1912 में राजा बहादुर की उपाधि प्राप्त हुई। 1913 में स्पेशल मजिस्ट्रेट मनोनीत किये गये। आगरा जिला बोर्ड तथा फीरोजाबाद नगरपालिका के भी अध्यक्ष पद पर रहे। इस प्रकार फीरोजाबाद क्षेत्र के यह प्रथम व्यक्ति थे, जिनको इतना सम्मान प्राप्त हुआ ।
राजा साहब यद्यपि अत्यन्त संयमी और विद्वान् व्यक्ति थे किन्तु दृष्टि से प्रतिगामी विचारधारा के होने के कारण यथायोग्य सम्मान प्राप्त नहीं कर सके ।
विभिन्न सरकारी दायित्वों का निर्वहन-
राजा कुशल पाल सिंह जी कोटला सन् 1918 में सेन्ट्रल असेंबली के पहले चुनाव में जिसमें कुल सीटों की संख्या 104 थी,संयुक्त प्रांत (यूपी) से जमींदारों की तरफ से चुने गए पहले असेंबली सदस्य थे।आप विशेष मजिस्ट्रेट ,आगरा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के उपसभापति ,फिरोजाबाद नगरपालिका के सभापति , बलवन्त राजपूत कालेज तथा आगरा कॉलेज आगरा के प्रबन्ध सिमित के सदस्य भी रहे थे।आप का कृषि क्षेत्र के उन्नयन में विशेष योगदान रहा।
सन् 1921 में उनको अपने अन्य भाइयों से मुकदमे में उलझना पड़ा, जिससे उनकी भारी आर्थिक हानि हुई। जीवन के अन्तिम काल में तो उनको घोर अर्थाभाव सहन करना पड़ा।
शिक्षा मंत्री का दायित्व-
राजा साहब सन् 1930 में पंडित गोविंदबल्लभ पन्त के मुख्यमंत्री काल में शिक्षा एवं उद्योग मंत्री उत्तर प्रदेश बनाये गये । शिक्षा क्षेत्र में अनिवार्य शिक्षा (जवरिया) उन्हीं के कार्यकाल से शुरू हुई थी। राजा साहब ने दो पुस्तक लिखी थी एक कुशलांजलि तथा अध्यापकीय कर्तव्य ।आप ने मैनपुरी तथा फिरोजाबाद क्षेत्र में गांवों में बैंक तथा कृषि के मॉडल फार्म स्थापित किये थे ।राजा साहिब ने बनारस विश्व विद्यालय के निर्माण के लिए उस समय मालवीय जी को 15000 रुपये दान में दिए थे।
स्वभाव से भोले तथा बिनम्र थे । ऐसे सभी विषय-व्यसनों से मुक्त थे, जो ताल्लुकेदारों तथा जमीदारों में प्राय: देखने को मिलते हैं। खानपान में बड़े ही संयमी थे।
परिवार-
राजा कुशलपाल सिंह बहादुर के तीन पुत्रियां भी थी जिनमें बड़ी पुत्री सुशीला देवी का विवाह रीवा राज्य के अन्तर्गत सेंगर राजपूत ठीकाना नई गढ़ी के राजा शौमेश्वर सिंह के साथ हुआ था। दो पुत्रियों कसमा देवी और चारूलता का विवाह ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत गौड़ राजपूत ठिकाना श्योपुर बड़ौदा के लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह के साथ हुआ था जिनके कोई औलाद नहीं हुई।
राजा कुशल पाल सिंह के सन 1909 में एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम कुँवर गजेन्द्र पाल सिंह था। जिसका प्रथम विवाह त्रिपुरा स्टेट के महाराजा माणिकय देव बरमन की बहिन बसंता प्रभा देवी के साथ 25 नवम्बर 1925 को हुआ था ।कुछ समय बाद उनका तलाक हो गया और 26 जून 1926 में स्विट्जरलैंड में उनका देहान्त हो गया।राजकुमार गजेंद्रपाल सिंह का द्वितीय विवाह सन 1936 में जोधपुर के कुचामन ठिकान के ठाकुर नाहर सिंह की पुत्री चैन कंवर के साथ हुआ। उसी वर्ष दिसम्बर सन् 1936 में कुंवर गजेन्द्रसिंह का देहान्त हो गया था। इस कारुणिक दुर्घटना को उन्होंने असीम धैर्य के साथ सहन किया था।
इससे राजपरिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा । राजा कुशलपाल सिंह की पत्नी गोपाल कुमारी भी कुछ समय बाद परलोक वासिनी हो गयी। ऐसी स्थित में रियासत की देखभाल का पूरा काम कारिदों के हाथ में आ गया।स्थिति ऐसी हो गई कि जहाँ थोडा सा वेतन पाने वाले कर्मचारी लखपति बनते चले गये और रियासत बर्बाद होती चलीं गयी ।यहाँ तक कर्ज में डूब गयी और एक दिन ऐसा आया कि राजा साहब के जीवनकाल में ही रियासत नीलाम हो गयी।
देहान्त-
फलतः राजा साहब को वृद्धावस्था में आगरा के सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डा० एस0 सी0 सरकार के आश्रम में रहना पड़ा। सन 1965ई0 के लगभग 95वर्ष की उम्र में राजा साहिब का डॉ0 सरकार के आगरा स्थित होम्योपैथिक अस्पताल में देहावसान हो गया।
इतिहास देखने से विदित है कि इतने साधन-सम्पन्न एवं प्रदेश में मंत्री रहते हुए भी राजा साहब ने कोई ऐसा कार्य जनहित का नहीं किया जो उन्हें चिरस्मर्णीयता प्रदान करता। शायद इसका कारण भाइयों में मुकद्दमाबाजी तथा असमय युवराज का निधन कारण रहा होगा।फीरोजाबाद की प्रगति और निर्माण में श्री राजा कुशलपाल सिंह की सेवाओं का भी योगदान स्वीकार किया जाना चाहिये ।
संदर्भ-
- Akbarnama.
- Ain-i-Akbari
- Full text of "second Supplement to Who'sWho in India (microform)brought up to 1914 .
- Who'who in India up to 1926;1937.
- District Gazetter of the United Provinces of Agra &Qudh Voll 12 .
- District Gazetter of Mainpuri .
- world Biography ,Voll.2,3page 4393.1948.
- Selected works of Pt.Govind Ballabh Pant .page 162.
- Chauhan vansh ka Samajik and Rajnaitik Itihas by Ratan Lal Vansal of Firozabad
लेखक:- डा. धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव:- लढ़ोता, सासनी, जिला हाथरस, उत्तरप्रदेश
प्राचार्य:- राजकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय सवाईमाधोपुर,राजस्थान
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