Emotional Hindi Story: कर्म का फल
पूरे घर में कोहराम मचा हुआ था। कोई अपने बेटे के लिए, तो कोई अपने भाई के लिए रो रहा था। पर दो मासूम बच्चे अपने पिता के लिए बिलख रहे थे। एक पत्नी बार-बार बेहोश हो रही थी।
- पर इन सब के बीच माया पत्थर के जैसे बैठी थी।
इस घर का इकलौता बेटा आज सभी को छोड़कर हमेशा के लिए ईश्वर के पास चला गया था। ईश्वर के पास पहुंचा या नहीं, यह तो उसके कर्म ही जाने, पर अपने परिवार को तड़पता छोड़कर वह जा चुका था।
- माया के आंख में तो एक भी आंसू नहीं था और होता भी कैसे?
- 20 वर्ष हो गए बहाते बहाते अब तो उसकी आंखें भी सूख गई, तो आंसू कहां से आएंगे?
माया और मैं एक ही गांव की थी। मैं, माया से 2 वर्ष पहले इस गांव में बहु बन कर आई थी। मेरा सुख और आराम देखकर, माया के पिता ने भी माया का रिश्ता इसी गांव में करने की इच्छा जाहिर की थी।
माया के पिताजी को मेरे ही पड़ौस के अनिल चाचा जी का इकलौता बेटा राज पसंद आया। मुझे इस गांव में ज्यादा समय नहीं हुआ था, तो मैं राज के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। हां, पर उसकी मां और बहन से मेरी अच्छी जान पहचान थी।
माया अपने घर परिवार में चार भाई- बहनों में सबसे बड़ी थी। बहुत ही समझदार और हर काम में निपूर्ण। अगर कोई कमी थी, तो यही कि वह रंग की सांवली थी।
अनिल चाचा जी को भी राज के लिए माया पसंद थी। माया के पिता ने बहुत ही धूमधाम से माया और राज का विवाह किया था।
मैं भी माया की शादी में शामिल होने के लिए अपने गांव आई हुई थी।
- माया भी और लड़कियों की तरह अनेक सपने लिए राज के साथ,सात फेरे लेकर अपने ससुराल आ गई थी।
गृह प्रवेश तक तो सब कुछ अच्छे से चल रहा था। राज भी खुश नजर आ रहा था। या यूं कहें की खुश होने का दिखावा कर रहा था।
पर जैसे ही आस- पड़ोस के लोग और मेहमान विदा हुए राज ने अपने फैसले से सबको चौका दिया था।
राज ने अपने मम्मी- पापा को बुलाया और कहां की, आपके कहने पर मैंने माया से शादी कर ली है, पर मैं इसे अपनी पत्नी नहीं मान सकता।
यह आपकी बहू बनकर इस घर में रहे, पर मेरे से कोई उम्मीद ना रखें। चाचा- चाची बहुत गुस्सा हुए पर राज ने अपना फैसला नहीं बदला।
माया तो इस सबके बीच में बूत बनकर बैठी अपनी किस्मत पर रो रही थी। वह तो अपनी तकदीर में अपनी गलती ढूंढ रही थी।
राज को बहुत मनाया गया, पर उस पर किसी बात का कोई असर नहीं हुआ था।
राज की बड़ी बहन ने कारण जानना चाहा तो, वह केवल इतना ही बोला कि, मैंने केवल पापा की बात रखने के लिए माया से शादी की है, वरना मुझे तो यह लड़की बिल्कुल पसंद नहीं थी।
माया की आंखों के आगे तो अंधेरा ही छा गया। ऊपर से माया के सास- ससुर उसके पास आकर हाथ जोड़कर इस बात को किसी से ना कहने का निवेदन करने लगे।
माया ने भी वचन दे दिया कि, वह किसी से कुछ नहीं कहेगीे। माया पगफेरे की रस्म करके अपने घर वापस आ गई। पर किसी से कुछ नहीं कहा, न ही अपने मायके मे और न ही मुझे, माया और राज एक ही घर में अजनबियों की तरह रहने लगे थे। माया अपनी किस्मत पर रोती रहती थी, और राज उसको देखा भी नहीं था।
जब माया और राज की शादी को सात वर्ष हो गये, तब माया के बच्चे ना होने का कारण बता कर राज अपनी पसंद की लड़की से शादी करके घर ले आया। वह भी कोर्ट मैरिज।
मुझे बहुत बुरा लगा तो माया को कोसने लगी। उस दिन पहली बार माया का दर्द मेरे सामने छलका। मेरे गले लग कर बहुत रोई, सात साल का जमा हुआ दर्द आज पिघल गया।
मुझे माया पर बहुत गुस्सा आया कि तुमने यह सब क्यों बर्दाश्त किया, और मुझे भी भनक तक नहीं लगने दी। उस दिन मैंने माया के सास- ससुर से भी सवाल- जवाब किया, कि उन्होंने यह सब क्यों होने दिया?
