Special Article: संघ शताब्दी वर्ष- राष्ट्र निर्माण के सौ वर्ष।

विश्व के सबसे विशाल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हाल ही में स्वर्णिम 100 वर्ष पूरे किए हैं। शताब्दी वर्ष संघ की 100 वर्षों की सतत यात्रा

Dec 24, 2025 - 16:48
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Special Article: संघ शताब्दी वर्ष- राष्ट्र निर्माण के सौ वर्ष।
संघ शताब्दी वर्ष- राष्ट्र निर्माण के सौ वर्ष।
भावना वरदान शर्मा 
प्रचार विभाग, ब्रज प्रांत राष्ट्र सेविका समिति

विश्व के सबसे विशाल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हाल ही में स्वर्णिम 100 वर्ष पूरे किए हैं। शताब्दी वर्ष संघ की 100 वर्षों की सतत यात्रा पर चिंतन करने का वर्ष है। किस प्रकार संघ ने  भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रत्येक क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान दिया है। इस वर्ष  27 सितंबर  (विजयदशमी ) पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 100 वर्ष पूरे किए। अयोध्या में पथ संचलन एवं नागपुर में 1000 स्वयंसेवकों द्वारा भव्य समारोह एवं देश भर में  कार्यक्रमों के साथ शताब्दी वर्ष आरंभ हुआ। इस अवसर पर एक डाक टिकट और सौ रुपए का सिक्का भी जारी किया गया है जिस पर भारत माता एवं स्वयंसेवक की तस्वीर अंकित है। संघ के सौ वर्षों के गौरवशाली इतिहास और निरंतर राष्ट्र सेवा के उत्सव का यह क्षण है।

 आरएसएस एक ऐसा संगठन है जिसके सदस्यों ने देश की संस्कृति और भारतीय सभ्यता को पूर्ण रूप से  जीवन में आत्मसात किया है। अनुशासन, चरित्र निर्माण एवं हिंदू धर्म की मूल अवधारणा को चरितार्थ करना स्वयंसेवकों का उद्देश्य है। इसी उद्देश्य के साथ डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी ने सन् 1925 में संघ की स्थापना की। भारत की गौरवशाली संस्कृति, इसकी आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण संघ का मूल उद्देश्य है। 

आर एस एस की कार्यप्रणाली में शाखा का बहुत महत्व है। शाखा द्वारा स्वयंसेवकों को मानसिक एवं शारीरिक प्रशिक्षण दारा राष्ट्र सेवा के लिए तैयार किया जाता है। इसकी 83 हजार शाखाओं में युवाओं को व्यायाम, व्यक्तित्व विकास और शारीरिक एवं मानसिक दृढ़ता का प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें वैचारिक शिक्षा का भी बहुत महत्व है। संघ की मूल अवधारणा को समझने के लिए शाखा में जाना अत्यंत आवश्यक है। अपने मूल उद्देश्य "चरित्र 'निर्माण द्वारा व्यक्तित्व निर्माण"' इस चेतना का सूत्रपात देश के युवाओं में करने हेतु देश भर में संघ की शाखाएं संचालित हो रही हैं। इन 83 हजार शाखाओं में देशभर से बच्चों से लेकर वृद्ध तक हर उम्र के देशवासी प्रशिक्षण के लिए आते हैं । राष्ट्र प्रेम और हिंदू संस्कृति के प्रति गौरव का भाव लिए देशवासी शाखा में आते है और स्वयंसेवक बन कर राष्ट्र सेवा करते हैं ।

