ठाकुर तिलकधारी सिंह जौनपुर- महान कर्मयोगी एवं शिक्षा के उन्नायक की गौरवगाथा
भारत वर्ष सदैव से दिव्य-विभूतियों की जन्म स्थली रहा है। समय -समय पर इस पावन पवित्र देव भूमि भारतभूमि पर अनेक ऐसे नर- रत्न जन्मे हैं जिन्होंने निज उदात्त लोक -कल्याणकारी कार्यों द्वारा त्रस्त मानव का संत्राण करके उसे सुखी और संपन्न बनाया। आधुनिक नव -भारत के निर्माण में ऐसे ही दिव्य रत्नों का हाथ है जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से नवीन चेतना उत्पन्न की।
उन्नीसवीं शताब्दी में बाद के50 वर्षों में भारतीय जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य और पुनर्जागरण की लहर दिखाई दी ।जागृति के दौर में सुधारकों द्वारा समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन किया जारहा था और विकास शील शक्तियां देश को प्रगति की राह पर ले जाने के लिए एक जुट होती दिखाई देरही थी ।देश में नये जीवन का स्पंदन दिखाई दे रहा था और जागृति की लहर से कोई भी सम्प्रदाय अछूता नजर नहीं आ रहा था।
क्षत्रिय समुदाय अपने गौरवशाली अतीत को भूल चुका था और सामान्य पतन का दंश झेल रहा था।शैक्षिक दृष्टिकोण से वह काफी पिछड़ा हुआ नजर आ रहा था ।कुछ क्षत्रिय महानुभाव अपने क्षत्रिय समुदाय की पिछड़ी हुई स्थिति को देख कर व्यथित थे और साथ ही उन्होंने यह अनुभव किया कि राजपूत समाज को यदि देश की राजनीति में एक उपयोगी सदस्य के रूप में पुनर्जीवित करना है तो अपने गौरवशाली अतीत को पुनः प्राप्त करना होगा।
जिससे देश के विकास में अच्छी तरह से कोई योगदान दिया जा सके और अपनी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके उसके लिए अपने राजपूत बच्चों को शिक्षित करना होगा जिसके बिना कुछ भी सम्भव नहीं होगा ।उस काल के अधिकांश राजा -रईस प्रायः लोकहितकारी कार्यों से विमुख होकर अपने वैभव जन्य विलासिता पूर्ण जीवन यापन के अभ्यस्त थे ।इतिहास इसका साक्षी है ।ऐसे लोगों के पास लोकहितकारी सामाजिक उत्थान एवं विकास के कार्यों के लिए समय और पैसा न था और नहीं थी उनकी इच्छाशक्ति।
उन्नीसवीं सदी में स्वतंत्रता केअनेकों अमर शहीदों की जन्मस्थली एवं कर्मस्थली पूर्वांचल (उत्तरप्रदेश) के जौनपुर जिले में जन्मे एक महान सोच के महान व्यक्तित्व ठाकुर तिलकधारी सिंह जी जिनका भी क्षत्रिय समाज के सामाजिक उत्थान एवं शैक्षणिक विकास मे महान योगदान रहा है। ठाकुर तिलकधारी सिंह जी में कैसे जागा क्षत्रियों के सामाजिक उत्थान एवं शैक्षणिक विकास करने का जज्बा पढ़ें उनका जीवन परिचय और लें उनसे प्रेरणा।
जन्मभूमि एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि
ठाकुर तिलकधारी सिंह का जन्म ,भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा महान क्रांतिकारियों (माता बादल सिंह चौहान ,राजा अमरसिंह ,ठाकुर संग्राम सिंह ठिकाना निवेधीया) की पावन पवित्र वीर प्रसूता भूमि पूर्वांचल के जौनपुर जिले की सदर तहसील के सरकोनी ब्लॉक के कुद्दुपुर नामक गाँव में एक मध्यम वर्गीय सामान्य सेनवार क्षत्रिय (सोलंकी )परिवार में 29 फरवरी सन्1872 को ठाकुर भगवान सिंह जी के यहां हुआ था।ये 2 भाई थे ।इनके छोटे भाई ठाकुर लक्षमण सिंह जी थे ।
शिक्षा
ठाकुर तिलकधारी सिंह जी को सामान्य परिवार के होते हुए भी जौनपुर जिले के क्षत्रिय समाज में प्रथम स्नातक होने का गौरव प्राप्त था। उनकी प्राइमरी शिक्षा जौनपुर नगर में हुई तथा कुछ रायबरेली के सेमरी कस्वे में हुई।इन्होंने सन्1894 में लखनऊ विश्व विद्यालय के कैनिंग कॉलेज से स्नातक (ग्रेजुएट)की उपाधि प्राप्त की थी उस जमाने में लखनऊ का कैनिंग कॉलेज बहुत बड़े स्तर के ख्याति प्राप्त कॉलेजों में गिना जाता था।
