आज, 25 दिसंबर, 2025 को पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती है, जिसे संपूर्ण देश में 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है। वाजपेयीजी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को सेंट्रल प्रोविंसेस (अब मध्य प्रदेश) के ग्वालियर स्थित शिन्दे की छावनी में हुआ था। आपकी माता का नाम कृष्णा देवी था और आपके पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी, यूनाइटेड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध (अब उत्तर प्रदेश) के आगरा के बटेश्वर के निवासी थे। अटलजी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से बीए किया और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नारायण राव तरटे (या भूदेव शास्त्री) ने ग्वालियर में 16 वर्षीय अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में शामिल किया, कालांतर में अटलजी को संघ परिवार की मासिक पत्रिका, राष्ट्रधर्म और हिंदी साप्ताहिक पाञ्चजन्य के अलावा दैनिक समाचारपत्र स्वदेश और वीर अर्जुन का संपादक बनाया गया।
सर्वविदित है कि स्वतंत्र भारत में प्रथम लोकसभा का चुनाव 1951-52 में हुआ था, जिसमें अखिल भारतीय जनसंघ के तीन प्रत्याशी विजयी हुए थे। इस पार्टी का गठन नई दिल्ली के राघोमल आर्य कन्या उच्च विद्यालय (अब कन्या माध्यमिक विद्यालय) में 21 अक्टूबर, 1951 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में हुई थी, जिसमें बलराज मधोक एवं दीनदयाल उपाध्याय भी प्रमुख संस्थापक थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अटलजी को जनसंघ पार्टी के नेता, डॉ. मुखर्जी के साथ लगा दिया, अटलजी उन दिनों दिल्ली स्थित उत्तरी क्षेत्र के पार्टी मामलों के प्रभारी राष्ट्रीय सचिव थे। अतः 1952 के आम चुनाव में उन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सका, लेकिन लखनऊ की कांग्रेसी सांसद, विजय लक्ष्मी पंडित ने 1954 में लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया, क्योंकि उन्हें यूनाइटेड किंगडम में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त कर दिया गया था। लिहाज़ा 1955 में लखनऊ लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में अटलजी ने जनसंघ की ओर से अपना परचा भरा, लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे, इस उपचुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस की प्रत्याशी, शिवराजवती नेहरू की जीत हुई थी। लेकिन 1957 के आमचुनाव में अटलजी ने बलरामपुर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी, बैरिस्टर हैदर हुसैन को हराकर सदन में पहुंचे और फिर कभी लोकसभा तो कभी राज्यसभा के लिए चुनकर सदन में पहुंचते रहे, वह पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह कार्यकाल मात्र 13 दिनों का था, उसके बाद 1998 से 1999 और फिर 1999 से 2004 तक पूर्णकालिक कार्यकाल तक अपने पद पर रहे। अटलजी पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।
28 मई, 1996 को सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर चले दो दिवसीय वाद-विवाद के बाद प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने से पूर्व अटलजी ने सदन में अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए, जो बात कही, वह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा, उन्होंने अन्य बातों के साथ ही निम्नलिखित बात भी कही, जो स्वहित और राष्ट्रहित के अंतर को स्पष्ट करती है -
"...............सत्ता का खेल तो चलेगा। सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेगी, बिगड़ेगी, मगर यह देश रहेगा। इस देश का लोकतंत्र अमर रहेगा।........."
पिपराकलां (बलिया) स्थित अन्नू बाबा फाउंडेशन के अध्यक्ष, कैप्टन सोहन सिंह ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी की वैचारिक दृढ़ता, शब्दों की मर्यादा और राष्ट्र के प्रति अटूट समर्पण की भावना का अनुसरण करके ही भारतवर्ष को उच्चतम मानबिंदु तक ले जाने में सफल होंगे। बलिया के कुँवर सिंह डिग्री कॉलेज में अर्थशास्त्र के सह-प्रवक्ता, प्रवीण प्रताप सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी दूरदर्शिता दिखाते हुए भारत की आर्थिक प्रगति को नई दिशा दी, उनके निर्देशानुसार परिचालित, गोल्डन क्वाड्रिलैटरल परियोजना ने देश के चारों प्रमुख महानगरों को जोड़ा और व्यापार, उद्योग व निवेश को गति दी। दहियावां टोला, छपरा के रत्नेश कुमार सिंह ने कहा कि अटलजी ने अपनी पार्टी के साथ विपक्ष के नेताओं को भी अपने व्यक्तित्व से प्रभावित किया था और भारत को परमाणु-शक्ति से सम्पन्न करके दुनिया को भारत की शक्ति का परिचय दिया था।