विशेष शोध : रावण ​वध ​की तिथि दशहरा ​नहीं​। 

रावण ब्राम्हण था जिसके वध से लगे ब्रम्ह हत्या के पाप हेतु सूर्यवंशी राम को प्रायश्चित्य...

Oct 8, 2024 - 18:57
Oct 8, 2024 - 18:58
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विशेष शोध : रावण ​वध ​की तिथि दशहरा ​नहीं​। 

रावण ब्राम्हण था जिसके वध से लगे ब्रम्ह हत्या के पाप हेतु सूर्यवंशी राम को प्रायश्चित्य करना पड़ा था। रावण वध के बाद उसकी अंत्येष्टि उसके अनुज विभीषण ने की थी, राम ने नहीं। रामलीला के बाद राम के बाण से रावण का दाह संस्कार किया जाना तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत, अप्रामाणिक और अस्वीकार्य है। रावण का जन्म दिल्ली के समीप एक गाँव में हुआ, सुर तथा असुर मौसेरे भाई थे जिन्होंने दो भिन्न संस्कृतियों और राज सत्ताओं को जन्म दिया। उनमें वैसा ही विकराल युद्ध हुआ जैसा द्वापर में चचेरे भाइयों कौरव-पांडव में हुआ, उसी तरह एक पक्ष से सत्ता छिन गई। पदम पुराण, पातालखंड ​के अनुसार युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ८७ दिन तक था। संग्राम के मध्य विविध कारणों से १५ दिन युद्ध बंद रहा। ​इस महासंग्राम​ का समापन लंकाधिराज रावण के संहार से हुआ। राम द्वारा रावण वध क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र बदी चतुर्दशी को किया गया था।

  • ऋषि आरण्यक द्वारा सत्योद्घाटन- ​

पद्मपुराण​, पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में ​पहुँचकर, परिचय देकर प्रणाम करते ​हैं। शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले- ''गुरु का वचन सत्य हुआ। सारुप्य मोक्ष का समय आ गया।'' उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के माहात्म्य ​के उपदेश ​का उल्लेख कर बताया ​कि गुरु ने कहा ​था कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा ​आश्रम में आयेगा, रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी। वे तुम्हें राम के पास ​पहुँचा देंगे। ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथिवार उद्घाटित करते हैं- ''जनकपुरी में धनुष यज्ञ में राम-लक्ष्मण के साथ विश्वामित्र का पहुँचना​,​ राम द्वारा धनुष-भंग, राम-सीता विवाह ​आदि प्रसंग सुनाते हुए आरण्यक ने बताया विवाह के समय राम ​१५ वर्ष के और सीता ​६ वर्ष की ​थीं। विवाहोपरांत वे ​१२ वर्ष अयोध्या में रहे,​ २७ वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई मगर रानी कैकेई द्वारा राम वनवास का वर ​माँगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।

वनवास में राम प्रारंभिक ३ दिन जल पीकर रहे, चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया। ​पाँचवे दिन वे चित्रकूट पहुँचे। श्री राम ​ने ​चित्रकूट में​ १२ वर्ष ​प्रवास किया। ​१३ वें वर्ष के प्रारंभ में ३९ वर्षीय राम, लक्ष्मण और ३० वर्षीय सीता के साथ पंचवटी पहुँचे और शूर्प​णखा को कुरूप किया। माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता हरण किया। श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे। जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया।​ बाल्मीकि रामायण, राम चरित मानस तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार राम ने वर्षाकाल में चार माह ऋष्यमूक पर्वत पर ​बिताए थे। ​मानस में श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं-

  • '​घन घमंड गरजत चहु ओरा। प्रियाहीन डरपत मन मोरा।।'

आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी कार्तिक शुक्लपक्ष से वानरों ने सीता की खोज आरंभ की गई। समुद्र तट पर कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाति नामक गिद्ध ने बताया कि सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी) को हनुमान ने ​सागर पार किया और रात में लंका प्रवेश कर सीता की खोज-बीन ​आरम्भ की।कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। कार्तिक शुक्ल तेरस को अशोक वाटिका विध्वं​सकर, उसी दिन अक्षय कुमार का वध किया। कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद के ब्रह्मपाश में ​बँधकर दरबार में गए और लंकादहन किया। हनुमानजी ​ने ​कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। प्रफुल्लित वानर​ दल ​ने नाचते​-​गाते ​५ दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया हनुमान की अगवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुँचे, हाल-चाल दिये। मानस के अनुसार श्री राम ने सुग्रीव से कहा- 'अब विलंब केहि कारन कीजे, तुरन कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे'।  

यात:, अगहन कृष्ण अष्टमी ​उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और ​७ दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुँचे। अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया। अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ। अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर चर्चा हुई। सागर से मार्ग ​की ​याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक ​४ दिन उपवास किया। नवमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया। अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक ​४ दिन में श्रीराम सेतु बनकर तैयार हुआ।

अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्र पार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया, अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक ​३ दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई। पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली। पौष कृष्ण एकादशी को ​रावण के गुप्तचर ​सुक​-​सारन ​वानर वेश धारण कर ​वानर सेना में घुस आए। पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और ​उन्हें ​पहचान कर​ ​पकड़ा गया और शरणागत होने पर श्री राम द्वारा अभयदान दिया। पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया।