- इतना भी पुत्र मोह किस मतलब का जो एक मासूम महिला की जिंदगी बर्बाद कर दे।
आप कैसे इंसान हो? आप लोगों ने एक भोली- भाली महिला को इतनी तकलीफ देकर उस पर बांझ होने का झूठा कलंक भी लगा दिया।
- ताकि समाज और रिश्तेदारों के बीच में आपकी यह झूठी शान बनी रहे।
माया के लिए मेरा दुख और दर्द दोनों ही अपने चरम पर थे। मैंने भी चाचा- चाचा को कह दिया कि, आपको अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा।
जिस पुत्र मोह में आपने किसी की बेटी का जीवन बर्बाद किया है। वह पुत्र भी आपका नहीं रहेगा। माया ने मुझसे, किसी को कुछ नहीं बताने का वचन ले लिया।
मैं तो माया से वादा करके अपने घर आ गई, पर माया के की आखिरी उम्मीद भी टूट गई थी। माया टूट कर बिखर गई थी। उस दिन माया रो-रोकर जो पत्थर के जैसी बन गई थी वह आज तक वैसे ही थी।
माया को लेने उसके मायके वाले आए थे, पर उसने वहां जाने से इनकार कर दिया। समय तो अपनी रफ्तार से चल रहा था। कुछ दिन बाद पता चला कि राज अपनी पत्नी को लेकर शहर चला गया, और वहीं पर बस गया।
कर्मों का फल देखिए, कि चाची जी को लकवा आ गया।
अब वे बोलने में भी असमर्थ थी। चलने में थोड़ी दिक्कत होती थी, पर अपना काम कर लेती थी। राज और उसकी पत्नी आए थे, परंतु एक-दो दिन रुक कर चले गए थे।
माया अपनी जिंदगी को घसिट रही थी। कि इसी बीच चाचा जी का एक्सीडेंट हो गया और उन्होने एक पाव हमेशा के लिए खो दिया था। अब वैशाखी ही उनका साहारा थी।
इस बार राज और उनकी पत्नी एक माह के लिए रुके थे। परंतु माया के लिए वो अजनबी ही रहे। राज और उसकी पत्नी वापस चले गए थे। और चाचा व चाची जी रोते ही रह गए थे।
अब तो उनको हर घटना के बाद अपने गुनाह की तारीख याद आती थी, कि उस दिन उन्होंने राज को दो-चार चांटे क्यों नहीं मारे? क्यों उन्होंने राज का फैसला माना?
