पीलीभीत में बांग्लादेशी शरणार्थियों को 62 साल बाद जमीन का हक- योगी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, 2,196 परिवारों को राहत। 

Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में बसे 2,196 बांग्लादेशी शरणार्थी परिवारों को 62 साल बाद जमीन का मालिकाना हक मिलने जा रहा है। मुख्यमंत्री ...

Jul 25, 2025 - 12:27
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पीलीभीत में बांग्लादेशी शरणार्थियों को 62 साल बाद जमीन का हक- योगी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, 2,196 परिवारों को राहत। 
पीलीभीत में बांग्लादेशी शरणार्थियों को 62 साल बाद जमीन का हक- योगी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, 2,196 परिवारों को राहत। 

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में बसे 2,196 बांग्लादेशी शरणार्थी परिवारों को 62 साल बाद जमीन का मालिकाना हक मिलने जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 21 जुलाई 2025 को एक उच्चस्तरीय बैठक में अधिकारियों को इन परिवारों को कानूनी स्वामित्व देने का निर्देश दिया। यह फैसला पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से 1960-1975 के बीच विस्थापित होकर आए हिंदू परिवारों की दशकों पुरानी मांग को पूरा करता है। इन परिवारों को 1960 में पीलीभीत के 25 गांवों में घर और खेती के लिए जमीन दी गई थी, लेकिन कानूनी हक न मिलने से वे सरकारी योजनाओं से वंचित रहे। इस कदम से उनके जीवन में सम्मान और स्थिरता आएगी।

1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद हजारों हिंदू परिवार पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए। इनमें से कई परिवारों को उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बिजनौर, और रामपुर जिलों में बसाया गया। पीलीभीत के कालीनगर और पूरनपुर तहसीलों के 25 गांवों, जैसे तातारगंज, बामनपुर, बैला, सिद्ध नगर, शास्त्री नगर, और नेहरू नगर में 2,196 परिवारों को अस्थायी कैंपों के जरिए जमीन दी गई। हालांकि, कागजी गड़बड़ी, वन विभाग के नाम दर्ज जमीन, और नामांतरण की देरी जैसे कारणों से इन परिवारों को कानूनी मालिकाना हक नहीं मिला।

इसके चलते ये परिवार जमीन बेचने, कर्ज लेने, या सरकारी योजनाओं जैसे किसान सम्मान निधि और आवास योजना का लाभ लेने में असमर्थ रहे। कई परिवारों ने जमीन पर पक्के घर बनाए और खेती की, लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में उनके नाम दर्ज नहीं हुए। कुछ गांवों में मूल आवंटी परिवार अब मौजूद नहीं हैं, और कुछ जगहों पर बिना कानूनी प्रक्रिया के कब्जा हुआ, जिससे विवाद पैदा हुए।

21 जुलाई 2025 को लखनऊ में हुई बैठक में योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि इन परिवारों को जल्द से जल्द मालिकाना हक दिया जाए। उन्होंने कहा, "यह केवल जमीन के कागज देने का मामला नहीं, बल्कि उन परिवारों के संघर्ष और बलिदान को सम्मान देने का अवसर है, जिन्होंने भारत में शरण ली।" यह सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि इन परिवारों को संवेदनशीलता और सम्मान के साथ उनका हक मिले।

पीलीभीत के जिला मजिस्ट्रेट ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि 2,196 परिवारों में से 1,466 का सत्यापन पूरा हो चुका है, और उनकी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी जा चुकी है। अंतिम आदेश मिलते ही स्वामित्व प्रमाणपत्र वितरण शुरू हो जाएगा। कालीनगर और पूरनपुर तहसीलों के 25 गांवों में यह प्रक्रिया तेजी से चल रही है। जिले के प्रभारी मंत्री बलदेव सिंह औलाख ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया।

कई परिवारों की जमीन वन विभाग के नाम दर्ज है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति जरूरी हो सकती है। कुछ मामलों में गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट के तहत जमीन दी गई थी, जो 2018 में निरस्त हो चुका है। इसके लिए नए कानूनी विकल्प तलाशे जा रहे हैं। कुछ परिवारों ने बिना कानूनी प्रक्रिया के जमीन पर कब्जा किया, जिससे विवाद हैं। प्रशासन इन जटिलताओं को सुलझाने के लिए सत्यापन और सर्वे कर रहा है।

यह फैसला शरणार्थी परिवारों को न केवल कानूनी मान्यता देगा, बल्कि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिलाएगा। वे अब जमीन बेचने, कर्ज लेने, और विकास योजनाओं में शामिल होने के योग्य होंगे। स्थानीय बीजेपी नेता संजीव प्रताप सिंह और मनजीत सिंह ने इसे शरणार्थियों के बलिदान का सम्मान बताया। यह कदम क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक स्थिरता लाएगा। सोशल मीडिया पर भी इस फैसले की तारीफ हुई। एक यूजर ने लिखा, "छह दशकों बाद पीलीभीत के शरणार्थियों को न्याय मिला। यह योगी सरकार की संवेदनशीलता दिखाता है।"

योगी सरकार का यह फैसला पीलीभीत के 2,196 शरणार्थी परिवारों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है। 62 साल बाद उन्हें अपनी जमीन का कानूनी हक मिलेगा, जो उनके संघर्ष को सम्मान देगा। यह कदम सामाजिक न्याय और मानवता की मिसाल है। प्रशासन की तेजी और संवेदनशीलता से जल्द ही ये परिवार सम्मानजनक जीवन की ओर बढ़ेंगे।

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