एक्सक्लूसिव: ... न घर का न घाट का, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में किसने क्या पाया और क्या खोया, जानिये पार्टियों की चुनावी गणित...

इस बार महाराष्ट्र में कोई भी विपक्षी दल 29 सीटों तक नहीं पहुंचा है। विपक्षी में सबसे अधिक 20 सीटें उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (यूबीटी) को मिली हैं। कांग्रेस के खाते में 16 और शरद पवार की पार्टी सिर्फ 10 सीटों पर जीती है। नियमों के मुताबिक वि...

Nov 24, 2024 - 00:36
Nov 24, 2024 - 13:03
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एक्सक्लूसिव: ... न घर का न घाट का, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में किसने क्या पाया और क्या खोया,  जानिये पार्टियों की चुनावी गणित...

Reported by - Vijay laxmi singh

Maharashtra Assembly Elections 2024 Exclusive Report By INA News.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को जहां 235 सीटें अपने खाते में कर ली है, वहीं कांग्रेस गठबंधन 49 सीटों पर सिमटती हुई दिख रही है। अकेले भाजपा ने 132 सीटें जीत ली हैं, वहीं कांग्रेस को 16 सीटें मिली हैं। महाराष्ट्र में महायुति (राजग) की आंधी आई तो झारखंड में झामुमो के असर के सामने राजग की सारी रणनीति धुल गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक एक की बराबरी पर सिमट गया।

अच्छी बात रही कि जनता ने जिसे भी चुना स्पष्ट बहुमत दिया ताकि सरकार स्थायी हो। मगर हरियाणा की अचंभित जीत के एक-डेढ़ महीने के अंदर ही महाराष्ट्र जैसे बड़े और राष्ट्रीय प्रभाव डालने वाले राज्य में चौंधियाने वाली जीत को क्या माना जाए।

महाराष्ट्र की जीत का पुख्ता संकेत मिलने के तत्काल बाद महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री व संभवत: भावी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया- ''एक हैं तो सेफ हैं, मोदी है तो मुमकिन है।'' यानी 2019 के उस नारे की भी वापसी हो गई जिसने पूरे देश में लहर को पैदा किया था। उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने जिस तरह सपा की जीती हुई सीटों पर कब्जा किया है।

वह बताता है कि लोकसभा के नतीजे से भाजपा बाहर आ चुकी है। महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। विधायी नियमों के मुताबिक कुल सीटों का 10 प्रतिशत यानी 29 विधायकों वाला कोई भी दल या इससे अधिक सीटों पर विपक्षी दल विपक्ष के नेता के पद पर अपनी दावेदारी पेश कर सकता है।

मगर इस बार महाराष्ट्र में कोई भी विपक्षी दल 29 सीटों तक नहीं पहुंचा है। विपक्षी में सबसे अधिक 20 सीटें उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (यूबीटी) को मिली हैं। कांग्रेस के खाते में 16 और शरद पवार की पार्टी सिर्फ 10 सीटों पर जीती है। नियमों के मुताबिक विपक्षी दल गठबंधन के आधार पर नेता विपक्ष का पद हासिल नहीं कर सकते हैं। 1960 में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा अस्तित्व में आई।

शायद यह पहली बार है जब विधानसभा मे कोई विपक्ष का नेता नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि नव निर्वाचित महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्षी बेंचों की अग्रिम पंक्ति में डिप्टी स्पीकर के बगल वाली सीट खाली रहेगी। मौजूदा समय में कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। महाराष्ट्र में मानखुर्द शिवाजी नगर विधानसभा क्षेत्र में शिवसेना- राकांपा की लड़ाई ने समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी की जीत आसान बना दी। शिवसेना- राकांपा दोनों महायुति में शामिल हैं, लेकिन दोनों दलों ने अपने- अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया।

राकांपा से नवाब मलिक चुनाव मैदान में उतरे, वहीं शिवसेना से सुरेश पाटिल मैदान में डटे रहे। महायुति में दरार का फायदा अबू आजमी को मिला। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी हर सभा में जाति जनगणना कराने की बात करते रहे। लेकिन मराठों को ओबीसी कोटे में ही आरक्षण देने पर अपनी पार्टी का रुख स्पष्ट नहीं कर सके। जबकि भाजपा साफ कर चुकी है कि वह ओबीसी कोटे के अंतर्गत किसी को भी आरक्षण नहीं देने देगी।

प्रधानमंत्री मोदी अपनी हर सभा में ‘एक हैं, तो सेफ हैं’ कहकर विभिन्न जातियों का नाम ले - लेकर संदेश देते रहे कि कांग्रेस आपको छोटी-छोटी जातियों में बांटने का खेल खेल रही है। लेकिन कांग्रेस इसका कोई जवाब नहीं दे पाई। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण अच्छा-खासा नुकसान उठाना पड़ा था।

इस बार एक तरफ भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे ने अपने विश्वस्त साथियों के जरिए मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के साथ अच्छा तालमेल स्थापित किया, तो दूसरी तरफ भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं को जोड़ने पर ध्यान दिया। इससे महायुति मराठों का गुस्सा कम करने के साथ-साथ ओबीसी का वोट पाने में सफल रही।

महाविकास आघाड़ी की सबसे कमजोर कड़ी शिवसेना (यूबीटी) साबित हुई। इसके नेता उद्धव ठाकरे अपनी हिंदुत्व की पार्टी लाइन से बिल्कुल परे कांग्रेस की लाइन पर चलते दिखाई दिए। उनके नेता मौलानाओं के पास जाकर अपने लिए फतवा जारी करवाते दिखाई दिए। मुस्लिमों के बीच उद्धव ठाकरे की बढ़ती लोकप्रियता ने उनके प्रतिबद्ध वोट बैंक को ही उनसे दूर कर दिया। कट्टर शिवसैनिकों को उनका यह नया रूप रास नहीं आया।

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