Special Article: नए वित्तीय वर्ष में शेयर बाजार में तेजी की कितनी गुंजाइश? क्या कहते हैं आर्थिक आंकड़े?

शेयर बाजार की पहेली को समझना कठिन है. पिछले छह महीनों में बाजार में उतार-चढ़ाव ने तमाम विश्लेषणों को गलत साबित कर दिया...

Apr 4, 2025 - 19:25
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Special Article: नए वित्तीय वर्ष में शेयर बाजार में तेजी की कितनी गुंजाइश? क्या कहते हैं आर्थिक आंकड़े?

लेखक: विक्रांत निर्मला सिंह

Special Article: शेयर बाजार की पहेली को समझना कठिन है. पिछले छह महीनों में बाजार में उतार-चढ़ाव ने तमाम विश्लेषणों को गलत साबित कर दिया, जो हर रोज़ अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर दिखाई देते रहे. इसका सबसे बड़ा नुकसान उन छोटे निवेशकों को हुआ, जो इन्हीं सूचनाओं के आधार पर बाजार में पैसा लगाते रहे. इस दौरान दुनिया की तमाम घटनाओं की आड़ में रिकवरी की खूब चर्चा हुई, लेकिन परिणाम जस का तस रहा. इस बीच जो विषय चर्चा से लगभग गायब रहा, वह था भारतीय अर्थव्यवस्था का वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन. असल में शेयर बाजार का उतार-चढ़ाव देश की अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन से गहराई से जुड़ा होता है. जब अर्थव्यवस्था में तेजी आती है, तो इसका अर्थ होता है मांग, उत्पादन और रोजगार जैसे कारकों में वृद्धि. इसका सीधा असर शेयर बाजार में तेजी के रूप में दिखाई देता है. भारतीय शेयर बाजार की स्थिति भी पिछले छह महीनों में कुछ ऐसी ही रही। 

आर्थिक दृष्टिकोण से पिछली दो तिमाही निराशाजनक रही थी, और बाजार में आई गिरावट भी उसी के अनुरूप देखने को मिली. बीएसई सेंसेक्स ने अपना सर्वकालिक उच्च स्तर बीते 27 सितंबर को छुआ था, जब यह 85,978.25 के आंकड़े तक पहुंच गया था. इसके बाद से शेयर बाजार में लगातार गिरावट रही और अब इस स्तर को हासिल करने में लम्बा समय लगेगा. वास्तव में, इस अवधि के दौरान अर्थव्यवस्था से भी जुड़े जो आंकड़े सामने आए, वे इस गिरावट के कारणों को उजागर कर रहे थे. इसके अतिरिक्त, वैश्विक परिस्थितियाँ भी इस गिरावट को और गहरा करने में सहायक रहीं।  

  • आर्थिकी और शेयर बाजार: कैसा रहा उतार-चढ़ाव? 

यदि चालू वित्त वर्ष में आर्थिकी और बाजार की तुलना की जाए, तो यह तर्क पूरी तरह सही प्रतीत होता है कि 'शेयर बाजार को अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर कहा जाता है'. यह संकेत देता है कि अर्थव्यवस्था उन्नति पर है या गिरावट की ओर. वित्त वर्ष 2024-25 के पहली तीन तिमाहियों में वास्तविक जीडीपी क्रमशः 6.7%, 5.6% और 6.2% रही. इसमें दूसरी तिमाही की वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रही, और इसके बाद ही शेयर बाजार में गिरावट का दौर शुरू हुआ. यह तिमाही इसलिए निराशाजनक थी क्योंकि वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में वास्तविक जीडीपी 8.1% रही थी. यहीं से बाजार में सुधार (करेक्शन) देखने को मिले. यही समय था जब एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) की बिकवाली बढ़ने लगी और बाजार में मंदी की बात शुरू हुई। 

हालाँकि इस गिरावट की चेतावनी भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने पहले ही दे दी थी. अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2021 में आरबीआई ने शेयर बाजार में 'बबल' (आर्थिक बुलबुले) का उल्लेख किया था. वित्तीय या आर्थिक संदर्भ में 'बबल' उस स्थिति को कहा जाता है जब किसी शेयर, वित्तीय परिसंपत्ति, किसी संपत्ति वर्ग या पूरे क्षेत्र का मूल्य उसकी वास्तविक मौलिक कीमत से कहीं अधिक हो जाता है। 

  • नए वित्तीय वर्ष में शेयर बाजार में तेजी की कितनी गुंजाइश? 

हल के दिनों में बाजार में सुधार की संभावनाएँ दिखाई दे रही हैं. यदि कुछ बुनियादी मानकों के आधार पर विश्लेषण किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि भारतीय बाजार के लिए आगे किसी बड़ी गिरावट की संभावना कम है. इस तर्क को मजबूती अर्थव्यवस्था की वृद्धि, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, बजटीय समर्थन और भू-राजनीतिक घटनाओं से मिलती है। 

1. आर्थिक गतिविधियों में तेजी

इस संभावित सुधार का पहला बड़ा कारण आर्थिक गतिविधियों में दिखाई दे रही मजबूती है. चालू तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6% से अधिक रहने की उम्मीद है, और वित्त वर्ष 2024-25 में वास्तविक जीडीपी 6.4% तक का अनुमान है. इसके साथ ही, महंगाई में आई बड़ी गिरावट भी मजबूत अर्थव्यवस्था के संकेत देती है. SBI Ecowrap रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2025 में भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) सात महीनों के निचले स्तर 3.6% पर पहुंच गई. चौथी तिमाही (Q4 FY25) में यह 3.9% तक रहने की संभावना है, जबकि पूरे वित्त वर्ष 2025 के लिए औसत 4.7% रहने का अनुमान है. इसका आशय यह है कि आर्थिक वृद्धि का पूरा लाभ अर्थव्यवस्था को मिलने वाला है. आय, उत्पादन और खपत में वृद्धि के साथ-साथ वास्तविक जीडीपी में भी सुधार होगा, जिससे अंततः शेयर बाजार को भी लाभ मिलेगा। 

