जन्माष्टमी पर विशेष: जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की चरणस्थली वंशगोपाल तीर्थ में उमड़ी श्रद्धा।
Sambhal News: सम्भल में जन्माष्टमी पर्व धूमधाम और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर शनिवार को सुबह से ही श्रद्धालुओं का...
उवैस दानिश, सम्भल
सम्भल में जन्माष्टमी पर्व धूमधाम और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर शनिवार को सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता वंशगोपाल तीर्थ पर लगा रहा। तीर्थ पर पूजा-अर्चना, झूलन उत्सव और भजन-कीर्तन से माहौल भक्तिमय हो उठा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण सम्भल आए थे। उस समय सम्भल का नाम पिंगल था। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी संग आए थे कदंब के वृक्ष के नीचे विश्राम किया था। यहीं पर श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से यह भी कहा था कि वे अगला अवतार सम्भल में लेंगे। यही कारण है कि यह स्थान आज भी विशेष आस्था का केंद्र माना जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थल पर शीष नबाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
जन्माष्टमी पर यहां आने वाले श्रद्धालु भागवान को पालने में झुलाते हैं और संतान सुख की प्रार्थना करते हैं। वंशगोपाल तीर्थ की महिमा विष्णु पुराण और स्कंद पुराण सहित कई ग्रंथों में भी वर्णित है। यहां का कदंब का वृक्ष आज भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस वृक्ष की परिक्रमा कर भक्त मनोकामनाएं पूरी होने की कामना करते हैं। मान्यता है कि स्वयं ब्रह्माजी ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था। जन्माष्टमी के अवसर पर तीर्थ पर सुबह से ही भक्तों की भीड़ रही। पालना सजाया गया, जिसमें भगवान कृष्ण को झुलाया गया। भजन-कीर्तन और घंटा-घड़ियाल की ध्वनि से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने भगवान का अभिषेक कर पुष्प और माखन-मिश्री का भोग अर्पित किया। सम्भल को धार्मिक दृष्टि से बेहद प्राचीन शहर माना जाता है। विभिन्न युगों में इसके अलग-अलग नाम रहे हैं।
सतयुग में इसे सत्यवृत, त्रेता में महद्गिरि, द्वापर में पिंगल और वर्तमान में सम्भल कहा जाता है। यही नहीं, सम्भल में अड़सठ तीर्थ और उन्नीस कूपों का भी उल्लेख मिलता है। इनमें वंशगोपाल तीर्थ को प्रमुख माना जाता है। जन्माष्टमी पर यहां परिक्रमा का विशेष महत्व है। भक्त वंशगोपाल तीर्थ से सम्भल की परिक्रमा की शुरुआत करते हैं और कदंब के वृक्ष की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शनिवार को पूरे दिन सम्भल के इस प्राचीन तीर्थ में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता रहा। महिलाएं पारंपरिक मंगल गीत गाकर भगवान के जन्मोत्सव का उल्लास व्यक्त करती रहीं। बच्चों और बुजुर्गों ने भी भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़े प्रसंगों को भावविभोर होकर सुना। आस्था, परंपरा और विश्वास का संगम बना यह पर्व संभल के लोगों के लिए न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को भी उजागर करता है।
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