Ratan Tata: अनगिनत प्रेरणाओं को समेटे है पद्म विभूषण रतन टाटा का जीवन, एक के बाद एक मुकाम हासिल कर दुनिया में नाम कमाया। 

रतन टाटा साल 1991 में टाटा संस (Tata Sons) और टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने...

Oct 10, 2024 - 14:36
Oct 10, 2024 - 14:39
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Ratan Tata: अनगिनत प्रेरणाओं को समेटे है पद्म विभूषण रतन टाटा का जीवन, एक के बाद एक मुकाम हासिल कर दुनिया में नाम कमाया। 

Mumbai. रतन टाटा पढ़ाई खत्म करने के बाद सीधे टाटा ग्रुप से नहीं जुड़े। उनकी पहली नौकरी अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी- इंटरनेशनल बिजनेस मशीन कॉर्पोरेशन (IBM) में थी। इसकी भनक उनके परिवार को भी नहीं थी। जब टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा (JRD Tata) को रतन टाटा की नौकरी का पता चला, तो वह काफी नाराज हुए।

उन्होंने रतन टाटा को फोन किया और अपना बायोडाटा शेयर करने को कहा। उस वक्त रतन टाटा के पास अपना बायोडाटा भी नहीं था। उन्होंने आईबीएम में ही टाइपराइटर पर अपना बायोडाटा बनाया और उसे जेआरडी टाटा के पास भेजा। इसके बाद 1962 में टाटा ग्रुप से आधिकारिक तौर पर जुड़े। वह भले ही टाटा परिवार के सदस्य थे, लेकिन उन्होंने पहले निचले स्तर पर काम करके तजुर्बा लिया। 

रतन टाटा साल 1991 में टाटा संस (Tata Sons) और टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। उनकी अगुआई में टाटा ग्रुप ने नई बुलंदियों को छुआ। रतन टाटा ने 21 साल तक टाटा ग्रुप का नेतृत्व किया। उन्होंने 2012 में चेयरमैन का पद छोड़ दिया, लेकिन टाटा संस, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, और टाटा केमिकल्स के चेयरमैन एमेरिटस बने रहे। उनके मार्गदर्शन में इन कंपनियों ने बुलंदी के नए मुकाम को छुआ।

Tata Group का कारोबार दुनिया में फैला हुआ है। इसका दखल रसोई का नमक बनान से लेकर आसमान में हवाई जहाज उड़ाने तक है। टाटा ग्रुप के पास 100 से अधिक लिस्टेड और अनलिस्टेड कंपनियां हैं। इनका कुल बिजनेस तकरीबन 300 अरब डॉलर का है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दिवंगत रतन टाटा (Ratan Tata Net Worth) अपने पीछे अनुमानित तौर पर करीब 3800 करोड़ रुपये की संपत्ति छोड़ गए हैं। 

रतन टाटा की परोपकार कार्यों में गहरी दिलचस्पी थी। उनकी दरियादिली की अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दान में जाता था। ये दान टाटा ट्रस्ट होल्डिंग कंपनी के तहत होता था। रतन टाटा हर मुश्किल के वक्त देश के लोगों के साथ खड़े रहते थे। फिर चाहे वह 2004 की सुनामी हो, या फिर कोरोना महामारी का प्रकोप।

रतन टाटा अपने सामाजिक कार्यों के साथ आर्थिक तंगी से जूझने वाले छात्रों की भी आगे बढ़ने में मदद करते थे। उनका ट्रस्ट मेधावी छात्रों को पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देता है। यह स्कॉलरशिप J.N. Tata Endowment, Sir Ratan Tata Scholarship और Tata Scholarship के माध्यम से दी जाती है। 

रतन टाटा (Padma Vibhushan Ratan Tata) का जन्म एक पारसी परिवार में ब्रिटिश राज के दौरान मुंबई में 28 दिसंबर 1937 को हुआ था। उनके पिता का नाम नवल टाटा था और माता का नाम सूनी कमिसारीट था। महज 10 साल की उम्र में वो अपने माता-पिता से अलग हो गए थे, जिसके बाद उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने जेएन पेटिट पारसी अनाथालय के माध्यम से उन्हें गोद ले लिया। इसके बाद इनका लालन-पालन उनके सौतेले भाई नोएल टाटा के साथ हुआ।

पद्मविभूषण रतन टाटा (Padma Vibhushan Ratan Tata) ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में की और इसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने शिमला में बिशप कॉटन स्कूल में की। उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई कॉर्नेल विश्वविद्यालय और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से की। इसके बाद 21 वर्ष की उम्र में साल 1991 में रतन टाटा ने टाटा संस और टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पर बैठे। इन्होंने टाटा ग्रुप को आसमान की नई बुलंदियों तक पहुंचाया। उन्होंने 100 से ज्यादा देशों में टाटा ग्रुप को फैलाया। 