2. औद्योगिक उत्पादन और कॉर्पोरेट प्रदर्शन

आर्थिक गतिविधियों के अन्य संकेतक भी शेयर बाजार में संभावित तेजी की तरफ इशारा कर रहे हैं. SBI Ecowrap रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 में भारत का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) 5.0% की दर से बढ़ा, जो पिछले आठ महीनों में सबसे अधिक था, जबकि दिसंबर 2024 में यह महज 3.2% था. पूंजीगत वस्तुएँ, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएँ, हेल्थकेयर, फार्मास्युटिकल्स आदि ने बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मजबूत साल-दर-साल वृद्धि दर्ज की. यह रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान 4000 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियों ने 6.2% की राजस्व वृद्धि दर्ज की, जबकि EBITDA (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की आय) 11% और प्रॉफिट आफ्टर टैक्स (PAT) 12% बढ़ा। 

3. आरबीआई की नीतियाँ और तरलता में वृद्धि

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा तरलता बढ़ाने के उपायों का सकारात्मक असर शेयर बाजार पर दिख सकता है. हाल ही में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने नीतिगत दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी. 2025 में आरबीआई द्वारा कम से कम 75 बेसिस पॉइंट की कटौती की संभावना है, जिसमें अगली कटौतियाँ अप्रैल और अगस्त में हो सकती हैं. यह कदम बाजार में तरलता बढ़ाने और निवेश को प्रोत्साहित करने में सहायक होगा. अगर ऐसा होता है, तो बाजार में तरलता बढ़ेगी और इससे शेयर बाजार में पूंजी प्रवाह भी तेज होगा. परिणामस्वरूप, तेजी दिखाई पड़ेगी।  

4. बजट से उपभोक्ता मांग को बढ़ावा

सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट 2025 ने कर राहत के माध्यम से उपभोक्ता मांग को मजबूत करने के लिए बड़ा प्रोत्साहन दिया है. 12 लाख रुपये तक की आय को कर-मुक्त करने के निर्णय से बड़ी संख्या में खुदरा निवेशक शेयर बाजार की ओर आकर्षित हो सकते हैं. जैसे ही खुदरा निवेशकों का प्रवाह बाजार में बढ़ेगा, इसका सकारात्मक प्रभाव शेयर बाजार पर देखने को मिलेगा. इसके अलावा, बड़े स्तर पर पूंजीगत खर्च भी आर्थिक गतिविधियों को बल देगा, जिससे आय, रोजगार, उत्पादन और मांग पर सकारात्मक प्रभाव दिखाई पड़ेगा. अर्थव्यवस्था के बेहतर होने से शेयर बाजार भी सकारात्मक रुख दिखाएगा। 

5. वैश्विक स्थिरता से ग्लोबल इकॉनमी में आएगी तेजी

आज ग्लोबल इकॉनमी के लिए जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वह स्थिरता है. पिछले दो सालों से रूस और यूक्रेन के युद्ध ने ग्लोबल सप्लाई चेन को प्रभावित कर रखा है. अब ट्रंप की टैरिफ नीति भी इसे प्रभावित कर रही है. ऐसे में आज अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए स्थिरता बेहद ज़रूरी है. हाल के दिनों में रूस और यूक्रेन के बीच जंग रोकने के प्रयास बढ़े हैं. खासतौर पर अमेरिका इसके लिए मध्यस्थता कर रहा है. अगर किसी बिंदु पर दोनों देश युद्ध समाप्ति की सहमति पर जल्द ही पहुंच जाते हैं, तो यह एक बड़ी वैश्विक घटना होगी. इससे अर्थव्यवस्था को नया बल मिलेगा और प्रतिबंध झेल रहे रूस को राहत मिलेगी. ऐसे में एक बार फिर ग्लोबल सप्लाई चेन, जिसमें रूस एक अहम हिस्सा है, के शामिल होने से सुधार होगा। 

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इसके अलावा, भारत और अमेरिका ट्रेड डील को लेकर अंतिम बातचीत के दौर में हैं. अगर यह दोनों देशों के हित में सफल रही, तो इससे भारत को टैरिफ वार, खासतौर पर रेसिप्रोकल टैरिफ, से काफी राहत मिलेगी. अगर ऐसा होता है, तो भारतीय शेयर बाजार में तेजी देखने को मिलेगी। 

इस नए वित्त वर्ष में शेयर बाजार में तेजी की संभावनाएँ आर्थिक गतिविधियों में तेजी के साथ ही वैश्विक घटनाओं पर निर्भर करती हैं. अगर घरेलू आर्थिक तेजी बरकरार रहती है, तो इससे विदेशी निवेशक आकर्षित होंगे और बाजार में तेजी दिखेगी. इसके अलावा, भारत के शेयर बाजार को लेकर एक सकारात्मक दृष्टिकोण यह भी है कि एक बड़ी युवा आबादी यहाँ निवेश कर रही है, बाजार में नए डीमैट खाते खुल रहे हैं, और भारत एक स्ट्रैटेजिक प्लान के साथ सेक्टर-स्पेसिफिक ग्रोथ को बढ़ावा दे रहा है. इसका उदाहरण हाल के वर्षों में डिफेंस सेक्टर है. इसलिए, भारतीय बाजार के लिए आशावादी होना स्वाभाविक है। 

(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला में शोधार्थी और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं)

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