वह सुबह उठ कर सबसे पहले ऑंगन बुहारती फिर गाय का गोबर ला कर उसमें अच्छा रंग लाने के लिये गेरू मिला कर ऑंगन लीपती। उसकी दादी कहती थीं कि गाय के गोबर से लिपे हुये ऑंगन में देवता निवास करते हैं।
उसकी जननी ने उसे सरस्वती नाम दिया था।बताया था कि मां सरस्वती विद्या की देवी हैं उनकी पूजा से ज्ञान मिलता है।उसके घर में लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज नहीं था फिर भी उसके मन में ज्ञानदायिनी के लिये आस्था थी। वह प्रतिदिन आँगन के एक कोने में फूल चढ़ा कर हाथ जोड़ कर अज्ञात से कुछ माँगती।
एक दिन स्कूल जाने वाली लड़कियों को देख कर उसने भी पिता से स्कूल जा कर पढ़ने की इच्छा जताई। पिता भी अपनी लाड़ली बेटी की बात न टाल सके। सरस्वती भी स्कूल जाने लगी किन्तु स्कूल जाने से पहले आँगन लीप कर कोने में स्थापित कल्पना -चित्र पर फूल चढ़ाना नहीं भूलती।
समय बीतता गया सरस्वती भी उत्तरोत्तर कक्षा की सीढ़ियाँ पार करती गई। शिक्षा पूरी कर एक दिन उसी स्कूल में प्रिंसिपल बन कर आ गई जहाँ से उसने शिक्षा ग्रहण करना आरम्भ किया था।
उसके प्रयासों से प्राइमरी स्कूल को इन्टकॉलेज की मान्यता भी मिल गई। आज बसन्त पँचमी थी मां सरस्वती का जन्मदिन ,आज कॉलेज प्रांगण में सरस्वती जी की भव्य प्रतिमा की स्थापना की गई।
प्रतिमा का का अनावरण कर माल्यार्पण से पहले प्रिंसिपल सरस्वती ने गाय के गोबर से लिपे ऑंगन के कोने में स्थापित काल्पनिक मूर्ति को याद कर दो फूल अर्पित कर दिये।
लेखिका: डॉ. मधु प्रधान कानपुर
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