नव गीत- दिल्लीवालो!
दिल्लीवालो! भोर हुई पर जाग न जाना
आचार्य संजीव वर्मा सलिल,जबलपुर
नव गीत- दिल्लीवालो
दिल्लीवालो!
भोर हुई पर
जाग न जाना
घुली हवा में प्रचुर धूल है
जंगल काटे, पर्वत खोदे
सूखे ताल, सरोवर, पोखर
नहीं बावली-कुएँ शेष हैं
हर मुश्किल का यही मूल है
बिल्लीवालो!
दूध विषैला
पी मत जाना
कल्चर है होटल में खाना
सद्विचार कह दक़ियानूसी
चीर-फाड़कर वस्त्र पहनना
नहीं लाज से नज़र झुकाना
बेशर्मों को कहो कूल है
इल्लीवालो!
पैकिंग बढ़िया
कर दे जाना
आज जुडो कल तोड़ो नाता
मनमानी करना विमर्श है
व्यापे जीवन में सन्नाटा
साध्य हुआ केवल अमर्ष है
वाक् न कोमल तीक्ष्ण शूल है
किल्लीवालो!
ठोंको ताली
बना बहाना
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