Budaun News: फर्जी ड्रग्स केस में 25 पुलिसकर्मियों पर मुकदमा, कोर्ट के आदेश पर SHO सहित तीन इंस्पेक्टर बुरे फंसे।
बदायूं जिले में फर्जी ड्रग्स मामले में बिनावर थाने के 25 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) मोहम्मद तौसीफ रजा के आदेश...

उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में फर्जी ड्रग्स मामले में बिनावर थाने के 25 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) मोहम्मद तौसीफ रजा के आदेश पर मुकदमा दर्ज किया गया है। इनमें थाना प्रभारी (SHO), तीन इंस्पेक्टर, चार उप निरीक्षक और विशेष संक्रिया समूह (SOG) के 13 सदस्य शामिल हैं। यह कार्रवाई जुलाई 2024 में पांच युवकों मोहम्मद मुख्तियार, बिलाल, अशरफ, अजीत और तरनवीर को फर्जी तरीके से नशीले पदार्थों के मामले में फंसाने के आरोप के बाद हुई है।
मामले की शुरुआत तब हुई जब वकील मोहम्मद तस्लीम गाजी ने सीजेएम कोर्ट में बीएनएसएस की धारा 175 के तहत अर्जी दाखिल की। अर्जी में दावा किया गया कि 27 जुलाई 2024 को इन पांच युवकों को उनके घरों से पुलिस ने अवैध रूप से उठाया था। इसके बाद, 30 जुलाई को पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि इन युवकों को नशीले पदार्थों के साथ गिरफ्तार किया गया। हालांकि, प्राथमिकी (FIR) 31 जुलाई को दर्ज की गई, जो पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है।
वकील ने कोर्ट में सीसीटीवी फुटेज पेश किए, जिसमें दिखाया गया कि आरोपियों को 27 जुलाई को उनके घरों से उठाया गया था, जबकि पुलिस डायरी में गिरफ्तारी की तारीख 30 जुलाई दर्ज की गई। कोर्ट ने इस सबूत के आधार पर मामले को फर्जी माना और बदायूं के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) से 30 जुलाई 2024 का प्रेस नोट मंगवाया। जांच में पाया गया कि पुलिस ने झूठी बरामदगी दिखाकर इन युवकों को गलत तरीके से फंसाया। इसके अतिरिक्त, आरोप है कि इस दौरान वकील तस्लीम गाजी के चैंबर पर कुछ लोगों ने धमकी भी दी थी।
सीजेएम ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए बिनावर थाने के 12 पुलिसकर्मियों और SOG के 13 सदस्यों, कुल 25 पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया। भारतीय दंड संहिता (IPC) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत यह मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें कर्तव्य का दुरुपयोग, फर्जीवाड़ा और अवैध हिरासत जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।
इस कार्रवाई ने बदायूं पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई से पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी, बशर्ते जांच निष्पक्ष हो। पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मामले पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, आंतरिक जांच शुरू हो गई है।
यह मामला अब कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ रहा है। कोर्ट के इस फैसले ने न केवल बदायूं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में पुलिस की कार्यशैली और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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