अयोध्या में पितृ पक्ष में भरतकुंड का विशेष महत्व है।
भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का तर्पण भी यही किया था श्राद्ध किया था...

रिपोर्ट- देव बक्स वर्मा
अयोध्या। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की धर्म नगरी अयोध्या में एक से बढ़कर एक पौराणिक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है उसमें से एक स्थान भरत कुंड है जहां पर भगवान राम के अनुज भरत जी ने राम जी के 14 वर्ष वनवास जाने के बाद 14 वर्षों तक राम जी की खड़ाऊ प्रतीक के रूप में रखकर तपस्या किया था और वहीं से अयोध्या का राज देखा था। भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का तर्पण भी यही किया था श्राद्ध किया था। अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर प्रयागम रोड पर स्थित श्रीराम के छोटे भाई भरत की तपोस्थली नंदीग्राम भरतकुंड है। पितृपक्ष में भारत कुंड पर पिंडदान करने वालों का पता लगा रहता है दूर दराज से लोग भारत कुंड पहुंच रहे हैं और पूरे पितृपक्ष भर मेला जैसा माहौल रहता है । बताया जाता है कि गया जाने वाले प्रथम पिंडदान भरत कुंड पर ही करते हैं इन दिनों अपने पित्रों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का समय है | पितृपक्ष के मौके पर देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ जमा है | अयोध्या के उस पवित्र स्थान के बारे में जहां महाराजा राम ने अपने पितरों का पिंडदान किया था | अयोध्या में पितृ पक्ष में भरतकुंड का विशेष महत्व है। भरतकुंड में भगवान श्रीराम के अनुज भरत ने सिर्फ यहां तपस्या ही नहीं की थी बल्कि वनवास के बाद भगवान श्रीराम ने इसी भरतकुंड पर अपने पिता महराज दशरथ का श्राद्ध व तर्पण भी किया था।
अयोध्या के भरतकुण्ड नंदीग्राम गयापिंड का अपना अलग महत्व है। अपने पूर्वजों की आत्मा के शांति के लिए पितृपक्ष में बड़ी संख्या में लोग यहाँ आकर श्राद्ध करते है।ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में भरत के आग्रह पर श्री राम ने अपनी पिता राजा दशरथ का श्राद यहीं किया था और हनुमान जी श्राद्ध के लिए गया से पूरी 16 विष्णु पद पिंडी उठा लाये थे जिसके बाद यही पर श्रीराम सहित चारों भाईयों के साथ पित्रात्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया।उसके बाद श्रीराम के आदेश पर हनुमान जी 1 पिण्डी यहाँ छोड़कर बाकी 15 पिंडी गया पहुचा आये। तब से लेकर बिना यहाँ आये, गया यात्रा का पुण्य नहीं मिलता और नंदीग्राम में पिण्डदान करने से पूर्वजो की आत्मा को शांति मिलती है। कहा जाता है कि अगर भरतकुंड में आपने पिंडदान नहीं किया तो आप का पिंडदान तर्पण नहीं माना जाएगा। इसी मान्यता को लेकर बिहार के गया जाने से पहले लोग अपने पूर्वजों को तर्पण के लिए भरतकुंड पहुंचते हैं। ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक, आध्यात्मिक केंद्र है ।
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नंदीग्राम भरत कुंड क्या है?
नंदीग्राम भरत कुंड के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान राम के भाई भरत ने राम के वनवास से लौटने के लिए तपस्या की। मान्यता है कि राम जब 14 वर्ष के वनवास के लिए राजपाट छोड़कर चले, तो भरत भी उनके साथ हो लिए। राम के कहने के बाद नंदीग्राम पर ही भरत ने श्रीराम की की खड़ाऊं को प्रतीक के तौर लेकर अयोध्या का राजपाट चलाने लगे। 14 वर्ष बनवास खत्म कर जब राम अयोध्या वापस लौटे तो यहीं पर भरत से मिले। पिता के पिंडदान के लिए नंदीग्राम में कुंड का निर्माण कराया गया, जिसे भरतकुंड के रूप में माना गया। यहीं पर भरत और हनुमान की मुलाकात हुई और एक दूसरे को गले लगाया था। यह एक शांतिपूर्ण और निर्मल जगह है। लोग श्राद्ध समारोह (दिवंगत लोगों के लिए प्रार्थना) करने के लिए भी यहां पर ही आते हैं और कुंड में डुबकी लगाते हैं। भरतकुंड के दूसरे छोर पर गया वेदी है। इस वेदी पर पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण करने हेतु गया (बिहार) जाने से पूर्व यहां पिंडदान की अनिवार्यता होने के कारण हिंदू धर्म में इस स्थान का बड़ा महत्व है।
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