दशहरा विशेष- जानिये लंकापति रावण की लंका की कथा का सच, कल है राम-रावण की भूमि पर बुराई पर अच्छाई की जीत का अनोखा उत्सव
श्रीलंका के कुछ खास स्थानों पर दशहरा का उत्सव देखने लायक होता है। नुवारा एलिया, चिलाव और पुत्तलम जैसे क्षेत्रों में राम मंदिर स्थित हैं। नुवारा एलिया का राम मंदिर पहाड़ियों के बीच बसा है, जहां
दशहरा या विजयादशमी का त्योहार भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण की भूमि मानी जाने वाली श्रीलंका में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यहां दशहरा भारत से थोड़ा अलग अंदाज में सेलिब्रेट होता है। हिंदू समुदाय, खासकर तमिल लोग, इस दिन भगवान राम और माता सीता की पूजा करते हैं। रावण के पुतले जलाने की बजाय धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। 2025 में दशहरा 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। श्रीलंका में यह त्योहार नवरात्रि के बाद आता है और अच्छाई की जीत को याद दिलाता है। लेकिन एक सवाल हमेशा उठता है कि क्या रामायण की सोने की लंका वाकई श्रीलंका में थी। आइए, विश्वसनीय स्रोतों जैसे रामायण, महावंश और आधुनिक अध्ययनों के आधार पर इसकी पड़ताल करें। यह कथा इतिहास, मिथक और संस्कृति का अनोखा मिश्रण है।
श्रीलंका में दशहरा मुख्य रूप से हिंदू तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यहां की आबादी में करीब 12 प्रतिशत हिंदू हैं, जो उत्तर और पूर्वी प्रांतों में रहते हैं। त्योहार की शुरुआत नवरात्रि से होती है, जिसमें नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की जाती है। दसवें दिन, यानी दशहरा पर, लोग सुबह उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। घरों और मंदिरों में भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियों की पूजा होती है। पूजा के बाद भक्ति भजनों का गायन किया जाता है। लोग एक दूसरे को मिलते हैं, उपहार देते हैं और मिठाइयां बांटते हैं। यह दिन परिवार और समुदाय के एकजुट होने का प्रतीक है। त्रावेल ट्रायंगल और वांडरऑन जैसे स्रोतों के अनुसार, श्रीलंका में दशहरा को राम की रावण पर विजय के रूप में देखा जाता है, लेकिन रावण को यहां एक विद्वान राजा के रूप में भी सम्मान दिया जाता है। इसलिए, रावण दहन की परंपरा नहीं है। इसके बजाय, सांस्कृतिक नृत्य, संगीत और रामलीला जैसे कार्यक्रम होते हैं।
श्रीलंका के कुछ खास स्थानों पर दशहरा का उत्सव देखने लायक होता है। नुवारा एलिया, चिलाव और पुत्तलम जैसे क्षेत्रों में राम मंदिर स्थित हैं। नुवारा एलिया का राम मंदिर पहाड़ियों के बीच बसा है, जहां दशहरा के दिन हजारों भक्त इकट्ठा होते हैं। यहां राम-सीता की पूजा के साथ हनुमान चालीसा का पाठ होता है। सीता एलिया का सीता अम्मन मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहीं माता सीता को रावण ने कैद किया था। इस मंदिर में दशहरा पर विशेष आरती और भजन कीर्तन होते हैं। पास ही रावण फॉल्स है, जहां लोग पिकनिक मनाते हैं। डिवुरुम्पोला मंदिर अग्निपरीक्षा स्थल माना जाता है। यहां दशहरा पर भक्त अग्नि पूजा करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनकी मनोकामनाएं पूरी हों। ये जगहें रामायण पर्यटन का हिस्सा हैं। पर्यटक दशहरा के समय यहां आकर त्योहार का आनंद लेते हैं। मायनेशन और टीवी9 हिंदी के अनुसार, श्रीलंका में दशहरा तमिल समुदाय के लिए सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। लोग पारंपरिक तमिल नृत्य जैसे भरतनाट्यम प्रस्तुत करते हैं, जो रामायण की कथाओं पर आधारित होते हैं।
