बलिया न्यूज़: 6 माह की बेजुबान बच्ची के सर से मां का साया उठाने के आरोपी थानाध्यक्ष के विरूद्ध क्या पुलिस अधीक्षक न्यायसंगत कार्रवाई करेगे।
Report- S.Asif Hussain zaidi
बलिया। दिल को झकझोर देने वाली घटना बलिया के सिकंदरपुर थाना से है जहां घटना के सम्बंध में थानाध्यक्ष को सम्बोधित जनपद के सिकन्दरपुर थाने में तैनात सिपाही प्रदीप कुमार सोनकर ने 27 जुलाई को पत्नी मनीषा के उपचार के लिए अवकाश के लिए आवेदन किया,आरोप है कि आवेदन को देखकर थानाध्यक्ष आग बगुला होकर सिपाही को डाट फटकार कर भगा दिया। उपचार के अभाव मे पत्नी मनीषा की तबियत अचानक गम्भीर हो गयी। आनन फान मे सिपाही प्रदीप ने बिना छुट्टी के घर चला गया और पत्नी का उपचार कराने लगा इस दौरान उसकी तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गयी कि 29 जुलाई को उसकी मौत हो गयी।
मनीषा की अचानक हुई मौत के बाद उसकी छह माह की बेजुबान बच्ची मां का सर से साया उठ गया.पीडित सिपाही ने पुलिस अधीक्षक को सम्बोधित आवेदन मे अपनी पत्नी की मौत के लिए थानाध्यक्ष सिकन्दरपुर पर आरोप लगाते हुए कहा है कि यदि उसे समय से प्रभारी निरीक्षक अवकाश दे देते तो वह अपनी पत्नी मनीषा का उपचार बेहतर ढंग सै करा लेता,लेकिन छुट्टी न मिलने और उपचार के अभाव उसकी पत्नी की अचानक मौत हो गयी और हमारी छह माह की बेजुबान बच्ची के सर मां साया हमेशा के लिए उठ गया.सिपाही की पत्नी की मौत को लेकर पुलिस कर्मियों में आक्रोश व्याप्त है.देखना यह है पीडित सिपाही को न्याय मिलता है या नहीं।
प्रदीप, का अर्थ होता है प्रकाश, या दीपक , बल्कि आसान शब्दों मे कहें तो, खु़द को जले और दुसरे को रोशनी दे। पत्नी की मृत्यु के बाद किसी भी नेक पति के लिए दुखी और असहाय महसूस करना बहुत ही स्वाभाविक है, इस छती को आसानी से भूल पाना संभव नहीं होता है। क्योंकि कोई भी इंसान मानसिक रूप से दुखी ही रहता है। न जाने कितने अच्छे कर्मों के फल स्वरुप प्रभु की कृपा से पत्नी मिलती है, शास्त्रों में लिखा है कि जिस घर में स्त्री( पत्नी बेटी और बहन) की इज्जत मान सम्मान ना हो वहां कभी लक्ष्मी निवास नहीं करती है। पत्नी न केवल एक पत्नी होती है वह एक मित्र पथ प्रदर्शक जीवन संगिनी भी होती है, जो हर दुख सुख में अपने पति के साथ रहती है। पत्नी एक पति के लिए सम्मान की तरह होती है। अपने पति का परिवार बढ़ती है बिल्कुल निस्वार्थ भाव से। पर प्रदीप कि तो संगिनी मनीषा ने तो संग ही छोड़ दिया और वो भी हमेशा के लिए।
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अब बेचारा कांस्टेबल प्रदीप सोनकर हर रोज़ खुद चलता है और अपनी 6 माह के बच्चे कि भविष्य में रोशनी भरनें को लेकर परेशान हो जाता है, पहले प्रदीप के घर में छ: माह की बच्ची के किलकारीयों से घर रोशन हो जाता था और मां तुरंत गोद में लेकर बहला लेती थी, पर अब बच्ची के रोनें की आवाज सुनकर दो आंखों में एक साथ आंसू आते हैं, एक उसे बच्ची के जिसे अब कोई गोद में लेकर बहलानें वाली मां अब इस दुनिया मे नहीं है, तो दूसरी तरफ प्रदीप सोनकर भी बार-बार अपने आंसू पूछ कर इस पीड़ा को सहन करते हुए अपना जीवन बिताने को मजबूर हैं, और अपना दुख पत्र के माध्यम से पुलिस अधीक्षक से साझा किया है। अब देखना यह है कि दुखी प्रदीप सोनकर को इंसान मिलता है ।
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