सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गिरफ्तारी के हर मामले में लिखित कारण बताना अनिवार्य, अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी अवैध।
भारतीय न्याय व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा को मजबूती देने वाला एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर 2025 को स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति
भारतीय न्याय व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा को मजबूती देने वाला एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर 2025 को स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय पुलिस को गिरफ्तारी के सभी कारण लिखित रूप में बताना अनिवार्य होगा। यह फैसला सभी अपराधों और कानूनों पर लागू होगा, चाहे वह भारतीय दंड संहिता (अब भारतीय न्याय संहिता या बीएनएस) के तहत हो या विशेष कानूनों जैसे मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) या गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत। कोर्ट ने कहा कि यह संवैधानिक अधिकार है, जो अनुच्छेद 22(1) से जुड़ा है। गिरफ्तारी के कारण आरोपी की समझी जाने वाली भाषा में लिखित रूप से बताए जाएंगे। यदि ऐसा न हो, तो गिरफ्तारी और उसके बाद की रिमांड अवैध मानी जाएगी, और आरोपी को रिहा करने का अधिकार मिलेगा। यह फैसला मुंबई के 2024 बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन मामले से जुड़े अपीलों पर आया, जो व्यक्तिगत आजादी की रक्षा में मील का पत्थर साबित होगा।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की बेंच ने सुनाया। 52 पेज के फैसले में न्यायमूर्ति मसीह ने लिखा कि गिरफ्तारी के कारण बताना कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूलभूत सुरक्षा कवच है। अनुच्छेद 22(1) कहता है कि गिरफ्तारी के तुरंत बाद आरोपी को गिरफ्तारी के कारण बताए जाएंगे। कोर्ट ने जोर दिया कि यह सभी मामलों में बिना अपवाद के लागू होगा। यदि गिरफ्तारी के समय लिखित कारण देना संभव न हो, जैसे कि अपराध के दौरान मौके पर पकड़े जाने वाले मामलों में, तो पहले मौखिक रूप से बताया जा सकता है। लेकिन लिखित कारण उचित समय में और कम से कम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने से दो घंटे पहले जरूर दिए जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी और रिमांड दोनों अवैध होंगे। आरोपी को तुरंत रिहा किया जा सकेगा। कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि यह फैसला सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजा जाए।
यह फैसला मुंबई के वर्ली इलाके में 7 जुलाई 2024 को हुए बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन मामले से जुड़ा है। इस हादसे में आरोपी मिहिर राजेश शाह ने अपनी कार से एक स्कूटर को टक्कर मार दी, जिसमें एक महिला की मौत हो गई। मिहिर ने गिरफ्तारी को चुनौती दी, क्योंकि पुलिस ने उन्हें लिखित कारण नहीं बताए। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपराध की गंभीरता का हवाला देकर गिरफ्तारी को वैध माना, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता के आधार पर संवैधानिक अधिकारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मिहिर के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंहवी और सिद्धार्थ शर्मा ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी बिना लिखित कारण के असंवैधानिक है। कोर्ट ने अपील की मेरिट पर नहीं गया, लेकिन कानूनी सवालों पर फैसला सुनाया। इससे स्पष्ट हो गया कि बीएनएस की धारा 47 के तहत गिरफ्तारी के कारण बताना सभी मामलों में जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस मुद्दे पर जोर दिया था। फरवरी 2025 में पंकज बंसल बनाम भारत संघ मामले में कोर्ट ने सुझाव दिया था कि गिरफ्तारी के कारण लिखित रूप में बताना आदर्श तरीका है। लेकिन अब यह सुझाव अनिवार्य हो गया है। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रक्रिया के अनुसार ही छीना जा सकता है। अनुच्छेद 22(1) इसकी मजबूती देता है। यदि कारण आरोपी की भाषा में न बताए जाएं, तो यह अधिकारों को खोखला बना देगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी अवैध होने पर जांच, चार्जशीट या मुकदमे पर असर नहीं पड़ेगा। लेकिन आरोपी को तुरंत रिहाई मिलेगी। यदि बाद में हिरासत चाहिए, तो जांच एजेंसी को कारणों के साथ देरी का स्पष्टीकरण देना होगा, और मजिस्ट्रेट को एक हफ्ते में फैसला करना होगा। कोर्ट ने चार बाध्यकारी नियम बनाए: पहला, सभी अपराधों में गिरफ्तारी के कारण बताना अनिवार्य। दूसरा, लिखित रूप में आरोपी की भाषा में। तीसरा, अपवाद में मौखिक, लेकिन लिखित दो घंटे पहले। चौथा, अनुपालन न करने पर रिहाई।
यह फैसला भारतीय पुलिस व्यवस्था में बदलाव लाएगा। पहले विशेष कानूनों में ही लिखित कारणों का प्रावधान था, लेकिन अब बीएनएस और आईपीसी के सभी मामलों में लागू होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे मनमानी गिरफ्तारियां कम होंगी। मानवाधिकार कार्यकर्ता राधिका गुप्ता ने कहा, "यह व्यक्तिगत आजादी की जीत है। पुलिस को अब जवाबदेह बनना पड़ेगा।" वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, "सुप्रीम कोर्ट ने फिर संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की।" लेकिन कुछ पुलिस अधिकारी चिंता जता रहे हैं। दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "मौके पर गिरफ्तारी में लिखित कारण देना व्यावहारिक नहीं। लेकिन कोर्ट के निर्देश मानेंगे।" गृह मंत्रालय ने राज्यों को दिशानिर्देश जारी करने को कहा है। ट्रेनिंग में अब इस पर जोर दिया जाएगा। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में 20 लाख से ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें कई पर मनमानी के आरोप लगे। यह फैसला उन पर लगाम लगाएगा।
फैसले के प्रभाव व्यापक हैं। यह गरीब और अशिक्षित लोगों की रक्षा करेगा, जो अक्सर गिरफ्तारी के कारण नहीं समझ पाते। कोर्ट ने कहा कि कारणों में दस्तावेजी साक्ष्य का आधार होना चाहिए। यदि ऐसा न हो, तो गिरफ्तारी अवैध। यह फैसला अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों से मेल खाता है। संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देश भी गिरफ्तारी के कारण बताने पर जोर देते हैं। भारत में अब पुलिस को गिरफ्तारी मेमो में लिखित कारण भरना होगा। मजिस्ट्रेट को रिमांड देते समय अनुपालन जांचना होगा। यदि न हो, तो रिहाई का आदेश। यह बदलाव आपराधिक न्याय प्रणाली को मजबूत बनाएगा। वकीलों को अब गिरफ्तारी के तुरंत बाद लिखित कारण मांगने का अधिकार मिलेगा।
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