Special Article: बिहार की आर्थिक सेहत मापनी है तो जीएसडीपी को जानना जरूरी।

जीएसडीपी यानी सकल राज्य घरेलू उत्पाद, यह किसी राज्य में एक साल के दौरान पैदा की गयी सारी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है। जैसे, पूरे देश की अर्थव्यवस्था का पैमाना

Oct 9, 2025 - 22:54
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Special Article: बिहार की आर्थिक सेहत मापनी है तो जीएसडीपी को जानना जरूरी।
लेखक: हरिवंश (राज्य सभा में उप सभापति)

लेखक: हरिवंश (राज्य सभा में उप सभापति)

जीएसडीपी यानी सकल राज्य घरेलू उत्पाद, यह किसी राज्य में एक साल के दौरान पैदा की गयी सारी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है। जैसे, पूरे देश की अर्थव्यवस्था का पैमाना जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) होता है, वैसे ही किसी राज्य की आर्थिक सेहत को मापने का पैमाना जीएसडीपी है।

इसमें तीन प्रमुख क्षेत्रों का योगदान शामिल होता है। 1. कृषि क्षेत्र-खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, वानिकी; 2. औद्योगिक क्षेत्र-निर्माण, खनन, बिजली, कारखाने; 3. सेवा क्षेत्र-शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, आईटी, व्यापार आदि। हर क्षेत्र से साल भर में जितनी वस्तुएं और सेवाएं बनीं, उनका बाजार मूल्य जोड़कर राज्य का जीएसडीपी तय किया जाता है। आसान भाषा में समझें, तो अपने घर को एक छोटा 'राज्य' मान लीजिए। अगर परिवार की आमदनी खेती, नौकरी या छोटे-मोटे काम जैसे ट्यूशन या सिलाई से होती है, तो साल भर की कुल आमदनी ही उस घर का 'जीएसडीपी' है। यानी यह आपके घर की सालाना आर्थिक गतिविधि का पैमाना है। जीएसडीपी किसी राज्य की सालाना कमाई या आर्थिक कारोबार का वह आईना है, जो उसकी असली आर्थिक ताकत दिखाता है। आज की आर्थिक स्थिति की तुलना 1990 या 2005 की जीएसडीपी से करने पर आज के बिहार की आर्थिक स्थिति स्वतः स्पष्ट होती है।

यह चार्ट (संलग्न इमेज फाइल को देखें) बिहार के सकल राज्य घरेलू उत्पाद को मौजूदा कीमतों पर, मोटे तौर पर छह चुने हुए वर्षों के आंकड़े ही दिखाता है, ताकि विकास प्रगति की गति की एक तत्काल झलक मिल सके। पिछले सभी सालों के आंकड़ों की सूची दिखाने के लिए कहीं अधिक विस्तृत साल-दर-साल के आंकड़ों की जरूरत होती, इसलिए यह चार्ट कोई निरंतर वार्षिक रेखा नहीं है, बल्कि अलग अलग वर्षों को जोड़ता हुआ एक सामान्य संकेतक है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि सांख्यिकी विभाग समय-समय पर आधार वर्ष बदलता है-1980-81, 2004-05 और 2011-12 इसलिए आंकड़े अलग-अलग सांख्यिकीय विंडो से लिए गए हैं।

दीर्घकालीन तुलना के लिए इस नोट में उपलब्ध मौजूदा कीमतों के शुरुआती और अंतिम आंकड़ों (जैसे 1989-90 से 2024-25) का उपयोग करके चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) निकाली गई है। यह एक सरल प्रगति-कथा बताने के लिए पर्याप्त है। हां, अगर कोई तकनीकी विश्लेषण करना चाहे, तो एक ही आधार वर्ष की बैक सीरीज को जोड़कर वास्तविक (मुद्रास्फीति-समायोजित) वृद्धि भी दिखाई जा सकती है। निचोड़ है कि 2005-06 के बाद बिहार की वृद्धि की रफ्तार 1990 के दशक और उससे पहले की तुलना में काफी तेज हुई है। हाल के वर्षों में भी यह मजबूती कायम है। अप्रैल 2016 में बिहार ने पूरे राज्य में शराबबंदी लागू की। उस समय की कई समकालीन रिपोर्टों ने इस फैसले की समय रेखा दर्ज की है; उदाहरण के लिए,  मीडिया कवरेज में उल्लेख है कि यह लागू होना अप्रैल 2016 से शुरू हुआ। (स्रोतःइटी 27 नवंबर 2015)। तब से, नीति-निर्माण के संबंध में यह बार-बार उठने वाला मुद्दा है... शराबबंदी से खोया हुआ आबकारी राजस्व ।

इंडिया टुडे के एक लेख के अनुसार, 'बिहार ने शराबबंदी लागू होने के बाद से लगभग 40,000 करोड़ का राजस्व गंवाया है', (इंडिया टुडे, दिसंबर 2022)। यह एक उदाहरणात्मक और सतर्क अनुमान है, जिसका उद्देश्य केवल राजस्व हानि के परिमाण को समझाना है। शराब आबकारी से हुए इस राजस्व घाटे के बावजूद, बिहार का जीएसडीपी लगातार मजबूती से बढ़ता रहा है। इन आंकड़ों से साफ है कि 2005 के बाद बिहार की रफ्तार बदली। अब उसकी अर्थव्यवस्था इतिहास की सबसे तेज़ लय में दौड़ रही है।

इसमें हाल का 13.09 फीसदी का यह उछाल भी शामिल है। किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था में जीएसडीपी की वृद्धि और राज्य के अपने कर राजस्व की वृद्धि आपस में जुड़ी होती है। शराबबंदी भले एक राजस्व धारा को सीमित कर दे, लेकिन व्यापक अर्थव्यवस्था निवेश, उपभोग, सार्वजनिक परियोजनाओं और सेवाओं के सहारे काफी तेजी से आगे बढ़ सकती है। यह बिहार ने साबित किया है।

(लेख में आर्थिक आंकड़े को एकत्र करने व विश्लेषण का काम, सहयोगी एएस रघुनाथ ने किया है)

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