सवाल एक छोटा सा था
सवाल एक छोटा सा था
बवाल इतना क्यों मचा दिया?
तुम्हारे घर को अपना बनाया
उसे पावन मंदिर सा सजाया।
थोड़ा सा प्रेम और सम्मान ही तो मांगा था
फिर क्यों इतना रुला दिया?
कर्तव्यों की डोर में बंधी थी
बहुत संयमित और सधी थी।
थोड़ा सा अधिकार ही तो चाहा था, फिर
घर को सिर पर क्यों उठा लिया?
सपनों की गठरी बांधकर रख दी थी,
घर के किसी कोने में
आज अचानक उसे खोला
सपनों को टटोला और उन्हें
साकार करने को देहरी क्या लांघी
चरित्रहीनता का दोष ही लगा दिया?
आज सपनों को पंख लगा उन्मुक्त आकाश में उड़ रही हूं
सम्मान और सफ़लता का जीवन जी रही हूं
तो तुमने मेरी सफ़लता को खिल्ली में उड़ा दिया।
सवाल आज भी छोटा सा है
लगता है कोई धोखा सा है।
फिर भी पूछती हूं मैं
क्या मैं केवल भोग्या हूं?
क्या मैं तुमसे कमतर हूं?
जो मुझे सम्मान से जीने का अधिकार नहीं
क्या एक स्त्री की नियति में आत्मसम्मान और प्यार नहीं?
आज समूचे समाज से कहती हूं
मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस
आत्म मंथन कर मेरे
इस छोटे से सवाल का उत्तर दीजिए।
एक छोटे से सवाल का।
स्वरचित रचना- डॉ सुनीता चौहान।
Final Word – INA News
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