वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर अशोक गहलोत का केंद्र पर हमला: बीजेपी-आरएसएस द्वारा कार्यक्रमों का राजनीतिकरण, कांग्रेस ने बताया विभाजनकारी साजिश

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा आयोजित

Nov 12, 2025 - 14:28
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वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर अशोक गहलोत का केंद्र पर हमला: बीजेपी-आरएसएस द्वारा कार्यक्रमों का राजनीतिकरण, कांग्रेस ने बताया विभाजनकारी साजिश
वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर अशोक गहलोत का केंद्र पर हमला: बीजेपी-आरएसएस द्वारा कार्यक्रमों का राजनीतिकरण, कांग्रेस ने बताया विभाजनकारी साजिश

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रमों पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये आयोजन पूरी तरह से बीजेपी का एजेंडा बन चुके हैं, जहां केवल बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों को ही आमंत्रित किया जा रहा है। आम जनता, अन्य सामाजिक वर्गों और विपक्षी दलों को इससे दूर रखा जा रहा है। गहलोत ने कहा कि सरकार का पैसा खर्च हो रहा है, लेकिन कार्यक्रम बीजेपी का हो गया है। यह बयान 11 नवंबर 2025 को जयपुर में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान आया, जो वंदे मातरम विवाद के बीच राजनीतिक बहस को और तेज कर रहा है। कांग्रेस का कहना है कि यह राष्ट्रीय गीत को राजनीतिक हथियार बनाकर स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को कमजोर करने की कोशिश है।

वंदे मातरम की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1876 में की थी, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी। यह गीत 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया। 1937 में कांग्रेस कार्य समिति ने धार्मिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए केवल इसके पहले दो छंदों को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया। नेहरू, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस और टैगोर जैसे नेताओं की मौजूदगी में यह निर्णय लिया गया। गहलोत ने याद दिलाया कि कांग्रेस ही वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत बनाने वाली पहली संस्था थी। उन्होंने कहा कि आज बीजेपी और आरएसएस इसे अपने एजेंडे के लिए प्रचारित कर रहे हैं, जो विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा है।

7 नवंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का शुभारंभ किया। उन्होंने एक वर्ष तक चलने वाले राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों का उद्घाटन किया, जो 7 नवंबर 2026 तक चलेगा। इस अवसर पर उन्होंने स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया तथा एक पोर्टल लॉन्च किया। कार्यक्रम में पूरे गीत का सामूहिक गायन हुआ, जिसमें विभिन्न वर्गों के नागरिक शामिल हुए। मोदी ने कहा कि 1937 में गीत के महत्वपूर्ण छंदों को हटाने से विभाजन के बीज बोए गए। उन्होंने इसे विभाजनकारी मानसिकता का परिणाम बताया। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम राष्ट्रवाद की ज्वाला को प्रज्वलित करता रहेगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे भारत की एकता का प्रतीक बताया। आयुष मंत्रालय ने भी स्कूलों, कॉलेजों और मदरसों में दैनिक गायन का निर्देश दिया।

गहलोत ने इस कार्यक्रम को बीजेपी का बताया। उन्होंने कहा कि आरएसएस का वंदे मातरम से कोई लेना-देना नहीं है। आरएसएस शाखाओं में कभी इसका गायन नहीं होता। उनका राष्ट्रगान नमस्ते सदा वत्सले है। गहलोत ने आरोप लगाया कि बीजेपी स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को मिटाकर इतिहास में केवल खुद को स्थापित करना चाहती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की विरासत ही स्वतंत्रता संग्राम की विरासत है, जिसे कोई मिटा नहीं सकता। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। गहलोत ने बिहार चुनाव का भी जिक्र किया, जहां उन्होंने वोट चोरी, चुनाव आयोग पर दबाव और न्यायपालिका को प्रभावित करने के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बीजेपी लोकतंत्र को खतरे में डाल रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी मोदी के बयान पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि 1937 का निर्णय टैगोर को अपमानित करने वाला था। खड़गे ने आरएसएस पर तंज कसा कि उनके साहित्य या ग्रंथों में वंदे मातरम का जिक्र तक नहीं है। उन्होंने 1937 के कांग्रेस कार्य समिति के बयान का हवाला दिया, जिसमें गीत को राष्ट्रीय गीत मानते हुए धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया गया। खड़गे ने कहा कि बीजेपी इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल कर रही है। यह पाखंडपूर्ण राष्ट्रवाद है। कांग्रेस ने कहा कि वंदे मातरम हमेशा से गाया जाता रहा है, लेकिन बीजेपी इसे नया मुद्दा बनाकर सांप्रदायिक भावनाएं भड़का रही है।

राजस्थान में यह विवाद और गहरा गया। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने 6 नवंबर को आदेश दिया कि राज्य के सभी सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और मदरसों में दैनिक वंदे मातरम गायन होगा। उन्होंने इसे देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता से जोड़ा। लेकिन मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। कांग्रेस नेता प्रताप खाचरियावास ने कहा कि गीत पहले भी गाया जाता था, लेकिन बीजेपी इसे सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए इस्तेमाल कर रही है। गहलोत सरकार के दौरान मदरसों के लिए बड़ा बजट आवंटित किया गया था, जिसकी आलोचना बीजेपी ने मुस्लिम तुष्टिकरण बताई थी। अब बीजेपी की यह कार्रवाई उसी का जवाब लग रही है। मुस्लिम नेताओं ने मदरसों के विकास पर ध्यान देने की मांग की।

बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों का जवाब दिया। राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग ने कहा कि वंदे मातरम स्वतंत्रता संग्राम का मंत्र था। कई क्रांतिकारियों ने इसे गाते हुए फांसी पाई। उन्होंने 1923 के काकीनाड़ा कांग्रेस अधिवेशन का जिक्र किया, जहां तत्कालीन अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली ने धार्मिक आधार पर इसका विरोध किया। बीजेपी ने कहा कि 7 से 26 नवंबर तक जिला और राज्य स्तर पर कार्यक्रम होंगे। संविधान दिवस के साथ जोड़कर इसे मनाया जाएगा। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ही गीत को कमजोर करने वाली थी।

यह विवाद स्वतंत्रता संग्राम की विरासत पर सियासत को दर्शाता है। गहलोत ने कहा कि बीजेपी धार्मिक मंच पर सत्ता में आई, लेकिन कांग्रेस के योगदान को मिटाने का अधिकार नहीं है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वंदे मातरम सभी समुदायों का गीत है, इसे राजनीति से ऊपर रखें। कांग्रेस ने कहा कि जनता बीजेपी की मंशा समझ चुकी है। भाजपा ने पलटवार किया कि विपक्ष हार के डर से ऐसा कर रहा है। बिहार चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को हैं, जहां यह मुद्दा उठा।

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