विशेष लेख- बच्चों व महिलाओं में न्यूनपोषण एक गंभीर चुनौती। 

वर्तमान समय में भारत सहित विश्व स्तर पर बाल व महिला विकास, जन्म मृत्यु दर आदि गंभीर चुनौतियों ....

Oct 16, 2024 - 12:42
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 विशेष लेख- बच्चों व महिलाओं में न्यूनपोषण एक गंभीर चुनौती। 

लेखक परिचय

अरविन्द सुथार पमाना ♦वरिष्ठ कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार, अनार एवं बागवानी विशेषज्ञ, कृषि सलाहकार, मोटिवेटर एवं किसानों के मार्गदर्शक। 


            [शिशु अवस्था में मां से भरपुर दूध न मिलना और फिर बाद में पर्याप्त खाद्य पदार्थों के अभाव में बच्चों के इम्यूनिटी पॉवर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जहां बच्चों की आयु शरीर की वृद्धि और विकास की होती है उस समय सन्तुलित आहार की पूर्ण आवश्यकता रहती है। गरीबी स्तर के बच्चों को आहार का सन्तुलन नसीब नहीं होता है। बच्चो में शारीरिक अक्षमता के अलावा मानसिक कमजोरी भी आती है। भोजन में सन्तुलित अवयवों की कमी से ऑटिज्म के लक्षण देखने को मिले हैं। शरीर का विकास रूक जाता है।]


    जहां वर्तमान समय में भारत सहित विश्व स्तर पर बाल व महिला विकास, जन्म मृत्यु दर आदि गंभीर चुनौतियों पर अनेकों संस्थाओं द्वारा अनुसंधान व समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं वहीं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बच्चे व महिलाएं पर उनके न्यून पोषण व कुपोषण की समस्याएं बनी हुई हैं। यहां न्यूनपोषण को इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि न्यूनपोषण ही कुपोषण का मुख्यआधार है। अल्पाहार या न्यूनपोषण में भोजन के दो या अधिक सन्तुलित तत्व भोजन में रहते ही नहीं हैं। यही अल्प उपलब्धता धीरे धीरे शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी दर्शाता है व कुपोषण के लक्षण गंभीर रूप ले लेते हैं।

सन्तुलित आहार या भोजन से सम्बन्ध भोजन में उपस्थित उन पोषक तत्वों से हैं जो शरीर की वृद्धि व रखरखाव के लिए आवश्यक हो। जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन्स, खनीज लवण, जल आदि सही अनुपात में प्रतिदिन उपलब्ध हो वही सन्तुलित आहार कहलाता है। स्वस्थ शरीर न केवल आपको अच्छा महसूस कराता है बल्कि यह आपको कई बीमारियों व स्वास्थ्य सम्बन्धित कमजोर परिस्थितियों का सामना करने की मजबूती भी प्रदान करता है।पर्याप्त पोषण प्राप्त करना स्वस्थ जीवन जीने का एक अनिवार्य हिस्सा है। हम भोजन को सन्तुलित अवस्था में तभी ग्रहण कर पाते हैं जब वह सम्पूर्ण पोषक तत्वों के रूप में सहज उपलब्ध हो। सन्तुलित भोजन की उपलब्धता आज गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बच्चों व महिलाओं के लिए गंभीर चुनौती है। हालांकि इस पर सरकार का ध्यान चला भी जा रहा है फिर भी यह बताने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत में गरीब तबके की अधिकांश जनसंख्या उस सन्तुलित स्तरीय पोषण को प्राप्त करने में असमर्थ है जिसे विश्व स्तर पर मानक रूप में अपना रखा है। 

हम जिस विषय पर बात कर रहे हैं वह है गरीब जीवन स्तर। सामान्यत: यही वह कारण है जो पोषण व्यवस्था के सन्तुलन को एक गंभीर समस्या के रूप में प्रभावित कर रहा है। अब प्रश्न उठता है कि कुपोषण के शिकार गरीब ही क्यों? जबकि इस हेतु सरकार यथासम्भव प्रयास कर रही है। इस विषय को ही गहराई से समझना होगा कि गरीब तबका सन्तुलित पोषण की अनुपलब्धता का शिकार क्यों हैं? जहां तक हमारी जानकारी है और हमें यह जानने में आया है कि इसके पीछे अशिक्षा व जागरूकता के साथ साथ सामर्थ्य का अभाव है। गरीबों द्वारा अपनी सम्पूर्ण आवश्यकताएं लगातार उसी रूप में पूर्ण कर पाना मुश्किल होता है। गरीब परिवार के बच्चे व महिलाएं प्रतिदिन अपनी थाली में भोजन के सम्पूर्ण व सन्तुलित पोषक तत्व नहीं रख पाते हैं। कभी कभी तो इन्हें इन सभी तत्वों को एक साथ देखने में कई दिन लग जाते हैं। जबकि यह तो शरीर की नित्य आवश्यकता है। जिसे पूरा करना एक गरीब व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं होता है।