इसके बाद उन्होंने 1895 ई0 में वकालत (लॉ) में दाखिला ले लिया लेकिन किस्मत ने इनका साथ नही दिया और उसी समय इनके पिता जी का आकस्मिक निधन हो गया और दुर्भाग्यवस इनको पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी ।परिवार में बड़े होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी इनके कंधों पर आगयी लेकिन हिम्मत नही हारी ।
कन्नोज की तिरवा एस्टेट के बने मैनेजर
कन्नौज के तिरवा एस्टेट के राजा साहिब के आग्रह पर तिलकधारी सिंह जी ने उनके राज्य में मैनेजर का दायित्व संभाल लिया ।बहुत समय तक उनके यहां कार्य करने के कारण उनकी कई राजपरिवारों से अच्छे संबंध थे ।
कैसे आई ठाकुर तिलकधारी सिंह जी में समाज सेवा की प्रेरणा
एक बार वे कन्नौज की तिरवा एस्टेट से अपने गांव कुद्दुपुर पधारे ।एक सामान्य घटना ने उन्हें समाज सेवा की तरफ इस तरह अग्रसर कर दिया कि फिर उन्होंने कभी अपने जीवन में पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।ऐसा कहा जाता है कि जब वे अपने गांव आये थे तो गांव के किसी होनहार बच्चे के दाखिला के लिए जौनपुर नगरके सिंगरामऊ में स्थित एक मिशनरी स्कूल में गये।
स्कूल के प्रधानाचार्य महोदय क्रिसियन थे। उन्होंने बच्चे को दाखिल देने से इनकार कर दिया । दोनों के बीच काफी कहासुनी हो गयी ।प्रिंसिपल ने उन्हें ये उलाहना भी दे दिया कि इतने बड़े परोपकारी हो तो अपना स्वयं का स्कूल खोल कर समाज सेवा करो।बस फिर क्या था ठाकुर साहिब का खून खौल गया और उस घटना ने उनका मन झकझोर दिया।
काफी चिंतन व मंथन करने के बाद उन्होंने उसी दिन स्कूल खोलने की प्रतिज्ञा कर ली और समाज सेवा करने का मन में द्रण संकल्प कर लिया और लग गए उस पुनीत कार्य की योजना को मूर्तरूप देने में।उनके पास धन का अभाव था जिसके लिये क्षेत्रीय क्षत्रियों का भी उन्होंने आर्थिक सहयोग लिया।उस समय शिक्षण संस्थानों की जिले में कमी थी ।
सन् 1914 में कीअंग्रेजी मिडिल स्कूल की स्थापना
उसी घटना की प्रतिक्रिया में ठाकुर तिलकधारी सिंह जी ने 1914ई0 में उसी वर्ष एक अंग्रेजी मिडिल स्कूल का शुभारम्भ किया जो जो सर्व जन सुखाय ,सर्वजन हिताय के दर्शन पर आधारित रहा ।संकीर्णता से तो उनका बिल्कुल भी सम्बन्ध नहीं था ।
महान व्यक्तित्व एवं प्रतिभा के धनी
ठाकुर साहिब अत्यधिक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे।वे एक प्रभावशाली ओजस्वी बक्ता थे और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने की उनमे एक अदभुत क्षमता थी ।इसी बजह से एक से एक बढ़कर महानुभावों का उन्हें सहयोग प्राप्त था।वे जौनपुर के कुछ जाने माने वकीलों के संपर्क में आये तथा समाज के गरीबों व उपेक्षित साधन विहीन लोगों की मदद करने लगे ।प्रभावशाली एवं मानव कल्याण के प्रति समर्पित महानुभावों से उनका विशेष संपर्क रहा ।वे कन्नौज की तिरवा रियायत के प्रबंधक पद पर रहने के कारण उनका सम्पर्क अनेकों राजाओं ,महाराजाओं व राजकुमारों से रहा।
राजा सर रामपाल सिंह जी, कर्री,सुडौली के कर कमलों से कराया क्षत्रिय हाई स्कूल का शिलान्यास
सन् 1916 में अंग्रेजी मिडिल स्कूल को ठाकुर सहिब के प्रयासों से क्षत्रिय हाई स्कूल के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई थी।
राजपरिवारों के संपर्क में रहने के कारण सर राजा रामपाल सिंह जी ,कर्री ,सुडौली के वे विशेष कृपा पात्र थे।उन्ही के कर कमलों से ठाकुर तिलकधारी सिंह जी ने “क्षत्रिय हाई स्कूल ” के भव्य भवन का शिलान्यास 1924 ई0 में करवाया।
राजा रामपाल सिंह जी के प्रभाव से तिलकधारी सिंह जी, बलरामपुर के राजा साहिब से उस समय 25000रुपये की सहयोग राशि प्राप्त करने में सफल रहे ।इस लिए कॉलेज का ऐतिहासिक “बलरामपुरहाल”उन्हीं के सम्मान में निर्मित किया गया है। शिक्षण संस्था को विकास के पथ पर छोड़ कर 25 जून 1929 को 57 वर्ष की आयु में ये महान शिक्षा का पुजारी ,कर्मयोगी व्यक्तित्व इस दुनिया को अलविदा कह कर चल वसा जिसको पूर्वांचल के लोग चिरकाल तक स्मरण करेंगे।इनके कोई पुत्र नहीं था ।