​श्री राम द्वारा शांति-प्रयास का अंतिम उपाय करते हुए ​पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया।​ ​अंगद के विफल लौटने पर ​पौष शुक्ल द्वितीया से युद्ध आरंभ हुआ। अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ। पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में ​जकड़ दिया गया। श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया, पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटकर राम-लक्ष्मण को मुक्त किया। पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध, पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध, पौष शुक्ल चौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक ३ दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का वध किया गया।

माघ कृष्ण द्वितीया से राम-रावण में विकराल युद्ध प्रारम्भ हुआ। माघ कृष्ण चतुर्थी को रावण को भागना पड़ा। रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक ​४ दिन में कुंभकरण को जगाया। माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया। कुंभकरण वध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया। माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि ​५ राक्षसों का वध हुआ। माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया। माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ ​वध, माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष वध हुआ।

फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध प्रारंभ हुआ। फागुन कृष्ण सप्तमी को लक्ष्मण मूर्छित हुए, उपचार आरम्भ हुआ। इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक ​५ दिन युद्ध विराम रहा। फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया, फागुन कृष्ण नवमी से फागुन कृष्ण तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया। इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया।

फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ। फागुन शुक्ल षष्ठी से अष्टमी तक युद्ध में महापार्श्व आदि का राक्षसों का वध हुआ। फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूर्छित हुए, सुखेन वैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चैतन्य हुए।

राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ। फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया। फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक ​१८ दिन युद्ध चला। ​अंतत:, ​चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण मौत के घाट उतारा गया।

युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ​८७ दिन​ युद्ध ​(७२ दिन​ ​युद्ध, ​१५ दिन ​​युद्ध विराम​)​ चला और श्रीराम विजयी हुए। चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव संवत्सर) से लंका में नए युग का प्रारंभ हुआ। चैत्र शुक्ल द्वितीया को विभीषण का राज्याभिषेक किया गया। अगले दिन चैत्र शुक्ल तृतीया का सीता की अग्निपरीक्षा ली गई और चैत्र शुक्ल चतुर्थी को पुष्पक विमान से राम, लक्ष्मण, सीता उत्तर दिशा में ​उड़कर, चैत्र शुक्ल पंचमी को भरद्वाज ​ऋषि ​के आश्रम में पहुँचे। चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में राम-भरत मिलन हुआ। चैत्र शुक्ल सप्तमी को अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। यह पूरा आख्यान ऋषि आरण्यक ने शत्रुघ्न को सुनाया। फिर शत्रुघ्न ने आरण्यक को अयोध्या पहुँचाया, जहाँ अपने आराध्य पूर्णावतार श्रीराम के सान्निध्य में ब्रह्मरंध्र द्वारा सारूप्य मोक्ष पाया।

यह निर्विवाद है कि दशहरा को रावण वध तथा दीपावली को श्री राम के अयोध्या लौटने पर प्रजा द्वारा दीप पर्व मनाए जाने की लोक धारणा मिथ्या, अप्रामाणिक और निराधार है। ​इस धारणा के प्रचलित होने का कारण वाराणसी से गंगा नदी के पार स्थित रामनगर, वाराणसी में रामलीला के मंचन की परंपरा है। यह राम लीला १८३० में काशी नरेश महाराजा उदित नारायण सिंह द्वारा पंडित लक्ष्मी नारायण पांडे के परिवार (रामनगर की रामलीला के वर्तमान व्यास जी) की मदद से शुरू की गई थी। उनके उत्तराधिकारी महाराज ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के शासनकाल के दौरान राम लीला की लोकप्रियता अतिशय बढ़ गई और दर्शक संख्या एक लाख तक होती थी।रामनगर रामलीला ३१ दिनों में आयोजित की जाती थी, जहाँ रामचरितमानस का संपूर्ण पाठ किया जाता था। यह अपने भव्य सेट, संवाद और दृश्य तमाशे के लिए जाना जाता था। 

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इस काल में नव दुर्गा से दीपावली तक विद्यालयों में शासकीय अवकाश हुआ करता था। नवदुर्गा पर्व का आरंभ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होकर समापन आश्विन शुक्ल  दशमी को होता है। कार्तिक मास अमावस्या को दीवाली होती है। नव दुर्गा और राम लीला का समायोजन करते हुए विजय दशमी पर रावण वध की प्रथा आरंभ हुई होगी जो रूढ़ हो गई। यदि दशहरे पर रावण वध और दीपावली पर अयोध्या प्रवेश को सही मानें तो प्रश्न यह है कि इस अवधि में राम क्या करते रहे। क्या राम लंका से पुष्पक विमान द्वारा न आकर पैदल अयोध्या लौटे? ऐसा होता तो रावणजयी राम के वापसी यात्रा पथ का उल्लेख मिलता, जो नहीं है। भरत द्वारा १४ वर्ष पूर्ण होते ही राम के न लौटने पर प्राण त्यागने का संकल्प किया गया था, इसलिए राम को उस अवधि के पूर्व अयोध्या लौटना ही था। ऐसी स्थिति में दशहरे से दीवाली के बीच के १९ दिन राम क्या करते रहे? 

अत:, यह सुनिश्चित है कि न तो रावण वध दशहरे को हुआ, न राम दीवाली पर अयोध्या लौटे।    

आचार्य संजीव वर्मा सलिल 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान, जबलपुर

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