श्रीलंका में दशहरा का महत्व रामायण से गहराई से जुड़ा है। यहां रावण को केवल खलनायक नहीं, बल्कि शिव भक्त, विद्वान और कुशल शासक माना जाता है। स्थानीय कथाओं में रावण को वीणा वादक और आयुर्वेद विशेषज्ञ बताया गया है। इसलिए, त्योहार में रावण की बुराई पर जोर कम होता है। इसके बजाय, राम की विजय को धर्म की रक्षा के रूप में देखा जाता है। हिंदू मंदिरों में दुर्गा की पूजा भी होती है, क्योंकि दशहरा दुर्गा पूजा का समापन भी है। लोग इस दिन शस्त्र पूजा करते हैं और नए कार्य शुरू करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन या अन्य वैज्ञानिक स्रोतों से कोई सीधा संबंध नहीं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से यह त्योहार स्वास्थ्य और समृद्धि का संदेश देता है। भोजन में मिठाई जैसे लाडू और पायसम बनाए जाते हैं। बच्चे रामायण की कहानियां सुनते हैं। यह त्योहार श्रीलंका की बहुलवादी संस्कृति को दर्शाता है, जहां बौद्ध, हिंदू और तमिल परंपराएं मिलकर उत्सव मनाती हैं।
अब बात सोने की लंका की। रामायण में लंका को स्वर्ण लंका कहा गया है, जो सोने से बनी चमचमाती नगरी थी। लेकिन क्या यह वास्तविक थी। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका त्रिकूट पर्वत पर बसी थी, जो समुद्र से घिरी हुई थी। यह भारत के दक्षिण में 100 योजन (लगभग 1200-1300 किलोमीटर) दूर थी। महाभारत और महावंश जैसे ग्रंथों में भी लंका का जिक्र है। महावंश, श्रीलंका का प्राचीन इतिहास ग्रंथ, कहता है कि विभीषण को राम ने राजा बनाया, और उसके वंशज पांडव काल तक शासक रहे। लेकिन सोने की लंका मिथकीय है। क्वोरा और विकिपीडिया के अनुसार, यह कुबेर की नगरी थी, जिसे रावण ने जीत लिया। विश्वकर्मा ने इसे सोने से बनाया था। हनुमान ने अपनी पूंछ से इसे जलाया। वास्तविकता में, श्रीलंका को ही लंका माना जाता है। सिगिरिया रॉक को रावण का महल कहा जाता है, जो 5वीं शताब्दी का है। लेकिन रामायण 5000 ईसा पूर्व का माना जाता है, इसलिए पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिले।
कुछ विद्वान कहते हैं कि लंका श्रीलंका ही थी। राम सेतु के अवशेष आज भी दिखते हैं। रावण के महल की जगहों जैसे रावण किला और अशोक वाटिका को पर्यटन स्थल बनाया गया है। लेकिन अन्य मत हैं। मीडियम और रेडिट थ्रेड्स में बहस है कि लंका ओडिशा के सोनपुर या अंडमान में थी। सोनपुर का नाम सोने से जुड़ा माना जाता है। लेकिन अधिकांश इतिहासकार श्रीलंका को ही जोड़ते हैं। यूनेस्को ने रामायण स्थलों को सांस्कृतिक विरासत माना है। सोने की चमक प्रतीकात्मक हो सकती है, जो समृद्धि दर्शाती है। श्रीलंका प्राचीन समय में व्यापार केंद्र था, जहां सोना आता था। लेकिन कोई पुरातत्व खुदाई से सोने की नगरी नहीं मिली। यह मिथक है, जो नैतिक शिक्षा देता है।
श्रीलंका में दशहरा और सोने की लंका की कथा पर्यटन को बढ़ावा देती है। 2025 में दशहरा पर रामायण ट्रेल टूर लोकप्रिय होंगे। लोग सीता एलिया, रावण फॉल्स और नुवारा एलिया घूमेंगे। यह त्योहार दोनों देशों के सांस्कृतिक बंधन को मजबूत करता है। भारत और श्रीलंका के बीच रामायण सम्मेलन होते रहते हैं। कुल मिलाकर, श्रीलंका में दशहरा शांति और एकता का संदेश देता है। सोने की लंका मिथकीय हो या वास्तविक, यह रामायण की अमर कथा का हिस्सा है। इस दशहरा पर इन स्थानों की यात्रा करें और इतिहास को महसूस करें।
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