अयोध्या न्यूज़: सावन झूला मेला विशेष- मणि पर्वत के मेले के साथ रामनगरी में शुरू हुआ सावन मेला। 

Aug 7, 2024 - 16:46
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अयोध्या न्यूज़: सावन झूला मेला विशेष- मणि पर्वत के मेले के साथ रामनगरी में शुरू हुआ सावन मेला। 

  • विभिन्न मठ-मंदिरों के विग्रह शोभायात्रा के साथ पहुंचे मणि पर्वत

अयोध्या के ऐतिहासिक सावन झूला मेला के दौरान मणि पर्वत मेले से बुधवार को झूलनोत्सव की विधिवत शुरुआत हो गयी। विभिन्न मठ-मंदिरों के विग्रह शोभायात्रा के साथ मणि पर्वत पहुंच झूला झूले और इसी के साथ रामनगरी के सभी मठ-मंदिरों में झूलनोत्सव की विधिवत शुरुआत हुई। हालांकि कुछ मंदिरों में सावन माह के पहले दिन से ही झूलनोत्सव चल रहा है। श्रद्धालुओं की आमद को देखते हुए जिला व पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा सहित अन्य व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद किया गया है। 
     
गौरतलब है कि रामनगरी के ऐतिहासिक झूलनोत्सव की शुरुआत मणि पर्वत मेले से होती है। झूलनोत्सव के विधिवत आगाज के लिए विभिन्न मठ-मंदिरों से विग्रह और गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। मणि पर्वत पहुंच सभी मंदिरों के विग्रह झूला झूलते हैं और फिर वापस अपने मंदिर पहुंच झूले पर विराजमान हो जाते हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा व व्यवस्था को लेकर पुलिस प्रशासन की ओर से चाक चौबंद व्यवस्था का दावा किया गया है। एसएसपी राजकरण नय्यर ने बताया कि सावन झूला मेला और मणि पर्वत मेले को लेकर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर व्यापक इंतजाम किए गए हैं। जोन के अन्य जनपदों और मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल के साथ आरएएफ की दो कंपनियां मिली हैं। अन्य सुरक्षा एजेंसियों को भी सक्रिय किया गया है। 

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  • कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिरों से निकली रथ यात्रा

मणि पर्वत पर झूला पड़ने के साथ अयोध्या के सभी मठ-मंदिरों में राम सीता के विग्रहों को झूले पर विराजमान कराया गया। परंपरा यह है कि सैकड़ों मंदिरों से राम-सीता के विग्रह को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रथ यात्रा के माध्यम से मणि पर्वत पर लाया जाता है और यहां पर पड़ने वाले झूलों पर विराजमान कराकर झूला झुलाया जाता है। इसे देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। 

  • जनकपुर से अयोध्या पहुंचा था मणियों का उपहार

अयोध्या में झूलनोत्सव की परम्परा आदिकाल से परंपरागत रूप से मनाया जाता है। विश्व विख्यात सावन झूला महोत्सव श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीय को मणि पर्वत से प्रारंभ होता हैं। पुराणों में वर्णित है कि जब मां सीता व भगवान श्री राम का विवाह उपरांत अयोध्या पहुंचे थे तो राजा जनक ने अपनी पुत्री को उपहार स्वरूप बड़ी संख्या में मणियों को भी साथ भेजा था इन मणियों की संख्या इतनी थी कि राजमहल में नहीं रखा जाए सका है। तो राजा दशरथ ने इन सभी मणियों को अयोध्या के दक्षिण क्षेत्र स्थित विद्या कुंड के पास रखवा दिया मणियों की संख्या अधिक होने के कारण या एक पर्वत जैसा बन गया तभी से इस स्थान का नाम मणि पर्वत पड़ा।

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  • माता सीता ने माना था मायका

ऐसी मान्यता है कि जब माता सीता श्रावण मास में अपने मायके जनकपुरी न जाकर मणियों से बनी पर्वत को ही अपना मायका मानकर पंचमी मनाई और उस स्थान पर भगवान श्री राम के साथ जाकर झूला झूलती थी। तभी से इस स्थान को लेकर झूलनोत्सव परंपरा चलती आ रही है आज भी भगवान श्रीराम व माता जानकी के स्वरूपों को इस स्थान पर लाकर झूला झूल आते हैं जिसके साथ अयोध्या का झूला उत्सव की शुरुआत हो जाती है और अयोध्या के मंदिरों में भगवान को झूले पर बैठाया जाता है।

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