Trending: सड़क पर नमाज और मंदिरों में दर्शन- प्रशासन की नीतियों पर सवाल, देवकीनंदन ठाकुर ने उठाई मंदिरों की स्वायत्तता की मांग।
भारत में धार्मिक समारोहों और उनकी व्यवस्था को लेकर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है, और हाल ही में प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर...

मथुरा/नई दिल्ली : भारत में धार्मिक समारोहों और उनकी व्यवस्था को लेकर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है, और हाल ही में प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर के एक बयान ने इस बहस को और तीव्र कर दिया है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में प्रस्तावित कॉरिडोर और तिरुपति बालाजी मंदिर में हाल की घटनाओं का हवाला देते हुए ठाकुर ने मांग की है कि किसी भी मंदिर को सरकार के नियंत्रण में नहीं होना चाहिए। उन्होंने प्रशासन पर सवाल उठाया कि जब सड़कों पर नमाज पढ़ने के लिए ट्रैफिक डायवर्जन और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, तो मंदिरों में दर्शन के लिए भक्तों को समान सहायता क्यों नहीं मिलती।
- देवकीनंदन ठाकुर का बयान
13 जून 2025 को, प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने वृंदावन में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, "तिरुपति बालाजी मंदिर में जो कांड हुआ, उसके बाद यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी मंदिर सरकार के अधीन नहीं होना चाहिए। मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप बंद होना चाहिए।" उन्होंने बांके बिहारी मंदिर में प्रस्तावित कॉरिडोर के खिलाफ अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि मंदिर की परंपरागत सेवा व्यवस्था में बदलाव नहीं होना चाहिए। ठाकुर ने 'सनातन बोर्ड' के गठन की मांग की, जो मंदिरों के प्रबंधन को स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से संचालित कर सके।
ठाकुर ने प्रशासन की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा, "जब सड़कों पर नमाज पढ़ी जाती है, तो प्रशासन ट्रैफिक डायवर्ट करता है, सड़कें बंद करता है, और हर तरह की सुविधा देता है। लेकिन जब बात मंदिरों में दर्शन की आती है, तो भक्तों को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। क्या यह भेदभाव नहीं है?" उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे धार्मिक समुदायों और नीति निर्माताओं के बीच तीखी बहस शुरू हो गई।
- बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद
वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। 1862 में स्थापित इस मंदिर में हर साल लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। 2022 में जनमाष्टमी के दौरान मंदिर में हुई भगदड़, जिसमें दो भक्तों की मृत्यु हो गई थी, के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर के आसपास 5 एकड़ में 500 करोड़ रुपये की लागत से कॉरिडोर बनाने की योजना शुरू की। इस परियोजना का उद्देश्य भीड़ प्रबंधन, बेहतर सुविधाएं जैसे स्वच्छता, पेयजल, और पार्किंग की व्यवस्था करना है।
हालांकि, इस योजना का गोस्वामी समुदाय और स्थानीय निवासियों ने कड़ा विरोध किया है। गोस्वामी, जो मंदिर की पूजा-अर्चना और प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालते हैं, इसे मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला मानते हैं। उनका कहना है कि कॉरिडोर निर्माण से वृंदावन की ऐतिहासिक 'कुंज गलियां', जहां माना जाता है कि भगवान कृष्ण और राधा रानी की लीलाएं होती हैं, नष्ट हो जाएंगी। इसके अलावा, लगभग 300 परिवारों और हजारों दुकानदारों के विस्थापन का खतरा है, जिसके लिए मुआवजे की योजना अभी स्पष्ट नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2025 में कॉरिडोर के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति दी, लेकिन गोस्वामी समुदाय और स्थानीय व्यापारियों ने इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की। मंदिर के एक प्रशासक, देवेंद्र नाथ गोस्वामी, ने कहा, "हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मंदिर की पवित्रता और परंपराओं का सम्मान होना चाहिए।"
- तिरुपति बालाजी मंदिर का कांड