रतन टाटा को साल 2000 में भारत के तीसरे सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था और साल 2008 में उन्हें भारत का दूसरा सबसे सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया। पद्मविभूषण रतन टाटा का आखिरी प्रोजेक्ट मुंबई में जानवरों के लिए एक अस्पताल बनवाया था।  पद्मविभूषण रतन टाटा जानवरों से बहुत प्रेम करते थे। एक बार उन्हें इंग्लैंड में किंग चार्ल्स द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाना था, लेकिन अपने बीमार पेट डॉग की देखभाल करने के लिए वो इस समारोह में नहीं जा सके थे।  

कोरोना महामारी के समय हमारा देश स्वास्थ्य संकटों से जूझ रहा था। उस समय टाटा समूह ने देश की मदद के लिए 1500 करोड़ रुपये का डोनेशन दिया। टाटा ट्रस्ट के प्रवक्ता देवाशीष राय का कहना है कि सामान्य हालात में ट्रस्ट हर साल करीब 1200 करोड़ परमार्थ के लिए खर्च करता है।

देश में हर आम आदमी की ख्वाहिश होती है कि उनके पास एक कार हो। आम आदमी के इस ख्वाब को पूरा करने के लिए साल 2008 में टाटा मोटर्स की ओर से नैनो कॉर लॉन्च किया गया। इस कार की कीमत करीब 1 लाख रखी गई। 

टाटा संस के मानद चैयरमेन रतन टाटा को ताउम्र बंगाल के सिंगुर की कसक रही। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी के विरोध के कारण टाटा को काफी दुखी मन से यहां से अपनी इस महत्वाकांक्षी नैनो कार परियोजना को समेटना पड़ा था। कई मौकों पर रतन टाटा को इसके बारे में चर्चा करते सुना गया है। 

रतन टाटा ने 18 मई 2006 को बंगाल के हुगली जिले के सिंगुर में नैनो कार परियोजना लगाने का एलान किया था। तब बुद्धदेव भट्टाचार्य राज्य के मुख्यमंत्री थे। तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने उस समय इस परियोजना से राज्य में औद्योगीकरण की तस्वीर बदलने का दावा किया था।

इस परियोजना के लिए करीब एक हजार एकड़ जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन विपक्ष की नेता के रूप में ममता बनर्जी ने तीन दिसंबर 2006 से कोलकाता में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आमरण अनशन शुरू किया। 

24 अगस्त 2008 को ममता बनर्जी ने सिंगुर में परियोजना के लिए अधिगृहित 1,000 एकड़ में 400 एकड़ जमीन वापसी की मांग करते हुए दुर्गापुर एक्सप्रेस हाईवे पर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। आखिर तीन अक्टूबर 2008 को राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक दो दिन पहले रतन टाटा ने कोलकाता में अपनी प्रेस कांफ्रेंस में लखटकिया कार परियोजना को सिंगुर से बाहर ले जाने का ऐलान किया।

उन्होंने इसके लिए ममता बनर्जी के नेतृत्व में जारी तृणमूल कांग्रेस के आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद नैनो फैक्ट्री को गुजरात के साणंद में स्थानांतरित कर दिया गया। लंबे समय तक चली अदालती कार्यवाही के बाद 31 अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वह जमीन किसानों को लौटा दी गई। वहां थोड़ी जमीन पर कुछ समय बाद खेती शुरू हुई। हाल में मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने सिंगुर में नैनो कार परियोजना ठप होने के कारण हुए नुकसान के लिए टाटा मोटर्स को मुआवजे के तौर पर करीब 766 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया है। 

आर्थिक तंगी से जूझने वाले छात्रों की मदद के लिए भी टाटा ग्रुप हमेशा आगे रहा। ट्रस्ट ऐसे जरूरतमंद छात्रों को स्कॉलरशिप देता है।  छात्रों को J.N. Tata Endowment, Sir Ratan Tata Scholarship और Tata Scholarship दिया जाता है।

टाटा शिक्षा एवं विकास ट्रस्ट ने 28 मिलियन डॉलर का टाटा छात्रवृत्ति कोष प्रदान किया था, जिससे कॉर्नेल विश्वविद्यालय भारत के स्नातक छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सके। वार्षिक छात्रवृत्ति से एक समय में लगभग 20 छात्रों को सहायता मिलती थी। 

टाटा समूह की कंपनियों और टाटा चैरिटीज ने 2010 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (एचबीएस) को एक कार्यकारी केंद्र के निर्माण के लिए 50 मिलियन डॉलर का दान दिया था।

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 वर्ष 1970 के दशक में उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी।

टाटा समूह ने 2014 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे को 950 मिलियन डॉलर का ऋण दिया गया और टाटा सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन (टीसीटीडी) का गठन किया गया। यह संस्थान के इतिहास में अब तक प्राप्त सबसे बड़ा दान था।

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