रे पथिक! तू चिंतन कर – रश्मि सिंह
रे पथिक! तू चिंतन कर
क्यूँ आया अम्बर से अवनि पर
रे पथिक ! तू चिंतन कर
रे पथिक! तू मनन कर
क्षणभंगुर है तेरी काया क्या ये तू जान न पाया?
रे पथिक! तू मनन कर
रे पथिक! तू शमन कर
क्रोध लोभ मोह अहं का राग-द्वेष ईर्ष्या का
रे पथिक! तू शमन कर
रे पथिक! तू भजन कर
तन से मन से धन से योग ध्यान श्रवण से अपने ईश का स्मरण कर
रे पथिक! तू भजन कर
रे पथिक! तू नमन कर
वीर शहीद सपूतों को रण छोरों की बलिदानी को जो मर मिट गए मातृभूमि पर
रे पथिक! तू नमन कर
रे पथिक ! तू गमन कर
ज्योतिपुंज से अनंत की ओर अशांत जग से परमशांति की ओर उस सत्ता से आत्मसात कर
रे पथिक! तू गमन कर
रे पथिक! तू चिंतन मनन कर
नमन कर, गमन कर अकर्मण्य सा खड़ा है क्यों?
कुछ तो कर, कुछ भी कर
नाम: | श्रीमती रश्मि सिंह (रश्मि पुंजिका) |
जन्म तिथि: | 13 दिसंबर |
शिक्षा: | एम.ए(राजनीति शास्त्र) लखनऊ विश्वविद्यालय |
सम्प्रति: | होम मेकर |
निवास: | लखनऊ |
प्रकाशित कृतियां।
एमेजॉन पर दो बुक। “उत्ताल तरंगे” के नाम से अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ सोशल मीडिया के विविध चैनल पर लगभग १०० से भी अधिक रचनाएं प्रसारित उत्कृष्ट लेखनी, काव्यपाठ के लिए ऑनलाइन प्रशस्ति पत्र वर्ष एम 2022-23 में