ICU में भर्ती थीं दादी और इधर देश के लिए खेल रही थी बेटी, फिर दे दिया वर्ल्ड चैंपियनशिप का तोहफा, पढ़िए अनकही दास्तां
2016 में एक पड़ोसी के सुझाव पर भूपिंदर ने अमनजोत को चंडीगढ़ की एक क्रिकेट अकादमी में दाखिला दिलाया। कोच नागेश गुप्ता ने उन्हें देखा और तुरंत ट्रेनिंग शुरू की। शुरू
भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने दो नवंबर 2025 को नवी मुंबई के डॉ. डीवाई पाटिल स्पोर्ट्स एकेडमी में खेले गए आईसीसी महिला वनडे विश्व कप के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहली बार यह खिताब अपने नाम किया। यह जीत न केवल टीम के लिए बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक पल साबित हुई। विश्व कप के दौरान अमनजोत के परिवार के लिए मुश्किल समय था। सितंबर में दादी को दिल का दौरा पड़ा। हालत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती किया गया। भूपिंदर सिंह और परिवार के सदस्य रोज अस्पताल जाते। लेकिन अमनजोत को कुछ नहीं बताया। वे फोन पर सिर्फ सकारात्मक बातें करते। भूपिंदर कहते हैं, अमनजोत का फोकस टूट जाता तो मैच पर असर पड़ता। दादी को मैच अपडेट देते रहते। वे कहतीं, पोती जीतेगी। फाइनल मैच के बाद ही अमनजोत को सच्चाई बताई। अमनजोत की आंखें भर आईं। उन्होंने दादी से बात की। डॉक्टरों ने कहा, कल और जांच होगी। अमनजोत ने जीत दादी को समर्पित की। उन्होंने कहा, परिवार, कोच और दादी को धन्यवाद। दादी अभी ठीक नहीं हैं लेकिन घर पर मैच देख रही हैं। यह जीत उनके लिए नई जिंदगी लाई है।
298 रनों का मजबूत लक्ष्य रखने के बाद भारतीय गेंदबाजों ने दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाजों को 246 रनों पर समेट दिया। इस मुकाबले में शेफाली वर्मा ने 87 रनों की शानदार पारी खेली और दो विकेट लिए, जबकि दीप्ति शर्मा ने बल्ले से 58 रन बनाए और गेंद से पांच विकेट झटके। कप्तान हरमनप्रीत कौर ने अंतिम विकेट लेते हुए मैच को यादगार बनाया। लेकिन इस जीत का एक महत्वपूर्ण मोमेंट अमनजोत कौर की फील्डिंग से जुड़ा था। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लॉरा वोल्वार्ड्ट का महत्वपूर्ण कैच पकड़ा, जो शतक के करीब थीं। यह कैच मैच का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। अमनजोत ने पूरे टूर्नामेंट में सात मैचों में 146 रन बनाए और छह विकेट लिए, जो उनकी ऑलराउंड क्षमता को दर्शाता है।
यह जीत भारतीय महिला क्रिकेट के लिए 47 साल पुराने इंतजार का अंत था। 1978 से शुरू हुए विश्व कप में भारत अब तक खिताब से महरूम था। हरमनप्रीत कौर कपिल देव और एमएस धोनी के बाद तीसरी कप्तान बनीं, जिन्होंने वनडे विश्व कप जीता। मैच के बाद स्टेडियम में 'इंडिया-इंडिया' के नारे गूंजे। पूर्व कप्तान रोहित शर्मा समेत कई दिग्गज स्टैंड्स में मौजूद थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने टीम को बधाई दी। हरमनप्रीत ने कहा, यह पूरी टीम की जीत है, जो पूरे देश की जीत है। शेफाली वर्मा को प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया। लेकिन इस चमकती जीत के पीछे अमनजोत कौर की कहानी सबसे भावुक है। मोहाली की इस 25 वर्षीय खिलाड़ी को फाइनल के बाद पता चला कि उनकी 75 वर्षीय दादी भगवंती देवी को विश्व कप के दौरान दिल का दौरा पड़ा था। परिवार ने उन्हें यह बात इसलिए नहीं बताई ताकि उनका ध्यान भटके नहीं और वे देश के लिए पूरी ताकत से खेल सकें।
