UP News: सामाजिक समरसता के लिए राम और रोटी का फार्मूला भी बेहद प्रभावी, सहभोजों के जरिये इसका सफल प्रयोग कर चुकी है गोरक्षपीठ।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही एक कार्यक्रम में हिंदू समुदाय में जातीय भेदभाव समाप्त करने का जिक्र किया। इस सामाजिक समरसता के लिए....
- श्रीराम के निषाद राज, जटायु और शबरी से संबंध के माध्यम से ताउम्र समरसता का संदेश देते रहे योगी के गुरुदेव
लखनऊ। जाति और ऊंच-नीच के आधार पर बहुसंख्यक समाज में विभाजन आज भी सच्चाई है। तभी तो आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही एक कार्यक्रम में हिंदू समुदाय में जातीय भेदभाव समाप्त करने का जिक्र किया। इस सामाजिक समरसता के लिए उन्होंने "एक मंदिर, एक कुआं, और एक श्मशान" के सिद्धांत को अपनाने की अपील की है। समरसता का एक फॉर्मूला और प्रभावी बन सकता है, वह फार्मूला है समय समय पर सामूहिक भोज। दरअसल दिल और पेट का बहुत महत्वपूर्ण संबंध रहा है। साथ-साथ रोटी खाना दिली रिश्तों को बेहद अच्छी तरह से जोड़ता है। रोटी के इस रिश्ते को अगर राम से जोड़ दिया जाय तब तो और भी। यह खुद में प्रमाणित बात है। सामाजिक समरसता के लिए गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ इसका सफल प्रयोग कर चुकी है। यह प्रयोग आज भी पहले से कहीं और प्रासंगिक है।
उल्लेखनीय है कि गोरक्षपीठ उत्तरी भारत की प्रमुख धार्मिक पीठों में से एक है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। उनके पूज्य गुरुदेव और राम मंदिर आंदोलन के शीर्षस्थ लोगों में शुमार ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का पूरा जीवन सामाजिक समरसता के लिए समर्पित था। इसके लिए उन्होंने सहभाेजों और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रभावी हथियार बनाया। यही वजह है कि अपने समय में वह सारे जातीय समीकरणों पर भारी रहे। अगर उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ पूरे विश्वास से यह कहते हैं कि मैं कभी हारा नहीं तो उसके पीछे पीठ की सहभोजों के जरिये समाज को जोड़ने की यही परंपरा रही है।
- काशी के डोम राजा के घर संतों के साथ भोजन कर अवेद्यनाथ ने पेश की थी मिसाल
उल्लेखनीय है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम की धर्मांतरण की घटना के बाद काशी में डोमराजा के घर संतों के साथ भोजन कर मिसाल कायम किया था। फिर तो इसका सिलसिला ही चल निकला। अयोध्या में उनकी मौजूदगी में प्रतीकात्मक रूप से भूमि पूजन हुआ तो उनकी पहल पर पहली शिला रखने का अवसर 35 वर्षीय कामेश्वर चौपाल को मिला था। दलित समाज के एक व्यक्ति से ऐसा करवाकर उन्होंने पूरे समाज को सामाजिक समरसता का संदेश दिया। पटना के एक मंदिर में दलित पुजारी की नियुक्ति उनकी ही पहल से हुई।
सहभोज के साथ हर हिंदू के आराध्य और हर सनातनी के रोम-रोम में बसने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम को उन्होंने सामाजिक समरसता के नायक के रूप में पेश किया। उनके हर संबोधन में वह पूरे प्रेम से शबरी के जूठी बेर खाने वाले, निषादराज को गले लगाने वाले, गिद्धराज जटायु के उद्धारक और कोल किरातों को खुद से जोड़ने वाले राम का उदाहरण जरूर देते थे। श्रीराम के इस उदात्त चरित्र के जरिये वह हिंदू समाज को सामाजिक समरसता का संदेश देते रहे। उनका कहना था कि समाज का विभाजन पाप है। अपने हितों के लिए इसको बढ़ावा देने वाले समाज के सबसे बड़े पापी हैं
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- व्यस्तता के बावजूद योगी ने जारी रखा सहभोजों का सिलसिला
मुख्यमंत्री के रूप में अपनी भारी व्यस्तता के बावजूद योगी आदित्यनाथ को जब भी मौका मिलता है सहभोजों के इस सिलसिले को जारी रखते हैं। खिचड़ी के अलावा अन्य प्रमुख मौकों पर गोरखनाथ मंदिर में सहभोज होते रहते हैं। समाज को संदेश देने लिए निजी स्तर पर भी किसी दलित के यहां भोजन करते हैं। गोरखपुर में अमृत लाल भारती, अयोध्या में महाबीर और अमरोहा में प्रियंका (प्रधान) के घर भोजन करना इसका प्रमाण है। अपने गुरु की ही तरह बतौर सांसद वह भी गोरखपुर के नगवा गांव में एक दलित द्वारा बनवाए गए मंदिर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे।
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