कहानी : हौंसला 

Jun 24, 2024 - 17:34
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कहानी :  हौंसला 
हौंसला 

कहानी :  हौंसला 

अरे! दिव्या, कहां चली गई बेटा ?जरा बाहर आना। दिव्या के पिता उसे आवाज दे रहे थे। हर समय दिव्या पर क्रोध करने वाले उसके पापा आज उससे बड़े प्रेम व दुलार से बात कर रहे थे। आज तो उनकी खुशी का कोई अंत ही नहीं था, और हो भी कैसे? दिव्या, "राजस्थान प्रशासनिक सेवा" में पूरे राजस्थान में प्रथम स्थान पर आई थी।

परिणाम आते ही सारे रिश्तेदारों के फोन आने लग गए थे। सभी बधाइयां दे रहे थे और अभी जब अखबार वाले दिव्या का इंटरव्यू लेने आए तो उनको देखते ही आस-पड़ोस वालों की भीड़ एकत्रित  हो गई थी। मिस्टर शर्मा (दिव्या के पापा) का सीना गर्व  से और चौड़ा  हो गया था। दिव्या ने जैसे ही अपने पापा की आवाज सुनी वह अपनी मम्मी को लेकर बाहर आ गई थी। जैसे ही दिव्या बाहर आई,सभी उसे बधाई देने लगे। दिव्या ने भी एक हल्की मुस्कान के साथ सभी को धन्यवाद कहा।

मिस्टर शर्मा ने अपने घर के बाहर ही कुर्सियाँ  रखवा दी और वहीं पर अखबार वालों से इंटरव्यू लेने को कहा। दिव्या के दादाजी, चाचा जी और भाई व सभी आसपास वालों का जमावड़ा लग गया था। जो लोग हर समय दिव्या को ताने मारने में लगे रहते थे, वो सभी बड़े प्रेम से अपना हाथ दिव्या के सिर पर रखकर फोटो खिंचवाने में लगे थे।
जब दिव्या को इंटरव्यू देने के लिए  आगे आने के लिए कहा तो वह अपनी मां का हाथ पकड़ कर आगे ले आई और वही कैमरामैन के सामने बैठा दिया। सभी दिव्या और उसकी मां को देखने लगे थे।

अखबार वालों ने दिव्या को RAS में प्रथम रैंक प्राप्त करने के लिए बधाई दि और अपना इंटरव्यू प्रारंभ किया।
रिपोर्टर- "हां तो मिस दिव्या, आपनेे  "राजस्थान प्रशासनिक सेवा" में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, इसके लिए आपने किस तरह से तैयारी की? आप कितने घंटे अध्ययन करती थी? और अपनी सफलता का श्रेय आप किस देना चाहती हैं?"

 व्या को जिन प्रश्नों का इंतजार था। वही प्रश्न उसके सामने थे। क्योंकि वह पूरी दुनिया को अपनी सफलता का राज बताना चाहती थी।

 व्या- "सर्वप्रथम तो मैं, आपको बताना चाहती हूं कि मुझे यह सफलता प्रथम प्रयास में नहीं मिली। इससे पहले भी मैंने दो बार यह परीक्षा दी थी। परंतु मैं इंटरव्यू तक नहीं पहुंच सकी। कोई विद्यार्थी हो या नौकरी की तैयारी करने वाला, उसे प्रोत्साहित और हताश करने का काम उसके परिवार वाले व रिश्तेदार ही करते हैं। और यह आसपास वाले हर बात में मसाला ढूंढने का प्रयास करते रहते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। जब मैं आठवीं क्लास में थी, तभी से RAS बनने का सपना देखने लगी थी। पापा और मां ने मुझे बहुत सपोर्ट किया।

कॉलेज की पढ़ाई पूरी करते ही मैं आर ए एस की परीक्षा दी परंतु  मैंने शुरुआत में ही असफलता को देखा। जब मैं प्रथम प्रयास में सफल नहीं हुई तो मेरे परिवार वालों ने मुझे नकारा साबित कर दिया और मेरी शादी की तैयारी करने लगे। मैंने विरोध किया कि मुझे आर ए एस बनना है, तो सभी ने यही कहा कि तेरे बस का नहीं है तुम घर का काम सीखो ताकि तुम्हारी शादी करें। दादाजी अपनी जिद पर अड़े रहे। मैं अपने पापा के सामने हाथ जोड़ कर  गिड़गिड़ाने लगी  की मुझे एक मौका और दे दो। मेरे  साथ में मेरी मम्मी ने भी पापा को मनाने की बहुत कोशिश की, तब कहीं जाकर मेरे पापा ने मुझे एक मौका और दिया। मेरे दादाजी और अन्य घर वाले तो बहुत नाराज हुए पर मैं खुश थी, कि मेरे पापा और मम्मी मेरे साथ हैं।

