गीत - सूर्य कब तक यूँ छिपोगे....
अभी तक छाई हुई है धुन्ध पथ में, सूर्य कब तक.....

सूर्य कब तक यूँ छिपो
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अभी तक
छाई हुई है धुन्ध पथ में
सूर्य कब तक
बादलों में यूँ छिपोगे
मानती हूँ तुहिन
कण की रजत चादर
भावना की
ऊष्मा को ढाँकती है
अरु खुले आकाश में ही
यामिनी भी
कामनाओं के सितारे
टांकती है
पिघल जायें ये
हिमानी क्षण अगर
कुछ बोल दो तुम
प्राण की इस बाँसुरी में
गीत लय
तुम ही भरोगे
खो न जाये कोहरे में
लक्ष्य अपना
हो न जाये कहीं धूमिल
मधुर सपना
देरियाँ भी छीन लेती हैं
बहुत कुछ
राह ही दीवार बन जाये
न जाओ दूर इतना
प्रश्न बन कर
खड़ा होगा जब समय तो
सिर झुका कर
खड़े होगे क्या कहोगे
सूर्य कब तक
बादलों में यूँ छिपोगे
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डॉ.मधु प्रधान कानपुर
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