स्वतंत्रता सेनानियों के साथ सहयोग
ठाकुर तिलकधारी सिंह जी का जौनपुर के स्वतंत्रता संग्राम सैनानी राजा अमर सिंह जी के साथ विशेष योगदान रहा था ।
तिलकधारी सिंह के नाम पर पड़ा महाविद्यालय का नाम तिलकधारी महाविद्यालय जौनपुर——-
1914 ई0 में ठाकुर तिलकधारी सिंह जी द्वारा स्थापित अंग्रेजी मिडिल स्कूल वनाम क्षत्रिय हाई स्कूल (1924ई0) का नाम उनके देहावसान के बाद (1929ई0)तिलकधारी स्कूल हुआ ।
ठाकुर लक्षमण सिंह जी का कॉलेज विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान
ठाकुर तिलकधारी सिंह जी की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई ठाकुर लक्षमण सिंह जी ने कॉलेज के विकास को क्षेत्रीय राजाओं और क्षत्रिय जमींदारों से आर्थिक मदद लेकर अपने बड़े भाई के स्वपन को पूरा करने का श्रेय प्राप्त किया ।कॉलेज को प्रगति की ओर अग्रसर रखा ।
ठाकुर लक्षमण सिंह जी ने कॉलेज के विकास में उसी समर्पण व लगन के भाव से काम किया जैसा कि राजा बलवन्त सिंह महाविद्यालय ,आगरा के विकास में राजा बलवन्त सिंह जी की मृत्यु के बाद उनके छोटे पुत्र श्रधेय स्वर्गीय राव कृष्णपाल सिंह जी ने किया ।
उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहते हुए इस टी0 डी 0 संस्था को 1940 में इंटरमीडिएट की मान्यता प्राप्त हो गई ।जुलाई 1947 को इस कॉलेज को डिग्री कॉलेज की मान्यता मिलीऔर इस कॉलेज को आगरा विश्व विद्यालय आगरा से सम्बंधित(affiliated)कर दिया गया। बाद में 1956ई0 में इस कॉलेज को गोरखपुर विश्व विद्यालय से सम्बन्ध किया गया था।
स्वर्गीय ह्र्दयनारायन सिंह जी(पूर्व प्राचार्य) थे तिलकधारी कॉलेज का वास्तविक वास्तुकार
1941 के लगभग मिर्जापुर जनपद के रहने वाले श्री ह्र्दयनारायन सिंह जी (M .L .C) इस संस्था के प्राचार्य बने ।उन्ही के नेतृत्व में सन् 1970 में तमाम वधाओं के वावजूद इस महाविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षाएं प्रारम्भ करने की स्वीकृति प्राप्त हुई।
महाविद्यालय के इतिहास में ये एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण घटना है क्यों कि उस समय कॉलेज गोरखपुर विश्व विद्यालय से सम्बन्ध था तथा कॉलेज में स्नातकोत्तर कक्षाएं प्रारम्भ करने पर प्रतिबंध था।यह प्रतिबंध समाप्त करा पाना स्वर्गीय ह्र्दयनारायन सिंह जी जैसे प्रभावी व्यक्तित्व के लिए ही सम्भव था ।पूर्वांचल विश्व विद्यालय की अवधारणा भी उन्ही के नेतृत्व में प्रकाश में आई थी ।
तिलकधारी महाविद्यालय के वास्तुकार के रूप में उनका जुड़ाव इतना अधिक था कि वो टी0 डी0 कालेज के पर्याय माने जाते थे ।उनके विना कॉलेज की कल्पना और कॉलेज को उनके प्राचार्य के रूप में परिकल्पना असम्भव प्रतीत होती है ।इतने लम्बे समय तक कॉलेज के प्राचार्य पद पर रहते हुये उन्होंने कॉलेज को जिस प्रकार हर क्षेत्र में नई ऊंचाइयां छूने में सहयोग दिया उसका साक्ष्य तो वे सभी व्यक्ति देते है।
जिन्होंने उनके कुशल निर्देशन में कार्य किया ।आज के प्रचार्यों से इस तरह की आशा करना शिक्षण संस्था के प्रति अथाह लगाव सम्भव सी नहीं प्रतीत होती है ।कालान्तर मे टी0 डी0 कॉलेज औऱ एच 0 एन 0 एस0 (H. N Singh,former principal,T D College) समानार्थक शब्द माना जाने लगा।
ह्रदय नारायण सिंह जी ने जौनपुर को ही अपनी कर्मभूमि माना और इस कॉलेज को विकसित करने में उन्होंने भी वही भूमिका निभाई जो राजा बलवन्त सिंह कॉलेज आगरा को विकसित करने में उनके पड़ोसी जनपद वाराणसी के पालीवारपुर गांव के रहने वाले महान दार्शनिक शिक्षाविद कॉलेज के पूर्व प्राचार्य स्वर्गीय डा0 रामकरन सिंह जी ने निभाई।उन्ही की भांति ह्र्दयनारायन सिंह जी ने भी क्षेत्रीय राजपूतों का सहयोग लेकर कॉलेज को उच्चत्तम ऊंचाई पर पहुंचाया।