समय के साथ राज और शीला के दो बच्चे भी हो गए थे। पर राज ने कभी भी माया की तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा था। माया चाहती तो राज के खिलाफ कानून का साहारा ले सकती थी।
परन्तु उसने अपने सास ससुर को जो वचन दिया था, बस उसे ही जीवन पर्यंत निभाती रही। मैंने भी उसे बहुत समझाया था, परंतु उसका एक ही जवाब था कि शायद,यह उसके पिछले जन्मों के कर्मों का फल है। जो उसे भोगना ही पड़ेगा।
आज सुबह ही पता चला कि, राज अपनी गाड़ी से किसी काम से अकेला ही दिल्ली जा रहा था। हाईवे पर तेज रफ्तार में गाड़ी चल रही थी, और अचानक चलती गाड़ी में ही आग लग गई थी, जिससे राज गाड़ी में ही जिंदा जल गया।
उसे सम्भलने का भी अवसर नही मिला और न ही कोई उसकी मदद कर पाया। वह बहुत चिल्ला रहा था की, कोई उसे बचा ले, परंतु आग इतनी भयंकर थी की लोगों को उसके पास जाने मे भी डर लग रहा था।
उसकी हालत बहुत खराब थी। वह तडप रहा था, वह जीना चाहता था। परंतु उसने भी किसी से जीने का अधिकार छीना था। उसको बहुत ही दर्दनाक मौत नसीब हुई थी।
परिवार वाले उसको देख भी ना सके। उन्हें तो केवल राख मिली। यह कैसा अंत हुआ उसकी जिंदगी का पर यह भी उसके अपने कर्म थे।
उसने जीवन भर माया को उसकी खुशियों से दूर रखा और आज उसके ही कर्मों ने उसे अपने ही घर परिवार से दूर कर दिया। सब लोग पत्थर बनी माया को देख रहे थे।
मुझसे उनकी प्रश्न चिन्ह वाली निगाहें सहन नहीं हुई तो, मैं माया को उसके कमरे में ले गई। अक्सर किसी की मौत पर जो क्रिया-कर्म होते हैं, वह सारे तो नहीं हुए पर कुछ तो राज की मौत पर भी हुए।
अचानक सब कुछ हो जाने के कारण ज्यादा रिश्तेदार नहीं आ पाए थे। पर तेरहवी के दिन एक छोटी पूजा जरूर रखी गई थी। बाकी की रस्मों के लिए जब राज की पत्नी को ले जाया जा रहा था, तो चाची जी ने माया को लाने का इशारा किया।
पर आज मेरे सब्र का बांध टूट गया। मैंने चाची जी से साफ कह दिया की, माया कोई रस्म नहीं करेगी। राज ने कौन सा पति होने का फर्ज निभाया था? जो आज माया पत्नी का फर्ज निभाएगी?
चाची जी और चाचा जी के पास कोई जवाब नहीं था, पर उनके आंसू उनके कर्मों का हिसाब लगा रहे थे।

नाम | रतन खंगारोत |
शिक्षा: | M.A. B.Ed राजनीति विज्ञान |
पता: | जयपुर, राजस्थान |
साझा काव्य संग्रह | सरफिरे परिंदे |
WordPress पर साईट है जँहा मेरे लेख प्रकाशित करती हूँ। कई पत्रिकाओं में लेख व कहानी प्रकाशित। |
प्रदेश उपाध्यक्ष राजस्थान अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा 1897 |
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Final Word – INA News “”
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Amezing story!!
Such valuable feedback. Thanks for your time.
ये जीवन का वो शाश्वत सत्य हे जिसे जानते सभी हे परंतु मानते नहीं या आपकी इस कहानी में इसे जिस सरलता के साथ दिखाया गया हे यहां काबिले तारीफ हे मैम बोहोत बढ़िया
जीवन का हर पल हमें ईश्वर के होने का अहसास दिलाता है। फिर हम ये क्यूँ भूल जाते हैं कि जिसने हमें बनाया हैं, उसकी नजर हम पर हर क्षण रहती है। हमारे हर अच्छे-बुरे का आंकलन भगवान स्वंय करते हैं।
इन्हीं अच्छे-बुरे कर्मों का फल देती मेरी कहानी- *कर्म का फल*
Very well written. Wish you good luck.