अमनजोत कौर का जन्म पंजाब के मोहाली में हुआ। उनके पिता भूपिंदर सिंह बढ़ई का काम करते हैं। बचपन से ही अमनजोत को क्रिकेट का शौक था। छह साल की उम्र में वे पड़ोस के लड़कों के साथ सड़क और पार्क में खेला करती थीं। उस समय लड़कियों का क्रिकेट खेलना आसान नहीं था। अमनजोत कमर में दुपट्टा बांधकर गेंदबाजी करतीं। उनकी दादी भगवंती हमेशा पार्क में कुर्सी पर बैठकर मैच देखतीं। वे न केवल हौसला बढ़ातीं बल्कि यह भी सुनिश्चित करतीं कि कोई पोती को परेशान न करे। कभी शीशे टूट जाते तो दादी ही माफी मांगकर मामला शांत कर देतीं। भूपिंदर सिंह अपनी दुकान पर व्यस्त रहते, इसलिए दादी ही अमनजोत की सबसे बड़ी सहारा बनीं। अमनजोत कहती हैं, दादी मेरी ताकत हैं। वे कहती थीं, देश के लिए खेलो, बाकी सब भगवान पर छोड़ दो।
2016 में एक पड़ोसी के सुझाव पर भूपिंदर ने अमनजोत को चंडीगढ़ की एक क्रिकेट अकादमी में दाखिला दिलाया। कोच नागेश गुप्ता ने उन्हें देखा और तुरंत ट्रेनिंग शुरू की। शुरू में अमनजोत गेंदबाज थीं, लेकिन कोच ने उन्हें ऑलराउंडर बनाया। 2017-18 में पंजाब के लिए डेब्यू किया। 2019 में यूट्यूटीसीए चंडीगढ़ के लिए खेलीं। 2019-20 में बीसीसीआई वनडे ट्रॉफी में जगह मिली। अंडर-23 टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन किया। 2022 में इंडिया ए टीम में आईं। वुमेंस प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस के लिए खेलीं। राष्ट्रीय टीम में जगह बनाना आसान नहीं था। अमनजोत ने कड़ी मेहनत की। वे पढ़ाई में भी तेज हैं। एमए पूरा किया है। घर संभालना, क्रिकेट और पढ़ाई सब संतुलित रखा। मां रणजीत कौर कहती हैं, बेटी हर काम में ऑलराउंडर है।
फाइनल मैच में अमनजोत की फील्डिंग कमाल की थी। 42वें ओवर में दीप्ति शर्मा की गेंद पर वोल्वार्ड्ट ने बड़ा शॉट मारा। गेंद हवा में उछली। अमनजोत दौड़ीं और छलांग लगाकर कैच पकड़ा। पहले जुगली हुई लेकिन तीसरी कोशिश में सफल रहीं। वोल्वार्ड्ट 98 गेंदों पर 101 रन बना चुकी थीं। यह विकेट गिरा तो दक्षिण अफ्रीका की पारी लड़खड़ा गई। अमनजोत ने तजमिन ब्रिट्स को रन आउट भी किया। वे बाउंड्री बचाती रहीं। दो रनों को एक में बदला। गेंदबाजों को दबाव बनाए रखा। अमनजोत ने मैच के बाद कहा, यह कैच मेरी जिंदगी का सबसे यादगार पल है। हमने इतिहास रचा। भारतीय क्रिकेट अब अगले स्तर पर जाएगा।
यह जीत अमनजोत के परिवार के संघर्ष की मिसाल है। भूपिंदर सिंह ने अमनजोत की पहली बैट खुद बनाई। रात भर जागकर लकड़ी तराशी। अमनजोत को बैट न होने से पहले बैटिंग का मौका नहीं मिलता था। पिता की मेहनत ने बेटी को उड़ान दी। रोज साइकिल पर सेक्टर-26 ग्राउंड छोड़ते। कई बार रास्ते में रुकते। अमनजोत कभी हार नहीं मानी। वे कहतीं, मैं लड़की नहीं, लड़का हूं। छोटी बहन कमलजोत और भाई गुरकीरपाल सिंह भी सपोर्ट करते। बुआ हरविंदर कौर कहती हैं, पूरा परिवार मैच देखता रहा। हमें यकीन था कि अमनजोत जीतेगी। जीत के बाद घर में ढोल की थाप पर भांगड़ा हुआ। स्वागत की तैयारी चल रही है। मां राजमा चावल बनाने वाली हैं।
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