विश्व नदी दिवस:  नदियां है तो जीवन है, युगों- युगों से वर्षा तथा हिमजल को प्रवाह पथ देती रही हैं नदियां

प्राचीन काल से जीवन में नदियों का बहुत ही उपयोग रहा है विश्व की विभिन्न सभ्यताओं का उदय नदियों के किनारों से ही प्रारंभ हुआ है.

Sep 22, 2024 - 22:44
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विश्व नदी दिवस:  नदियां है तो जीवन है, युगों- युगों से वर्षा तथा हिमजल को प्रवाह पथ देती रही हैं नदियां

Pilibhit News INA.

नदी वह प्रणाली है जो युगों- युगों से वर्षा तथा हिमजल को प्रवाह पथ देती रही है इस मामले में हमारे देश का सौभाग्य है कि यहां छोटी बड़ी अनेकों नदियां है जो प्रत्येक दिशा में बहती हुई भूमि को आवश्यक जल प्रदान करती हुई सागर, झील या बड़ी नदी आदि में विलीन हो जाती है हमारे देश में नदियों एवं जल का बहुत महत्व है इसीलिए प्राचीन काल से ही स्नान करते समय   पांच प्रमुख नदियों को मंत्रोच्चार के द्वारा आमंत्रित किया जाता था। भारत में नदियों की महिमा इस श्लोक से  भी सिद्ध होती है-

गंगे च यमुने चैव,गोदावरि सरस्वती।
नर्मदा सिंधु, कावेरी,जलेअस्मिन सन्निधं कुरू।।

भारत में बहने वाली नदियों का नामकरण पौराणिक कथाओं एवं उनकी स्थिति के अनुसार हुआ है। सनातन संस्कृति में नदियों को माँ के रूप में पूजा जाता है। प्राचीन काल से जीवन में नदियों का बहुत ही उपयोग रहा है विश्व की विभिन्न सभ्यताओं का उदय नदियों के किनारों से ही प्रारंभ हुआ है, भोजन पकाना हो या रोग निवारण सदैव ही स्वच्छ जल की भूमिका प्रथम स्थान  पर रहे हैं, सदियों से हमारे ऋषि मुनि जल को जीवन की संज्ञा देते चले आ रहे हैं।

जल की हर एक बूंद जीवन दायिनी है हमको सोचना चाहिए की धरती पर जीवो की उत्पत्ति सर्वप्रथम जल में ही शुरू हुई है आज हम अपनी सुख सुविधाओं के लिए तेजी से कल कारखानों की स्थापना करते चले जा रहे हैं और इनसेे निकलने वाला दूषित पानी  हमारे जीवन को नष्ट कर रहा है इसलिए हमें चाहिए कि हम नदियों के प्रदूषित होते हुए जल को बचाएं स्वच्छता हमारे जीवन का पहला कर्तव्य है समय रहते अगर हमने नदियों के जल को प्रदूषण से नहीं बचाया तो एक दिन ऐसा आएगा कि हम सब 'जल से जीवन है'की जगह' जल ही मौत है 'की बात कहेंगे भारत की लगभग सभी नदियां प्रदूषण का शिकार हो चुकी है यह भी सत्य है कि जो नदियां देश में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

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आज उनका ही जीवन संकट में है भागीरथ ने अपने पुरखों का उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर उतार कर ना जाने कितना बड़ा उपकार हमारे ऊपर किया परंतु आज हम उसी गंगा सहित न जाने कितनी नदियों को अपवित्र कर रहे हैं अतः कहने का मतलब यह है कि अब नदियों का भाग्य इंसान के हाथों में है वह चाहे तो बड़े-बड़े सीवर लाइनों के मैल का परिवर्तन विभिन्न क्रियाओं के उपरांत रासायनिक खादों के निर्माण में कर सकता है और कारखानों से निकलने वाले कूड़ा करकट और जहरीली गैसों को विभिन्न रासायनिक विधियों द्वारा स्वच्छ करके नदियों में बहा  सकता है और नदियों के साथ साथ अपने जीवन के अस्तित्व को भी बचाया जा सकता है।

रिपोर्ट: कुँवर निर्भय सिंह, आईएनए पीलीभीत- उत्तर प्रदेश

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