कहानी- 'अपराजिता', सुंदर और बहुत ही मेहनती लड़की लोपा....
जीवन से भरी सुंदर और बहुत ही मेहनती लड़की थी लोपा। अपने पिता की मृत्यु के बाद मां और दो छोटी बहनों के साथ शहर किनारे बसी गरीब बस्ती...

कहानी- 'अपराजिता'
जीवन से भरी सुंदर और बहुत ही मेहनती लड़की थी लोपा। अपने पिता की मृत्यु के बाद मां और दो छोटी बहनों के साथ शहर किनारे बसी गरीब बस्ती में मां के कामों में हाथ बंटाती अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगी थी। मां पास के घरों में खाना बनाने का काम कर रही थीं।
दोनो छोटी बहने पास के सरकारी स्कूल में पढ़ रही थीं और लोपा स्नातक पूरी करके कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती और उनसे मिले पैसे से मां की घरखर्च में मदद करती। उसका एक ही सपना था अपनी बहनों की उच्च शिक्षा और खुद के लिए एक अच्छी नौकरी।
दिन रात मेहनत करके छोटी छोटी खुशियों को जीते इस परिवार में उस दिन मानो प्रलय ही आ गई जब लोपा को जांच में पता चला कि उसे कैंसर है ।कैंसर का इलाज बहुत महंगा था। किसी तरह इलाज शुरू हुआ तो तन के साथ लोपा का मन भी दवाओं और बीमारी से हारने लगा। अस्पताल के एक कोने में पड़े बिस्तर पर बैठी लोपा अपने शरीर और चेहरे को शीशे में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। कीमोथेरेपी के दर्दनाक अहसास और दवाओं ने उसके सुंदर लहराते बाल भी छीन लिए थे।
वह उदास बैठी थी तभी सामने से काउंसलर आते दिखाई दिए। पास आकर उन्होंने लोपा का हाल पूछा और उसके उदास चेहरे से मन की स्थिति को भांप लिया। समझाते हुए उन्होंने कहा"लोपा तुम तो बहुत बहादुर हो और पिता के न रहने पर तुमने अपनी मां और बहनों के प्रति खूब जिम्मेदारी निभाई ।अब इस छोटी सी बीमारी से हार मान गई ।याद रखो मन के हारने से हमारी हार होती है ।इसीलिए कोशिश नही छोड़नी चाहिए।बाकी ईश्वर पर छोड़ दो।
अपनी जिंदगी का सपना याद करो और जुट जाओ जी जान से फिर ये बीमारी तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ पाएगी।"
उनके ये शब्द लोपा को झकझोर से गए।
उसने आंखे बंद की और ध्यान लगाया आंखों के सामने मां और बहनों का चेहरा घूम गया।लोपा ने दृढ़ निश्चय से गहरी सांस ली। अगले ही पल ईश्वर को याद करते हुए किसी अपराजिता की भांति मन को मजबूत कर लिया कैंसर से जीतने के लिए। उसने ठान लिया था की अपनी मां और बहनों के लिए उसे इस बीमारी से बाहर आना ही है।
साल भर के अंदर उसकी बीमारी कम होने लगी और नियमित ध्यान और योग करने से मन भी मजबूत । लोपा लौट आई कैंसर को हरा कर अपराजिता होकर और फिर से जुट गई अपने सपने को साकार करने में,शीघ्र ही उसे एक नौकरी मिल गई और जल्द ही वो अपनी बहनों और मां को साथ ले आई ।अब अग्रसर थी वो जिंदगी के सुनहरे सपनों की राह पर।
मीतू मिश्रा
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