Politics News: ‘रात गई, बात गई’: अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सुलह से राजस्थान कांग्रेस में नई उम्मीद।
राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस पार्टी लंबे समय से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चली आ रही गुटबाजी और मनमुटाव की वजह ...
राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस पार्टी लंबे समय से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चली आ रही गुटबाजी और मनमुटाव की वजह से चर्चा में रही है। यह टकराव न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच, बल्कि जनता और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच भी एक प्रमुख मुद्दा रहा है। हालांकि, 11 जून 2025 को स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दौसा में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में दोनों नेताओं का एक मंच पर साथ नजर आना और उनके बीच सौहार्दपूर्ण मुलाकात ने राजस्थान की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। इस मुलाकात को ‘रात गई, सो बात गई’ कहकर संबोधित किया जा रहा है, जो संकेत देता है कि गहलोत और पायलट ने पुराने गिले-शिकवे भुलाकर पार्टी को एकजुट करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
- गहलोत-पायलट विवाद
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनाव की शुरुआत 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद हुई, जब कांग्रेस ने 100 सीटों के साथ सत्ता हासिल की। उस समय सचिन पायलट, जो तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, को जीत का प्रमुख श्रेय दिया गया। उनकी युवा ऊर्जा और संगठनात्मक कौशल ने पार्टी को मजबूती दी थी। हालांकि, कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए अनुभवी नेता अशोक गहलोत को चुना, जबकि पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। यह निर्णय पायलट समर्थकों के बीच असंतोष का कारण बना।
2020 में यह तनाव चरम पर पहुंच गया, जब सचिन पायलट ने 18 समर्थक विधायकों के साथ गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत कर दी। पायलट ने सरकार पर कार्यशैली और समर्थकों की उपेक्षा का आरोप लगाया। इस दौरान पायलट और उनके समर्थक हरियाणा के मानेसर में एक रिसॉर्ट में चले गए, जिससे गहलोत सरकार पर संकट मंडराने लगा। इस सियासी युद्ध में गहलोत ने पायलट को “निकम्मा” और “नकारा” जैसे शब्दों से संबोधित किया, जिसने दोनों नेताओं के बीच खाई को और गहरा कर दिया। हालांकि, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मध्यस्थता के बाद संकट टल गया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच तल्खी बनी रही।
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार और सत्ता से बाहर होने के बाद यह गुटबाजी और अधिक उजागर हुई। गहलोत समर्थकों ने पायलट पर बगावत का आरोप लगाया, जबकि पायलट समर्थकों का मानना था कि गहलोत की कार्यशैली ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच सार्वजनिक मुलाकातें और संवाद लगभग बंद हो गए थे।
- 7 जून 2025: एक नई शुरुआत
7 जून 2025 को सचिन पायलट ने जयपुर में अशोक गहलोत के सिविल लाइंस स्थित सरकारी आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की। यह मुलाकात जुलाई 2021 के बाद पहली थी, जब दोनों नेता एक-दूसरे से मिले थे। पायलट ने गहलोत को अपने पिता, स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के लिए 11 जून को दौसा में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में आमंत्रित किया। इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने करीब डेढ़ से दो घंटे तक बंद कमरे में बातचीत की, जिसमें पार्टी संगठन, राजस्थान की राजनीति, और भविष्य की रणनीति पर चर्चा हुई। दोनों ने इस मुलाकात की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए, जिससे यह संदेश गया कि वे पुराने मतभेदों को भुलाने को तैयार हैं।
अशोक गहलोत ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, “सचिन पायलट ने मुझे स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के लिए आमंत्रित किया। मैं और राजेश पायलट 1980 में पहली बार लोकसभा पहुंचे और 18 साल तक साथ रहे। उनके आकस्मिक निधन से पार्टी को गहरा आघात लगा।” पायलट ने भी इस मुलाकात को सौहार्दपूर्ण बताते हुए गहलोत के प्रति सम्मान व्यक्त किया।
