एक दीया देहरी पर -लघु कथा
आज दीवाली है । हर साल घर बिजली की झालरों से सज जाता था,चहल-पहल होती थी पर इस वर्ष कुछ करने को ही दिल नहीं किया और करता भी तो कौन?
बच्चे विदेश में बस गये, इनका भी स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा ,अब मन में उत्साह भी नहीं रह गया बस परम्परा निभाने को लक्ष्मी पूजन कर एक दिया तुलसी चौरे पर रख दिया। अनमना मन लिये सोफे पर लेट गई।
तभी किसी ने कालबेल बजा दी। जाकर देखा तो एक दस -ग्यारह साल की एक बच्ची हाथ मे एक दिया और कुछ मोमबत्तियाँ लिये खड़ी थी ,
क्या चाहिए बेटा? – -मैंने उससे पूछा, हमें कुछ नहीं चाहिए, उसने उत्तर दिया, आपने हमें पहचाना नहीं दादी! आपने हमारा स्कूल में एडमीशन कराया था।
अब हर रोज स्कूल जाते हैं। आज दीवाली है न, मां ने मंदिर में दिया जलाने के लिये कहा था मुझे आपकी याद आई तो मैं पहले यहाँ चली आई,
अरे! आपने तो दिये नहीं जलाये, उसने चारो तरफ देख कर कहा। मैं कुछ बोलती इससे पहले ही मैं जला दूँ कहते हुए उसने हाथ में लिया हुआ दिया देहरी पर रख कर जला दिया और मोमबत्तियां सजाने लगी। मुझे लगा सचमुच दिवाली आ गई ,चारो ओर फुलझड़ियां छूट रही थीं ।
लेखिका: डॉ. मधु प्रधान कानपुर
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