सहायक आयुक्त की नाकामी: छात्रावासों पर खोया नियंत्रण, 15 दिन बाद भी आदेश बैतूल से छात्रावास नहीं पहुंचा; अधीक्षक-बाबू की मनमानी, मीडिया से दूरी बनाकर सवालों से बचाव।
मध्यप्रदेश के बैतूल में सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग में चल रहा भारी गोलमाल यहाँ आये अधिकारी को खिलाड़ी बनने में ज्यादा समय लगता ही नही है नए आये सहायक
रिपोर्ट- शशांक सोनकपुरिया, बैतूल मध्यप्रदेश
- छात्रावासों पर नही सहायक आयुक्त का नियंत्रण,खुद जारी किए आदेश का नही करवा पा रहे अधीक्षकों से पालन,15 दिन बाद भी जनपद बैतूल से छात्रावास तक नही पहुँच आया आदेश,बाबू कर रहे अपनी मनमानी, अधीक्षक उठा रहा मौके का फायदा,वहीं मीडिया से बनाई सहायक आयुक्त ने दूरी जवाब देने से बचने के लिए कर रखे है नम्बर ब्लैकलिस्ट, मामले में उठ रहे कई सवाल
मध्यप्रदेश के बैतूल में सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग में चल रहा भारी गोलमाल यहाँ आये अधिकारी को खिलाड़ी बनने में ज्यादा समय लगता ही नही है नए आये सहायक आयुक्त ने भी यह गुर आसानी से सीख लिया है कि कुछ भी करो कोई पूछने वाला नही है बस मीडिया से दूरी बनाओ और अपनी दुकान चलाओ जब मीडिया सवाल पूछने पहुँचे तो समय ही मत दो फिर कौन है इन्हें रोकने वाला खैर अब बात करते है चर्चाओं में गरम मामले की यहाँ बीते दिनों शासकीय आदिवासी सीनियर बालक छात्रावास का एक मामला सामने आया था अधीक्षक विवाद खत्म होने का नाम ही नही ले रहा है।
आपको बता दें कि कुछ दिन पूर्व सहायक आयुक्त द्वारा एक आदेश निकाला गया था जिसमे वर्तमान अधीक्षक नारायण सिंह नगदे को हटाकर देवपुर कोटमी में पदस्थ सहायक शिक्षक को प्रभार सौपा गया था पर अधीक्षक द्वारा प्रभार छोड़ा ही नही जा रहा है और नए अधीक्षक को बाहर बैठना पड़ रहा है जबकि अधीक्षक अभी छुट्टी भी चले गए थे तो चार्ज किसी और को देकर गए इस मामले को लेकर हमारे द्वारा ख़बर भी उठाई गई थी जिसके बाद सहायक आयुक्त द्वारा नए अधिक्षक को कार्यालय में ही बुला लिया गया पर पुराने अधिक्षक से चार्ज दिलवाने की जहमत भी श्रीमान उठाना नही चाह रहे है या दाल में कुछ काला है अब इससे तो यही कयास लगाए जा रहे है कि सहायक आयुक्त का छात्रवासों पर कोई नियंत्रण ही नही रह है।
इसीलिए तो आदेश की खुली अवहेलना के बाद भी कोई कार्यवाही पुराने अधीक्षक पर नही की गई जबकि आदेश जनपद पंचायत बैतूल पहुचने की जानकारी मिली है पर आज तक अधीक्षक तक यह आदेश नही पहुँच पाया है जबकि छात्रावास की दूरी कार्यालय से महज 300 मीटर भी नही है बावजूद इसके 15 दिन बाद भी आदेश नही पहुँच पाना एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है यहाँ एक सवाल यह भी उठ रहा है कि एक आदेश निकालने के बाद फिर से अधिक्षक को कार्यालय में बुलाकर बैठा लेना और जबरन ही नए अधिक्षक को प्रताड़ित किये जाने जैसा भी आभास हो रहा है खैर अब देखने वाली बात यह होगी कि इस ख़बर के प्रकाशित होने के जिला कलेक्टर मामले में संज्ञान लेंगे या भगवान भरोसे ही सहायक आयुक्त जनजातिय कार्य विभाग चलेगा।
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