Digital Attendance: 'संस्कार' और 'शिक्षा' देने वाले शिक्षकों की समस्याओं से सरकार का कोई सरोकार नहीं।
- हुक्मरान कर रहे आराम, शिक्षकों को बस काम, काम और काम
- शिक्षा-पद्धति हुई धड़ाम, कराए जा रहे काम तमाम
- 'ऑनलाइन अटेंडेंस' कहीं शिक्षकों को 'अपंग' करने की व्यवस्था तो नहीं।
Reported by - Vijay laxmi singh
सरकार द्वारा शिक्षकों के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस अनिवार्य किए जाने के फैसले के बाद राज्य में लगभग हर जगह इसका विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है। शिक्षकों में सरकार के इस फैसले से जबरदस्त नाराजगी है। जिसके परिणामस्वरूप कई जिलों में शिक्षकों ने हस्ताक्षर-अभियान, विरोध-प्रदर्शन आदि रूपों में इस फैसले का पुरजोर विरोध जारी है।
हालांकि इस गहमागहमी के बीच कुछ लोगों ने सरकार के इस फैसले का समर्थन भी किया है लेकिन आखिर शिक्षकों में इतना रोष क्यों है? आखिर क्या कारण है कि 'ऑनलाइन अटेंडेंस' या 'रियल टाइम अटेंडेंस' को लेकर सरकार को इतना विरोध झेलना पड़ रहा है। 'सरकार' और 'शिक्षकों' के बीच चल रही इस समस्या को अच्छे से समझने के लिए हमें स्कूलों में इन शिक्षकों के कार्यदिवसों के दौरान निभाये जा रहे सभी दायित्वों को जानने की जरूरत है।
यद्यपि कुछ शिक्षक ऐसे हैं, जो अपना काम ईमानदारी से नहीं करते हैं और शिक्षकों के नाम पर कोई संस्था के बैनर तले अपना झंडा ऊंचा करने में लगे रहते हैं लेकिन ऐसे शिक्षकों की संख्या अधिक है जो ईमानदारी से अपना काम करते हैं। इस बीच जिला स्तरीय, ब्लॉक स्तरीय योजनाएं जैसे ग्राम विकास संबंधी, मेडिकल संबंधी आदि जब भी जिलों में आती हैं तो कई फीसदी उनका दारोमदार शिक्षकों के कंधे पर डाल दिया जाता है।
इस वजह से शिक्षक शिक्षा देने पर कम ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं जबकि अन्य कामों में उन्हें उलझा दिया जाता है। कई शिक्षक ऐसे भी हैं जो सरकारी कामकाज करने के बहाने जिला-मुख्यालय पर जी-हुजूरी करते दिखाई देते हैं जबकि अपने स्कूल संबंधी जिम्मेदारियों से वे कतराते हैं। इसी कसमकस में ईमानदार शिक्षक भी खराब छवि की केटेगरी में गिने जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता है।
आमतौर पर सुनने में आता है कि सरकारी शिक्षकों का सिर्फ इतना सा काम है कि समय पर स्कूल आना, बच्चों को पढाना और वापस चले जाना। ज्यादा से ज्यादा कॉपी-किताबों, एमडीएम, बच्चों की ड्रेस संबंधी व्यवस्था को अपडेट करना। इसके अलावा तो उनके पास स्कूल से जुड़ा कोई और काम नहीं है तो फिर ऑनलाइन अटेंडेंस के फैसले को स्वीकार कर लेने में आखिर क्या परेशानी है। आइये समझते हैं कि ऑनलाइन अटेंडेंस को लेकर शिक्षकों में आखिर इतना रोष क्यों है-
source:- ptc news-
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स्कूल संबंधी प्रबंधन और बैठकों की भी है जिम्मेदारी
शिक्षकों को अपने-अपने स्कूलों में शिक्षा देने के अलावा शिक्षा-सुधार संबंधी बैठकों और प्रबंधन का भी दायित्व पूरा करना पड़ता है। शिक्षकों को हर सप्ताह संकुल की बैठक और हर महीने बीआरसी की बैठक में भाग लेना होता है। इसके अलावा एसएमसी, पीटीए, एमटीए, ग्राम शिक्षा समिति आदि की बैठकों का दारोमदार भी शिक्षकों के कंधों पर ही होता है। इतना ही नहीं, शिक्षा समिति, एसएमसी, मिड-डे मील, शिक्षा निधि आदि खातों का प्रबंधन व व्यवस्थीकरण भी शिक्षकों को ही करना होता है।
बाल-गणना, स्कूल चलो अभियान और जनगणना भी है जिम्मेदारी
शिक्षकों को समय-समय पर बाल-गणना और जनगणना भी करनी होती है। फिर उसके रिकॉर्ड को तैयार करके संबंधित कार्यालय में समय पर प्रेषित करना होता है। अलावा इसके स्कूल चलो अभियान के तहत बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने व स्कूल में दाखिला कराने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों की ही होती है।
मिड-डे मील, दूध-फल वितरण की समुचित व्यवस्था
शिक्षकों को अपने स्कूल में मिड-डे मील व दूध-फल आदि की व्यवस्था व इसके वितरण में भी अपने दायित्व को निभाना होता है। इससे संबंधित सामग्री को लाने का काम भी शिक्षकों को ही करना होता है। राज्य में कई इलाके तो ऐसे हैं, जहां स्कूल सब्जी और फल-मार्किट से कई किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ऐसे में या तो शिक्षकों को स्कूल आते समय ये सब सामग्री अपने साथ लानी होती है या फिर स्कूल-समय के बीच में यह सब व्यवस्था करनी होती है, इन कार्यों के लिए शिक्षकों को अलग से पार्शियल अवकाश देने की व्यवस्था नहीं है और न ही कोई सहयोगी शिक्षकों को दिया जाता है।