अक्सर लोग संघ में महिलाओं की भूमिका के बारे में प्रश्न करते हैं। देशभर से महिलाएं सक्रिय रुप से राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से देश सेवा का कार्य कर रही हैं। राष्ट्र सेविका समिति और संघ दोनों का मूल उद्देश्य एक ही है। महाराष्ट्र के वर्धा में लक्ष्मीबाई केलकर जी ने सन् 1936 में डॉ हेडगेवार के साथ विचार-विमर्श के बाद राष्ट्र सेविका समिति का गठन किया। तब से अब तक निरंतर राष्ट्र सेविका समिति द्वारा भारतीय महिलाएं राष्ट्र सेवा का कार्य कर रही हैं। शताब्दी वर्ष में संघ ने राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समय समय पर ना केवल भारतीय संतो, धर्माचार्यों, किसानों , शिक्षकों, चिकित्सकों और समाज के हर वर्ग से देशवासियों ने भरपूर सहयोग प्रदान मिला है।  पिछले सौ वर्षों का इतिहास संघ के स्वयंसेवकों के अथक परिश्रम और समर्पण की गाथा कहता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक संगठन के साथ-साथ एक विशाल परिवार है जिसमें आपसी संवाद, समर्पण और सभी के पारस्परिक सहयोग से सभी स्वयंसेवक एक परिवार की तरह कार्य करते हैं। स्वयंसेवकों की लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में अटूट आस्था है।  डॉक्टर हेडगेवार के अनुसार, "राष्ट्र तभी वास्तविक रूप से सशक्त होगा जब प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व के प्रति जागरूक होगा भारत तभी उन्नति करेगा जब प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के लिए जीना सीखेगा।"
देश में समय-समय पर आने वाली प्राकर्तिक आपदाओं जैसे महामारी, रेल-दुर्घटना, अकाल, बाढ़, आदि के समय संघ के स्वयंसेवकों ने सदैव बढ़-चढ़कर सहयोग प्रदान किया है। देश में आने वाली हर विपरीत परिस्थिति एवं आपातकाल में स्वयंसेवकों ने हर मोर्चे पर यथासंभव सहायता प्रदान की है। शताब्दी वर्ष में भी राष्ट्रसेवा की इसी भावना से देश के घर-घर में संपर्क किया जाएगा। 

समरसता संघ के मूल सिद्धांतों में से एक है।  देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों से देशवासियों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें बेहतर बुनियादी सुविधा देने के लिए संघ के लाखों स्वयंसेवक अथक परिश्रम कर रहे हैं। संघ ने सदैव सामाजिक समरसता को महत्व दिया है और समाज के वंचित एवं पीड़ित लोगों की सहायता कर सामाजिक न्याय की स्थापना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का कार्य किया है।  

संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है," राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए यह एक अनूठा आंदोलन है, जो सांस्कृतिक जागरूकता, अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है ‌।"विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ त्याग, समर्पण और राष्ट्रसेवा का आदर्श है। राष्ट्र निर्माण और भारत के सांस्कृतिक जागरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण संगठन है। फिर भी कुछ लोग द्वेषवश संघ के विषय में नकारात्मक बातें फैलाते हैं। किसी भी आलोचना की परवाह न करते हुए संघ के कार्यकर्ता समर्पित भाव से कार्य करते आ रहे हैं।

देश पर आने वाली हर आपदा के समय स्वयंसेवक अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हैं। सन् 1947 अक्टूबर में जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर की सीमा लांघने का प्रयास किया तो  भारतीय सैनिकों के साथ-साथ स्वयंसेवकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान दिया। विभाजन के समय पाकिस्तान से आए हजारों शरणार्थियों के लिए राहत कार्य किया। 1962 के युद्ध में भारतीय सेना की सहायता करने पुनः स्वयंसेवक सीमा पर पहुंचे और सैनिकों को हर प्रकार से सहयोग किया। तत्पश्चात 1965 में युद्ध के समय घायल सैनिकों के लिए रक्तदान करने के लिए और कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का कार्य करने के लिए स्वयंसेवक हजारों की संख्या में कश्मीर पहुंचे। गोवा के भारत में विलय के समय और 1975 के आपातकाल में जनता पार्टी के गठन के समय भी संघ की विशेष भूमिका रही है। सन् 1955 में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना के समय, 1971 में उड़ीसा में आए भीषण चक्रवात के समय, भोपाल गैस त्रासदी, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के समय संघ के स्वयंसेवकों ने राहत और सेवा कार्य में अतुलनीय योगदान दिया। संघ के स्वयंसेवक मा भारती की सेवा के लिए हर क्षण तैयार रहते हैं और जब भी आवश्यकता पड़ती है सर्वप्रथम सेवा के लिए पहुंचते हैं।

प्रधानमंत्री जी ने कहा है ,"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रस्तावित पंच परिवर्तन संकल्प भारत को वैश्विक स्तर पर एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करेंगे और आत्मनिर्भर बनाएंगे। स्वबोध, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार और पर्यावरण भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाएंगे और 2047 तक विकसित भारत के आधारभूत स्तंभों के रूप में कार्य करेंगे। वैश्विक स्तर पर भारत विविध चुनौतियों का सामना करते हुए एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित होगा।"

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