मैंने कोचिंग की और पूरी मेहनत व  लगन से परीक्षा दी। परंतु किस्मत में कुछ और कहानी लिखी थी। और मैं इस बार इंटरव्यू में रह गई। सबने मेरा बहुत मजाक बनाया। किसी ने ताने दिए की मैडम कलेक्टर बनेगी। इतना आसान लगा?  फिर सभी हंसने लगते थे। परंतु मैं अपने आप को टूटने नहीं दिया था। मैं फिर से परीक्षा देना चाहती थी। परंतु यह सब आसान नहीं था।

अब पापा भी मेरे खिलाफ हो गए थे। दादाजी के कहने पर पापा मेरे लिए लड़का देखने लगे थे। वह मेरी जल्द से जल्द शादी करवाना चाहते थे। एक दिन में छत पर जाकर एकांत में रो रही थी। तभी एक हाथ मेरे सिर पर आया, और वह आवाज जिसने मुझे "हिम्मत दी फिर से खड़ा होने की"। "हौसला दिया ऊंची उड़ान का।" वह कोई और नहीं मेरी मां थी। मेरी मम्मी ने मेरे आंसू पोंछे, और बोली कि "आंसू बहाकर पंख  गीले करेगी, तो उड़ान कैसे भरेगी? तुझे तो अभी आसमान छूना है। मेरी मम्मी ने मुझे कहा कि तू फिर से तैयारी कर। और फॉर्म भर ,पर  किसी से कुछ ना कहना। सभी को इसी गलतफहमी में जीने दे कि तू परीक्षा नहीं दे रही है।

मैंने ऐसा ही किया मैं अब छुप कर पढ़ने लगी थी। जब परीक्षा की तारीख नजदीक आई तो मम्मी ने सभी घर वालों से कह दिया, कि दिव्या को सिलाई सीखनी है। तो इसे कुछ दिनों के लिए इसकी मौसी के पास शहर भेज देते हैं। और मुझे मेरी मौसी के पास  शहर भेज दिया गया। मेरी मम्मी ने मौसी को सब समझा दिया था। वहां शहर में मेरी मौसी ने मेरी मदद की और मैंने गुपचुप तरीके से तीसरी बार आर ए एस  की परीक्षा दि।

मेरे इंटरव्यू की तारीख नजदीक थी। मैं बहुत घबरा रही थी। तब मेरी मम्मी अपनी बीमारी का बहाना बनाकर मेरे पास आ गई थी। मेरी हिम्मत बनने के लिए। जब मैं अपनी मां को देखती हूँ,उनका मेरे प्रति विश्वास देखती हूँ,तो मैँ  दुगनी मेहनत करती थी। मेरा इंटरव्यू होने के बाद मैं और मम्मी गांव वापस आ गए थे। हमें इस बार पूरा विश्वास था कि मेरा सिलेक्शन हो जाएगा पर फिर भी हमने किसी से कुछ नहीं बताया था।

आज जब आर ए रस का परिणाम आया तब मैंने अपने पापा को बताया था। उन्होंने मुझे गले लगा लिया  था। उनकों विश्वास ही नहीं हो रहा था। लेकिन  अब जब उनके पास सभी के फोन आ रहे हैं। तो अपने आप को मेरे पापा  कहलानेे  में गर्व महसूस कर रहे हैं।

 इसलिए मैं अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को देती हूं। इन्हीं के विश्वास की जीत हुई है। इन्होंने मेरे हौंसलों  को टूटने नहीं दिया।

"दिव्या ने खड़े होकर अपनी मां को गले लगा लिया, और बधाई दि। उनको माला पहनाई और फिर उनका मुंह मीठा करवाया।

( फिर अखबार वाले दिव्या की मां की तरफ घूम गए। वो उनसे कुछ पूछना चाहते थे।)
 रिपोर्टर- (दिव्या की मां से)- "मैडम, आपने अपनी बेटी का साथ दिया। उनकी हिम्मत बनी ।तो आप सभी माता-पिता को क्या संदेश देना चाहती हैं ?"

श्रीमती शर्मा (दिव्या की मां)- "मुझे अपनी बेटी पर गर्व है। इसने मेरे विश्वास को बनाए रखा। मैं सभी माता-पिता से कहना चाहती हूं कि "आपके बच्चों को दूसरों की प्रतिक्रिया से कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। परंतु आप अपने बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं। उनको कितना समझते हैं। उन पर कितना विश्वास करते हैं। इसका उन्हें फर्क पड़ता है।"
 इसलिए मैं सभी माता-पिता से निवेदन करती हूं कि, आप अपने बच्चों को समय दीजिए। उनके दोस्त बनिए। उन पर विश्वास कीजिए और उनके सपनों  में रंग भरिए।

 "उनके हौसलों की उड़ान को पंख दीजिए। दिव्या अपनी मां के गले लग गई। सभी तालियां बजाने लगे। और दिव्या की मम्मी को बधाई देने लगे। " दिव्या की मम्मी को भी कलेक्टर  की मां बनने पर गर्व महसूस हो रहा था।


लेखिका: रतन खंगारोत (स्वरचित)

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