उनके विषय में ये शब्द लिखूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी
क्या आज के शिक्षाविदों से ये आशा की जा सकती है कहना मुस्किल ही नहीं ना मुमकिन है आज के इस समय में ।वाह क्या समर्पण भाव था उनका उनके द्वारा पाल पोस् कर बट बृक्ष बनाई गई इस संस्था के विषय में अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी ।अनुशासन उनकी प्रथम प्राथमिकता हमेशा रही ।ऐसे महान मानव कभी कभी ही अवतरित होकर अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप दूसरों पर छोड़ जाते है।
At last I can say ” Tilakdhari (T .D) College is the living embodiment of his ideal and vision .
It is not secret that T.D. College and Shri H. N .Singh have been synonyms for long.The present august shape of the Tilakdhari Educational Institutions is the result of Shri H. N .Singh’s imagination and also his practical work .After the gracious benevolence of the Founder ,the Real Maker of T. D. College has been late Shri H. N Singh ,Former Principal of T D College .It is he who has brought T D College on the educational map of India .His being an Educationist of repute and his ardent love for T .D .College mingled into one .
मैं शिक्षा ,विद्यानुराग एवं लोककल्याण के लिऐ समर्पित ,कर्तव्य परायण इस महान कर्मयोगी को भी सत सत नमन करता हुआ सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
टी0 डी0 कॉलेज का वर्तमान स्वरूप
वर्तमान में ठाकुर तिलकधारी सिंह जी द्वारा स्थापित इस संस्थान में कला, विज्ञान ,कॉमर्श , कृषि विज्ञान एवं विधि संकायों में स्नातकोत्तर एवं शोध स्तर की शिक्षा प्रदान की जारही है ।इस संस्था में लगभग 500 प्राध्यापक तथा कर्मचारी इस विशाल बट व्रक्ष तले शिक्षा के प्रसार के पुनीत कार्य में लगे हुए प्रक्षिण एवं शोध की सभी सुविधाओं से सुसज्जित इस संस्थान को उन्नति के शिखर पर पहुंचाए हुए है ।इस संस्था में लगभग 12 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे है ।इस संस्थान के पढ़े हुए विद्यार्थी आज देश में बड़े -बड़े दायित्त्वों पर कार्यरत है।
इस संस्था के संस्थापक की सोच “सर्वजन सुखाय ,सर्वजन हिताय”दर्शन पर आधारित थी ।उनके द्वारा स्थापित इस विशाल बट व्रक्ष रूपी विद्या के मन्दिर में हजारों विद्यार्थी विद्या का अध्ययन कर रहे है।उनके इस अविस्मरणीय योगदान के लिए पूर्वांचल उन्हें सदैव नमन करता रहेगा ।
दूसरे शब्दों में यों कहूँ तो ये भी सत्य ही है कि—-At last I do respect to him and his contribution to the community development .I hope that rajput community of Purvanchal never forget his contribution in education development .Our new generations will always remember to him for his great contribution in the field of education .He was noted for his philanthropy in the field of education.or philanthropist from jaunpur.
अन्त में, मैं एक बार पुनः इस संस्था के संस्थापक को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए तथा उनके सहयोगियों को जिन्होंने इस संस्था के विकास में अपना अमूल्य सहयोग दिया को सत सत नमन करता हूँ ।
जय हिन्द।जय राजपूताना।
लेखक -डॉ0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव-लाढोता तहसील सासनी,जिला हाथरस,उत्तरप्रदेश
प्राचार्य राजकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय सवाईमाधोपुर