महिलाओं को अपने दैनिक कार्य करने, बिमारियों की रोकथाम, स्वस्थ व सुरक्षित प्रसव के लिए सन्तुलित भोजन की आवश्यकता रहती है। फिर भी पूरे संसार में किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या की तुलना में महिलाओं को कुपोषण का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। इसके कारण कमजोरी, थकावट, अशक्तता साफ दिखती है।

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गरीबी, भूखमरी व अच्छा भोजन न मिल पाने का मुख्य कारण है। हालांकि यह पहले ही बता दिया गया है कि इसकी शिकार सबसे अधिक महिलाएं होती हैं। ऐसा इसलिए है कि खाने के लिए चाहे कितना भी कम हो फिर महिलाओं को उसमें से कम ही मिलता है। महिलाएं तभी भोजन करती हैं जब पुरूषों व बच्चों ने खा लिया हो अर्थात् सबसे अन्त में भोजन करती हैं। यह सच्च नहीं है कि महिलाओं को गर्भावस्था या स्तनपान के कालों में कुछ खास खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए। कुछ गरीब समुदायों में ऐसा विश्वास है कि महिलाओं को अपने जीवन काल में माहवारी के समय, गर्भावस्था, स्तनपान, प्रसव के तुरन्त बाद का समय और लगभग रजोनिवृति तक इन्हें कुछ खास खाद्य पदार्थों से परहेज करना पड़ता है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि महिला को हर काल में हमेशा पोष्टिक भोजन की आवश्यकता रहती है। खासकर गर्भावस्था व स्तनपान के समय भोजन के कुछ पोषक खाद्यों का परहेज करने से कमजोरी या थकावट के साथ साथ गंभीर बिमारियों से ग्रसित होकर मृत्यु भी हो सकती है। 

 यह सत्य बात नहीं है कि महिला तभी भोजन करे जब उसके परिवार के सभी लोगों ने भोजन कर लिया हो। इस स्थिति में वह केवल बचा-खुचा भोजन ही खा पाती है और अन्य लोगों की तुलना में बहुत कम भी। यहीं से शुरू होती ही महिला में खुन की कमी जैसी खतरनाक समस्याएं जैसे एनीमिया आदि। एनिमिया तभी होता है जब शरीर में लाल रक्त कणिकाओं के खत्म होने की दर, उनके निर्माण होने की दर से अधिक होती है। चूंकि महिलाएं प्रतिमास अपनी माहवारी के समय खून गंवाती हैं। इसीलिए किशोरावस्था व रजोनिवृति के बीच की उम्र की महिलाओं को एनीमिया बहुत अधिक होता है।संसार की लगभग 50% महिलाएं एनीमिया रोग से ग्रसित हैं। क्योंकि उन्हें गर्भ में बढते हुए शिशु के लिए भी रक्त निर्माण करना होता है। एनीमियाग्रस्त महिलाओं के प्रसव के समय रक्त बहाव व मरने की सम्भावना बढने के साथ ही उसे संक्रमण व खुन के बहाव के विरूद्ध लडने की ताकत बहुत कम पड़ जाती है। इसके विपरित उसे अपने संक्रमणों से लडने, स्वस्थ रखने, बच्चे हेतु पर्याप्त शरीर निर्माण, रक्षा करने वाले व शक्ति देने वाल पर्याप्त खाद्य पदार्थ मिलने चाहिए। जो गरीबी अवस्था में पर्याप्त नहीं मिल पाते हैं।

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महिलाओं के अलावा गरीबी में कुपोषण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है बच्चों पर। शिशु अवस्था में मां की कुपोषणता से भरपुर दूध न मिलना और फिर बाद में पर्याप्त खाद्य पदार्थों के अभाव में बच्चों के इम्यूनिटी पॉवर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जहां बच्चों की आयु शरीर की वृद्धि और विकास की होती है उस समय सन्तुलित आहार की पूर्ण आवश्यकता रहती है। गरीबी स्तर के बच्चों को आहार का सन्तुलन नसीब नहीं होता है। बच्चो में शारीरिक अक्षमता के अलावा मानसिक कमजोरी भी आती है। भोजन में सन्तुलित अवयवों की कमी से ऑटिज्म के लक्षण देखने को मिले हैं। शरीर का विकास रूक जाता है। इस प्रकार कुपोषण का प्रभाव छोटे बच्चों पर भी बहुत होता है। गरीबी में माता पिता अपने बच्चों को सन्तुलित भोजन दे पाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में उनके सस्ते पोषाहार ही सबसे अच्छे विकल्प हैं।

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