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पोलियो, जिला स्तरीय मीटिंगों के लिए भी अहम जिम्मेदारी
शिक्षकों को पोलियो कार्यक्रम और जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ आयोजित मीटिंगों में भी उपस्थित रहना होता है। इन मीटिंगों में जाने से पूर्व अपने स्कूल संबंधी सारे रिकार्ड्स उन्हें तैयार करने होते हैं। इसके अतिरिक्त स्कूलों के रंग-रोगन, वृक्षारोपण व रैपिड सर्वे आदि जिम्मेदारियां भी शिक्षकों के कंधों पर ही होती हैं। इन सबसे पहले आवश्यक चीजों की व्यवस्था शिक्षक स्वयं ही करते हैं।
बीएलओ, चुनाव व बोर्ड परीक्षा की ड्यूटी भी अहम जिम्मेदारी
शिक्षकों को बीएलओ ड्यूटी में भी सहयोग करना होता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न चुनावों व बोर्ड परीक्षा में भी शिक्षकों को ड्यूटी करनी पड़ती है। इस बीच सरकार द्वारा स्कूलों में आयोजित खेल-कूद व विज्ञान संबंधी कार्यक्रमों में बच्चों के साथ पूरी रूपरेखा तैयार करके प्रतिभाग करना होता है।
स्कूल में शौंचालयों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी
शिक्षकों को अपने स्कूल में शौंचालय की साफ-सफाई की व्यवस्था तक स्वयं करनी पड़ती है। इसके लिए कोई सफाईकर्मी की नियुक्ति का प्रावधान नहीं किया गया है। आवश्यक सामग्री को भी शिक्षक ही लेकर आता है।
आधार संबंधी कार्य भी शिक्षकों के हवाले
शिक्षकों को अपने स्कूल के क्षेत्र में पेरेंट्स के आधार कार्ड बनवाने और ऑनलाइन डेटा फीड करने तक की जिम्मेदारी दी गयी है। जिसे सरकार या अधिकारियों द्वारा तय समय पर शिक्षकों द्वारा पूर्ण किया जाता है। इसमें यदि देरी होती है तो उसका खामियाजा भी शिक्षक ही भुगतते हैं। स्कूलों में नर्सरी में लगाये जाने वाले पौधों को लाना और उनके रोपण के बाद उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी शिक्षकों की ही होती है।
इसके अलावा ये भी हैं जिम्मेदारियां
शिक्षकों को इसके अलावा आधार कार्ड को सत्यापित करवाना, पुस्तकों के वितरण व उनके ऑनलाइन फीडिंग का काम भी करना होता है। अपने क्षेत्र में वोट बनवाने का काम भी शिक्षकों का ही है। निपुण कौशल योजना की जिम्मेदारी भी शिक्षकों को ही दी गयी है।
शिक्षा विभाग के कई एप अभी भी भरोसे के लायक नहीं
शिक्षा-विभाग की सहूलियत के लिए लांच किए गए कई एप जैसे दीक्षा एप, प्रेरणा एप, एम स्थापना एप, रीड अलॉन्ग एप आदि आज भी भरोसेमंद नहीं है। इन एप्स का सर्वर ठीक से वर्क नहीं करता है और अधिकांशतः इनमें शिक्षकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में इस नई व्यवस्था को लेकर सवाल उठना भी लाजिमी है।
ये जिम्मेदारियां शिक्षकों को शिक्षा देने के साथ-साथ दी गयी हैं, जिन्हें शिक्षकों को समय सीमा के भीतर पूरा करना ही होता है। इसके अलावा भी अपने स्कूल के कार्यालय में आवयश्क सामग्री, फर्नीचर आदि की जिम्मेदारी भी शिक्षकों को स्वयं करनी पड़ती है। कई क्षेत्रों के स्कूलों तक पहुंचने के लिए दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। बारिश के मौसम में तो यह मुसीबत और बढ़ जाती है।
source:- TV9 - वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ने क्या कहा- "शिक्षकों के लिए ये 3 काम कर दे सरकार"
कई जगह रेलवे क्रासिंग को पार करना, स्कूल में आवयश्क सामग्री को साथ लेकर जाना आदि लगभग दैनिक कार्यों में शामिल है। कुल-मिलाकर शिक्षकों को शिक्षा देने के अतिरिक्त भी दर्जनों जिम्मेदारियां दी गयी हैं, जिन्हें हर हाल में शिक्षकों को निभाना ही होता है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि गहन शिक्षा देने के स्थान पर शिक्षकों को अन्य जिम्मेदारियां पूरी करने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। शिक्षकों की 5-6 घंटे की ड्यूटी में यह सब काम निपटाना कोई आसान बात नहीं है।
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हुक्मरानों के फरमानों का पालन करना ही बस अब शिक्षकों की जिम्मेदारी रह गयी है। जबकि 'रियलिटी ऑन ग्राउंड' पर बात करें तो शिक्षा का उत्थान कहीं नजर नहीं आता। कह सकते हैं कि 'शिक्षक' नाम के टैग के पीछे न जाने कौन-कौन सी जिम्मेदारियां बोझ बनाकर शिक्षकों के कंधों पर डाल दी गयी हैं। ऐसे में 'ऑनलाइन-अटेंडेंस' शिक्षकों को मनोबल को कहीं न कहीं ठेस पहुंचाती दिख रही है। सरकार को इन सब विषयों के बारे में विचार करने की जरूरत है।
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