देवकीनंदन ठाकुर ने अपने बयान में तिरुपति बालाजी मंदिर की हाल की घटनाओं का जिक्र किया, जिसने देश भर में हिंदू समुदाय को आक्रोशित किया। तिरुपति के श्री वेंकटेश्वर मंदिर, जो विश्व के सबसे अधिक दर्शन किए जाने वाले मंदिरों में से एक है, हाल ही में विवादों में आया जब तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) पर मंदिर के प्रसाद, विशेष रूप से तिरुपति लड्डू, में कथित रूप से अशुद्ध सामग्री के उपयोग का आरोप लगा। इस घटना ने मंदिर प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप और पारदर्शिता की कमी के सवाल खड़े किए।
ठाकुर ने कहा, "तिरुपति में जो हुआ, वह सरकारी नियंत्रण का परिणाम है। अगर मंदिर स्वायत्त होते, तो ऐसी घटनाएं नहीं होतीं।" उन्होंने मांग की कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर एक स्वतंत्र 'सनातन बोर्ड' के तहत लाया जाए, जो धार्मिक परंपराओं और भक्तों की भावनाओं का सम्मान करे।
- सड़क पर नमाज और मंदिर दर्शन: प्रशासन की नीतियों पर सवाल
देवकीनंदन ठाकुर का यह बयान कि प्रशासन सड़क पर नमाज के लिए सुविधाएं देता है, लेकिन मंदिरों में दर्शन के लिए समान सहायता नहीं करता, सामाजिक और धार्मिक समानता के मुद्दे को उठाता है। भारत में कई शहरों, जैसे दिल्ली, मुंबई, और हैदराबाद, में जुमे की नमाज के दौरान सड़कों पर भीड़ प्रबंधन के लिए पुलिस और प्रशासन द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है। ट्रैफिक डायवर्जन, सुरक्षा व्यवस्था, और अस्थायी तंबुओं की व्यवस्था आम है। हालांकि, यह व्यवस्था धार्मिक स्वतंत्रता और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देने के लिए की जाती है, लेकिन कुछ लोग इसे अन्य धार्मिक समुदायों के साथ असमान व्यवहार के रूप में देखते हैं।
उदाहरण के लिए, मथुरा और वाराणसी जैसे तीर्थ स्थलों पर मंदिरों में भक्तों को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है, और भीड़ प्रबंधन में अक्सर कमी देखी जाती है। बांके बिहारी मंदिर में 2022 की भगदड़ इसका एक उदाहरण है। मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने कॉरिडोर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण बताया, लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि ऐसी परियोजनाएं उनकी आजीविका और सांस्कृतिक विरासत को खतरे में डालती हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कॉरिडोर को भक्तों की सुरक्षा और सुविधा के लिए जरूरी बताया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह परियोजना काशी विश्वनाथ और अयोध्या के राम मंदिर कॉरिडोर की तर्ज पर है, जिसने तीर्थ स्थलों की सुलभता और आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाया है। सरकार का दावा है कि दुकानदारों को मुआवजा और नई जगह दी जाएगी, लेकिन विरोध कर रहे व्यापारी और गोस्वामी समुदाय इससे संतुष्ट नहीं हैं।
दूसरी ओर, सड़क पर नमाज की व्यवस्था को प्रशासन सामुदायिक शांति और धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा मानता है। दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने (बिना नाम उजागर किए) बताया कि नमाज के दौरान ट्रैफिक डायवर्जन अस्थायी होता है और इसका उद्देश्य सभी समुदायों के लिए व्यवस्था बनाए रखना है। हालांकि, मंदिरों में दर्शन के लिए समान व्यवस्थाएं न होने पर प्रशासन का कहना है कि मंदिरों की भीड़ प्रबंधन की जिम्मेदारी मंदिर ट्रस्टों और स्थानीय प्रशासन की होती है।
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देवकीनंदन ठाकुर का बयान सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है। सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने उनके बयान का समर्थन किया, जबकि अन्य ने इसे धार्मिक समुदायों के बीच तनाव बढ़ाने वाला बताया। @tattvadarsan ने लिखा, "बांके बिहारी हो या कोई और मंदिर, ये सरकार की संपत्ति नहीं है। विकास के नाम पर प्राचीनता के साथ खिलवाड़ स्वीकार्य नहीं।"
देवकीनंदन ठाकुर का बयान और बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर का विवाद भारत में धार्मिक स्थलों के प्रबंधन और प्रशासनिक नीतियों पर गंभीर सवाल उठाता है। सड़क पर नमाज और मंदिर दर्शन के लिए असमान व्यवस्थाएं सामाजिक समानता और धार्मिक स्वायत्तता के मुद्दों को उजागर करती हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर की घटना और वृंदावन में कॉरिडोर का विरोध यह दर्शाता है कि धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में पारदर्शिता और समुदाय की सहभागिता जरूरी है।
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