बुद्धेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से दूर होते हैं दुख-दर्द।
- मंदिर पर चार से पांच बुधवारों पर रुद्राभिषेक करने से मानसिक कष्टों से मिल जाती है मुक्ति।
- बुद्धेश्वर महादेव मंदिर में सोमवार नहीं बुधवार को होती है शिव पूजा
रिपोर्ट- अजय सिंह चौहान
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जहां बहुत से शिव मंदिर स्थापित है। लेकिन एक ऐसा भी शिव मंदिर है, जहां शिव जी आराधना बुधवार के दिन होती है। इस शिव मंदिर की विशेषता ही अलग है और इसके साथ ही इसकी खास बात ये भी है कि यहां शिवजी की पूजा का दिन सोमवार नहीं बल्कि बुधवार का होता है और इसे बुद्धेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
ये मंदिर लखनऊ के मोहान रोड पर स्थित है। इसकी खासियत ये भी है कि इसे भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने की थी यानि कि यह मंदिर त्रेतायुग में निर्मित है।पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण माता सीता को वन से छोड़ने जा रहे थे तब उन्हें माता सीता की सुरक्षा को लेकर चिंता होने लगी। कहा जाता है कि लक्ष्मण ने इस स्थान पर भगवान शिव का ध्यान किया।
उसके बाद भगवान भोलेनाथ प्रकट होकर लक्ष्मण को दर्शन दिए और माता सीता के विराट स्वरूप का दर्शन कराया। बताया जाता है कि जिस दिन भगवान शिव ने लक्ष्मण को दर्शन दिए थे और उस दिन बुधवार था। यही कारण है कि यहां स्थापित शिवलिंग को बुद्धेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है और तब से इनकी पूजा बुधवार के दिन ही यहां की जाने लगी है।
बता दें कि बाबा भोलेनाथ की पूजा-आराधना के लिए वैसे तो सोमवार का विशेष महत्व होता है, लेकिन बुद्धेश्वर महादेव मंदिर में बुधवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाने से मानसिक शांति मिलती है।इसका पुण्य तब और बढ़ जाता है, जब बुधवार सावन का हो। इस ऐतिहासिक मंदिर पर लगने वाला मेला भी बहुत भव्य और शानदार होता है, जहां आसपास के ग्रामीण अंचलों से सैकड़ों की संख्या में शिव भक्त दर्शन करने आते हैं।बुद्घेश्वर महादेव मंदिर में सावन के पहले बुधवार को भव्य मेला लगेगा।
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रुद्राभिषेक से लेकर आरती और भक्तों के दर्शन की व्यवस्थाएं पूरी कर ली गई हैं।महादेव प्रबंध समिति के पदाधिकारी रामशंकर राजपूत बताते हैं, कि मान्यता है कि त्रेतायुग में जब भगवान राम माता सीता को लक्ष्मण चित्रकूट छोड़ने जा रहे थे, तो रास्ते से गुजरते वक्त वह बेहद भावुक थे।विचलित मन से उन्होंने शिवशंकर को याद किया। सौभाग्य से वह दिन बुधवार था। उसी वाकये से इस मंदिर की मान्यता जुड़ी हुई है। मंदिर पर चार से पांच बुधवारों पर रुद्राभिषेक करने से मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
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भस्मासुर से बचने के लिए यहीं छुपे थे महादेव
ऐतिहासिक बुद्धेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता हैं, कि पहले यहाँ एक गुफा थी। जब भगवान शिव से वरदान पाकर भस्मासुर नामक राक्षस भगवान शिव का ही वध करना चाह रहा था। तो भगवान शिव भस्मासुर से बचने के लिए इसी गुफा में कई दिनों तक छिपे रहे थे। जिसके बाद से ही यहाँ भगवान शिव का वास माना जाता हैं। आज यहाँ भगवान शिव का विशाल मंदिर बना हुआ हैं।
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17 सौ साल से हो रहा बाबा का श्रृंगार
करीब 17 सौ साल से भगवान शिव का श्रृंगार इस मंदिर में होता है। पुजारी ने बताया कि पिछले 2 महीने से लगातार हम लोग देख रहे हैं कि भगवान हनुमान के रूप में प्रत्येक दिन श्रृंगार होने के बाद से मंदिर परिसर में वानर आता है। सबसे पहले बाबा परशुराम के दर्शन करते हैं। इसके बाद बुद्धेश्वर बाबा के दंडवत प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण करके चुपचाप वापस चले जाते हैं। पुजारी ने कहा कि जिस तरह से ये यहां पर प्रणाम करते हैं, उसको देखकर लगता है कि या किसी चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि किसी जानवर के द्वारा इस तरह से साधारण मनुष्य की तरह आराधना करना संभव नहीं है।
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हर साल होता है मेले का आयोजन
सावन में यहां हर साल बड़े पैमाने पर मेले का आयोजन होता है। रामशंकर राजपूत ने बताया कि मेले में अव्यवस्थाएं न हों, इसके लिए पुरुषों व स्त्रियों की अलग अलग लाइनों की व्यवस्था की गई है। रंग-रोगन का काम पहले ही पूरा हो चुका है।इसके अलावा मेला परिसर में 6 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और 100 वालंटियर तैनात किए गए हैं, जो भक्तों की मदद के लिए तत्पर रहेंगे।
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51 बत्तियों की भव्य आरती
सावन के पहले बुधवार पर सुबह बाबा बर्फानी का भव्य रुद्राभिषेक होता है। इसके बाद श्रृंगार व आरती कर भक्तों को प्रसाद वितरित होता है। शाम को भजन और रात 11 बजे 51 बत्तियों से भोलेनाथ की विशेष आरती होती है।आरती में हजारों शिव भक्त शामिल होते हैं।
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सीता कुंड का भी होता है पूजन
मान्यता है कि जब लक्ष्मण भगवान शिव की साधना कर रहे थे, तब माता सीता यहां पर स्थित कुंड में हाथ-पैर धोकर कुछ समय आराम किया था। तब से इस कुंड का नाम सीता कुंड पड़ गया। यहां आने वाले शिव भक्त पहले बुद्धेश्वर महादेव का दर्शन करते हैं फिर सीता कुंड का भी पूजन करते हैं।
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