- 11 जून 2025: दौसा में एकजुटता का प्रदर्शन
11 जून 2025 को दौसा में आयोजित राजेश पायलट की पुण्यतिथि समारोह में अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक मंच पर नजर आए। इस कार्यक्रम में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, और पार्टी के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के प्रति सौहार्दपूर्ण रवैया दिखाया, और पायलट ने पत्रकारों से कहा, “कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं है। पुराने मतभेद बैठकर सुलझा लिए गए हैं।” गहलोत ने भी कहा, “मुझे सचिन पायलट से मोहब्बत है, मीडिया ने हमारे बीच झगड़ा कराया।” यह बयान ‘रात गई, सो बात गई’ की भावना को दर्शाता है।
- इस सुलह का महत्व
गहलोत और पायलट की सुलह राजस्थान कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
पार्टी की एकजुटता: 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का एक प्रमुख कारण गुटबाजी थी। गहलोत और पायलट के बीच सुलह से पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा और संगठन मजबूत होगा।
लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन: हाल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने गठबंधन के साथ 11 सीटें जीतीं, जो एक सकारात्मक संकेत है। गहलोत और पायलट की एकजुटता से 2028 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को फायदा हो सकता है।
युवा और अनुभव का संगम: गहलोत का अनुभव और पायलट की युवा ऊर्जा का संयोजन पार्टी को नई ताकत दे सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सुलह कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित कर सकती है।
सियासी धारणा में बदलाव: बीजेपी ने लंबे समय तक गहलोत-पायलट की खींचतान को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरा। इस सुलह से यह धारणा टूटेगी, जिससे पार्टी की छवि में सुधार होगा।
कार्यकर्ताओं और समर्थकों की प्रतिक्रिया
इस मुलाकात ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई उम्मीद जगाई है। सचिन पायलट के करीबी और पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने कहा, “यह बहुत अच्छी बात है कि गहलोत और पायलट साथ आए हैं। इससे हम अगला चुनाव जीत सकते हैं।” हालांकि, कुछ कार्यकर्ता अभी भी सतर्क हैं। एक एक्स पोस्ट में कहा गया कि कुछ नेता इस सुलह से असहज हैं और मानते हैं कि गहलोत और पायलट ही कांग्रेस नहीं हैं।
यह सुलह राजस्थान कांग्रेस के लिए एक नया अध्याय शुरू कर सकती है। हालांकि, कुछ सवाल अभी भी बाकी हैं:
क्या यह सुलह स्थायी होगी? अतीत में दोनों नेताओं के बीच सुलह के प्रयास हुए, लेकिन तल्खी फिर उभर आई। इस बार बिना आलाकमान की मध्यस्थता के हुई मुलाकात सकारात्मक संकेत है।
नेतृत्व का सवाल: 2028 के चुनाव में कांग्रेस का चेहरा कौन होगा? कार्यकर्ताओं में पायलट को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग उठ रही है।
बीजेपी की रणनीति: बीजेपी इस सुलह को कमजोर करने की कोशिश कर सकती है, जैसा कि उसने अतीत में किया।
Also Read- UP News: दुनिया का कोई मत, मजहब और संप्रदाय बताए कि पांच हजार वर्ष का इतिहास कितनों का है- योगी
अशोक गहलोत और सचिन पायलट की 7 जून और 11 जून 2025 की मुलाकात ने राजस्थान कांग्रेस में लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। ‘रात गई, सो बात गई’ की तर्ज पर दोनों नेताओं ने पुराने मतभेदों को भुलाकर एकजुटता का संदेश दिया है। यह सुलह न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए, बल्कि राजस्थान की जनता के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। गहलोत का अनुभव और पायलट की युवा ऊर्जा मिलकर कांग्रेस को 2028 के विधानसभा चुनाव में मजबूत स्थिति में ला सकती है। हालांकि, इस सुलह की स्थायित्व और इसका दीर्घकालिक प्रभाव अभी देखा जाना बाकी है। यह नई शुरुआत राजस्थान की सियासत में कांग्रेस के लिए एक नया अध्याय लिख सकती है, बशर्ते दोनों नेता इस एकजुटता को बनाए रखें।
What's Your Reaction?