विशेष लेख। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ विकल्प की खोज एक जागृत समाज की पहचान, निमित्त कौन है?
वस्तुतः होता तो ऐसा ही है कि लोग जब यह बोलते हैं तो 'हम' पर ही जोर होता है। निमित्त कौन है? निमित्त 'हम' हैं, कोई दूसरा नहीं है....
लेखक- संजय सिंह
अपनी महानता के प्रदर्शन के लिए जब कोई यह कहता है कि हम तो निमित्त मात्र हैं, तब यह आत्म-विश्लेषण का विषय होता है कि 'हम' पर अधिक जोर दिया गया है या 'निमित्त' पर। वस्तुतः होता तो ऐसा ही है कि लोग जब यह बोलते हैं तो 'हम' पर ही जोर होता है। निमित्त कौन है? निमित्त 'हम' हैं, कोई दूसरा नहीं है। चेतना के धरातल और बाणी के धरातल में बड़ा अंतर होता है।
जब यह भाव प्रबल हो जाता है कि ईश्वर ने केवल हमें ही निमित्त बनाया है और सब कार्य हमसे ही कराना चाहता है तब अनर्थ का प्रारम्भ होता है। फिर यह भय उत्पन्न होता है कि कहीं कोई अन्य कार्य न कर ले, इसलिए हर सक्षम, योग्य और सामर्थ्यशाली व्यक्ति को किनारे लगाने का प्रयास किया जाता है।
अपने पक्ष के व्यक्तियों की अपेक्षा दूसरे विरोधी पक्ष के व्यक्ति इसलिए अच्छे लगते हैं, क्योंकि सब कुछ होने के बाद भी उनके ऊपर कभी विरोधी होने का धब्बा तो लगा ही रहेगा और वे चाहे जितने बदल जाएं लेकिन उनके पूर्व विरोधी संस्कार कभी भी पक्ष में हमसे आगे बढ़कर चुनौती नहीं दे सकते।
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सदैव एक ऐसा वातावरण बनाना कि हमारी समालोचन विरोधी की पक्षधरता है, इसलिए कोई समालोचना होनी ही नहीं चाहिए। समालोचना विरोधी की पक्षधरता नहीं होती, बल्कि समस्या के समाधान के लिए अपने अंदर से ही श्रेष्ठ विकल्पों की खोज भी होती है। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ विकल्प की खोज एक जागृत समाज की पहचान होती है।
जिसका बल निमित्त भाव पर अधिक होता है वह कभी भी अपनी अनिवार्यता को सिद्ध करने का प्रयास नहीं करता। वह भी अपने से श्रेष्ठ विकल्प की खोज का सहगामी होता है। यदि मन में कोई श्रेष्ठ संकल्प है तो उसकी सिद्धि के लिए श्रेष्ठ विकल्प की खोज भी अनिवार्य होती है, लेकिन जब 'हम' भाव प्रभावी होता है तो सिद्धि की नहीं प्रसिद्धि की चिन्ता होती है।
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