राष्ट्र निर्माण में स्त्रियों की भूमिका... स्त्री ही है संस्कृति और सभ्यता की सृजनकर्ता

संस्कृति और सभ्यता की सृजक सदियों से स्त्री जाति ही रही है। स्त्रियों का बलिदान अपने आप में अतुलनीय है। स्त्री संतान को न केवल जन्म देती है बल्कि उसका पालन पोषण भी करती है...

Nov 7, 2024 - 23:13
Nov 7, 2024 - 23:35
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राष्ट्र निर्माण में स्त्रियों की भूमिका... स्त्री ही है संस्कृति और सभ्यता की सृजनकर्ता


भावना वरदान शर्मा (साहित्यकार, लेखिका समाजसेवी, चिंतक, राजनीति विश्लेषक)

आज 21वीं सदी में मानव अधिकारों का बड़ा महत्व है। चारों तरफ मानव अधिकारों की बात हो रही है और इसी परिपेक्ष्य में कुछ देश अपना प्रभाव दूसरे देशों पर डालते हैं। वैसे तो सदियों से स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक माने जाते रहे हैं परंतु आज के समय में स्त्रियों के एक और अधिकार के बारे में चर्चा हो रही है।
संस्कृति और सभ्यता की सृजक सदियों से स्त्री जाति ही रही है। स्त्रियों का बलिदान अपने आप में अतुलनीय है। स्त्री संतान को न केवल जन्म देती है बल्कि उसका पालन पोषण भी करती है और साथ ही संस्कारों का प्रतिपादन करके उच्च व्यक्तित्व बनाने में योगदान भी करती है। संपूर्ण मानव सभ्यता इसी वजह से पृथ्वी पर टिकी हुई है।

प्रकृति ने स्त्री और पुरुष को अपना-अपना दायित्व प्राकृतिक रूप से प्रदान किया हुआ है।

आज आधुनिक समय में स्त्री और पुरुष के दायित्वों को अलग-अलग रूप में देखा गया है। छद्म नारीवादी लोग स्त्री अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं परंतु वे लोग इसके दूसरे पहलुओं के बारे में नहीं सोचते। संस्कार और मर्यादा विहीन समाज कितनी देर तक अस्तित्व में रह पाएगा। व्यक्तित्व का चरित्र निर्माण बहुत मायने रखता है। और वह व्यक्तित्व हमें मां के रूप में स्त्रियों ने ही दिया है। विश्व में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनकी सफलता और जीवन यात्रा में स्त्रियों का विशेष योगदान रहा है। परंतु नारीवाद की आड़ में कुछ लोग इस सामाजिक संतुलन को बिगाड़ना चाहते हैं। 
प्रकृति अन्याय कभी सहन नहीं करती। पुरुषों ने अपने प्राणों की आहुति देकर समय आने पर संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की है और स्त्रियां इसकी पूरक रही हैं।

भारत और मिस्र की सभ्यता में स्त्री शासनकर्ताओं का नाम आता है।
स्त्रियों की स्थिति मध्य एशिया और बाकी कुछ देशों में बेशक खराब रही होगी परंतु प्राचीन सभ्यता में स्त्रियों को उपभोग की वस्तु नहीं समझा गया है बल्कि धार्मिक , आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में स्त्रियों का विशेष योगदान रहा है।
स्त्रियों का योगदान समाज को रचनात्मक रूप से मजबूत करना होता है। समाज और देश जब सशक्त होते हैं तो स्त्रियों स्वत: ही मुख्य भूमिका में आ जाती हैं। यह भी सत्य है कि असुरक्षित समाज में स्त्रियां मुख्य भूमिका में नहीं आ सकतीं। स्त्रियों को अपनी भूमिका के विषय में मनन करना चाहिए। देश और समाज सशक्त होगा तभी वे भी सशक्त होंगी ।
इससे स्पष्ट होता है कि राष्ट्र निर्माण में स्त्रियों का योगदान बहुत आवश्यक है।
 विश्व में समय-समय पर युद्ध जैसे हालात हो जाते हैं इन्हीं सब परिस्थितियों को देखते हुए स्त्रियों को समय के साथ अपनी भूमिकाओं में बदलाव लाना चाहिए, यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है।

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