गीत: काफिला  बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी जारी हैं....

क्या  राजा  और  क्या  रंक, ये हर  क्षत्रिय  की समझ  बलिहारी हैं, काफिला  बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी  जारी हैं....

Sep 10, 2024 - 13:02
Sep 10, 2024 - 13:03
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गीत: काफिला  बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी जारी हैं....

गीत

काफिला बढ़ रहा हैं.... 

काफिला बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी जारी है।
जो  कुरीतियों के विरुद्ध  खड़े है  उनका  एहसान  भारी  है।
ये  हौंसलों और  हिम्मत की नहीं,
तप  और  त्याग की अब  बारी है।
क्या  राजा  और  क्या  रंक, ये हर  क्षत्रिय  की समझ  बलिहारी हैं।
काफिला  बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी  जारी हैं।
हम  बाहर  वालों से  क्या  कहें , जब हम  स्वयं  ही विषधर बने।
एक  रहे , मजबूत  बने  हम, योध्दा और  बलवान  बने।
छोड़  कर मद  और सूरती, समाज के  पहरेदार बने ।
उठो और  आगाज  करो , ये  विष  हम पर  भारी हैं।
काफिला  बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी जारी है।
अपनी  ही सन्तानों को  पल- पल मिटते देख रहे हैं।
कुछ  कर  नहीं सकते हैं, इन्हें  दरिया  हमनें  ही दिखाई  हैं।
धर्म , समाज  और  संस्कृति  हमनें ही  छुडाई है।
आओं  समय  रहते  ही बचाएँ  अपनी  नवपीढ़ी को।
काफिला बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी जारी है।
कुरीतियों से  भरा हुआ है, और  क्षात्र धर्म  कही  खो गया।
अहं और  अकड़  जागे हैं और  क्षत्रिय  कहीँ  सो  गया।
प्रभु के  हाथ की  माला  था, पर  मनका  मनका  बिखर गया।
आओं  और  कोशिश  करो  मनको की माला  बनानी है।
काफिला बढ़ रहा हैं और संघर्ष अभी ज़ारी है।
जो  कुरीतियों के विरुद्ध खड़े है उनका एहसान  भारी है।

- रतन खंगारोत

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