विशेष लेख- राष्ट्र में एक तथाकथित भगवान
हमारे और आपके राष्ट्र में एक तथाकथित भगवान पैदा हुए थे। बस उनकी विशेषता यह थी कि वे लंगोटी पहन के नंगा रहते थे। उनका पूरा जीवन ...

लेखक - संजय सिंह
हमारे और आपके राष्ट्र में एक तथाकथित भगवान पैदा हुए थे। बस उनकी विशेषता यह थी कि वे लंगोटी पहन के नंगा रहते थे। उनका पूरा जीवन काॅपी पेस्ट था। कुछ बातें वे लियो टाॅलस्टाॅय की बोलते थे और कुछ जाॅन रस्किन की, लेकिन हाथ में गीता लेकर उन सब बातों को गीता में होने का भ्रम पैदा करते थे। तिलक ने स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा का विषय उनसे बहुत पहले उठाया था। महोदय चर्खा लेकर बैठ गए और सब कुछ अपना बता दिया।
उन्हें राष्ट्र के शौर्य, पराक्रम और वीरता से कठोर घृणा थी। प्रत्येक शूरवीर योद्धा का वे जितना संभव था उतना अपमान करते थे, लेकिन भारत आने के बाद उन्होंने सबसे पहला कार्य प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों के लिए सैनिक भर्ती का किया। अंग्रेजों ने उन्हें भारत आते ही 1915 में देश का सबसे बड़ा नेता घोषित कर दिया और बड़े-बड़े राष्ट्रवादी नेताओं को किनारे लगा दिया।
यह जो आज भारत विभाजन की विभीषिका दिवस मनाया जा रहा है उन्हीं भगवान की देन है और आगे भी वे और विभीषिका दिवस मनाने की पृष्ठभूमि बनाकर गए हैं।
उनके तीन बंदरों का जो आदर्श है वह भारत को बारम्बर विभीषिका के द्वार तक ले जाने के लिए पर्याप्त है। यदि कोई कुछ बुरा कर रहा तो उसका प्रतिकार मत करो, आँखें बंद कर लो। यदि बुरा बोल रहा है तो उसे सुनो मत, अपने कान बंद कर लो और तीसरा यदि बुराई करे तो करने दो, प्रत्युत्तर मत दो, मुख बंद कर लो अर्थात बुरा करने और बोलने वाले को बुरा करने और बोलने की पूरी तरह छूट दो। क्या यह सिद्धांत किसी समाज और देश की रक्षा कर सकता है?
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ये बंदर भी चीन के उधारी हैं। ये उधार के बंदर भारत के प्रेरणा स्रोत नहीं हो सकते। जो प्रतिकार न कर सके वह जीवित नहीं मृत होता है और ऐसे महापुरुषों को आदर्श मानने वाला समाज अपने जीवन रक्षा के सभी प्रयासों को छोड़ कर अपने अस्तित्व को नष्ट कर लेता है। स्वराज के कई दशक व्यतीत हो जाने के बाद राष्ट्र को आगे आने वाली किसी भी विभीषिका से बचने के लिए अपने आदर्शों का मूल्यांकन करना चाहिए।
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