मालेगांव ब्लास्ट केस में प्रज्ञा ठाकुर का सनसनीखेज दावा- 'ATS ने मुझसे PM मोदी, योगी और मोहन भागवत का नाम लेने को कहा'।
Political News: 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में हाल ही में बरी हुईं पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने एक सनसनीखेज...
Political News: 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में हाल ही में बरी हुईं पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने एक सनसनीखेज बयान दिया है। उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने जांच के दौरान उन पर दबाव डाला और उन्हें तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (वर्तमान प्रधानमंत्री), उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत और अन्य बड़े नेताओं का नाम लेने के लिए मजबूर किया। प्रज्ञा ने कहा कि उन्हें हिरासत में यातनाएं दी गईं और कहा गया कि अगर वह इन नेताओं के नाम लेंगी, तो यातनाएं बंद हो जाएंगी। यह बयान 2 अगस्त 2025 को न्यूज एजेंसी PTI के हवाले से सामने आया, जब 31 जुलाई 2025 को विशेष NIA अदालत ने प्रज्ञा सहित सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
- मालेगांव बम विस्फोट का मामला
मालेगांव बम विस्फोट 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास हुआ था। इस विस्फोट में एक मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक उपकरण के फटने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की थी, जिसके तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे थे। ATS ने दावा किया था कि विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी, और इसके आधार पर उन्हें 2008 में गिरफ्तार किया गया था। प्रज्ञा के साथ लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित और पांच अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया गया था।
इस मामले में कुल 14 लोग गिरफ्तार हुए थे, लेकिन सात को आरोपमुक्त कर दिया गया था, और बाकी सात पर मुकदमा चला। 2011 में यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया। 31 जुलाई 2025 को, विशेष NIA अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया, जिसमें प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, अजय राहीरकर, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर धर द्विवेदी शामिल थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में विफल रहा और आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया।
- प्रज्ञा ठाकुर का दावा
2 अगस्त 2025 को प्रज्ञा ठाकुर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ATS ने उन पर 24 दिन तक शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं। उन्होंने दावा किया, "मुझे कई लोगों के नाम लेने के लिए मजबूर किया गया, जिनमें नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, मोहन भागवत, इंद्रेश कुमार और राम माधव शामिल थे। वे कहते थे, 'इनका नाम लो, तो हम तुम्हें मारना बंद कर देंगे।' मैंने किसी का नाम नहीं लिया, क्योंकि वे मुझे झूठ बोलने के लिए मजबूर कर रहे थे।" प्रज्ञा ने यह भी कहा कि वह गुजरात में रहती थीं, इसलिए जांचकर्ताओं ने विशेष रूप से नरेंद्र मोदी का नाम लेने का दबाव बनाया, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
प्रज्ञा ने अपनी हिरासत की स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी फेफड़ों की झिल्ली फट गई थी और उन्हें अवैध रूप से एक अस्पताल में रखा गया था। उन्होंने कहा, "मैं अपनी कहानी लिख रही हूं, जिसमें मैं यह सब बताऊंगी। सत्य को दबाया नहीं जा सकता।" प्रज्ञा ने इस बरी होने को "सनातन धर्म, हिंदुत्व और राष्ट्र की जीत" करार दिया और तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर उन्हें और अन्य आरोपियों को झूठे मामले में फंसाने का आरोप लगाया।
- पूर्व ATS अधिकारी का बयान
प्रज्ञा के दावे को और बल तब मिला, जब एक पूर्व ATS अधिकारी मेहबूब मुजावर ने भी इसी तरह का दावा किया। मुजावर ने 1 अगस्त 2025 को सोलापुर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनके वरिष्ठ अधिकारी, जिनमें तत्कालीन ATS अधिकारी परम बीर सिंह शामिल थे, ने उन्हें RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। मुजावर ने कहा, "मुझे राम कालसंगड़ा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार और मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था। मैंने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह 'भगवा आतंकवाद' की कहानी गढ़ने की साजिश थी।" उन्होंने दावा किया कि इस इनकार के कारण उनके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया, जिसने उनके 40 साल के करियर को बर्बाद कर दिया।
मुजावर ने यह भी कहा कि उनके पास अपने दावों के समर्थन में दस्तावेजी सबूत हैं और ATS की जांच "फर्जी" थी। हालांकि, विशेष NIA अदालत ने इन दावों को खारिज कर दिया था, लेकिन मुजावर ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा कि जांच को गलत दिशा में ले जाने की कोशिश की गई थी।
मालेगांव बम विस्फोट का मामला शुरू से ही विवादास्पद रहा है। ATS ने शुरुआत में दावा किया था कि यह विस्फोट "भगवा आतंकवाद" से जुड़ा था और अभिनव भारत नामक संगठन इसमें शामिल था। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि यह विस्फोट मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में आतंक फैलाने और "हिंदू सरकार" स्थापित करने की साजिश का हिस्सा था। हालांकि, NIA ने 2016 में अपनी पूरक चार्जशीट में कहा कि ATS ने कर्नल पुरोहित को फंसाने के लिए RDX के निशान लगाए थे और प्रज्ञा सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे।
2015 में विशेष अभियोजक रोहिणी सालियन ने दावा किया था कि NIA ने उन्हें आरोपियों के खिलाफ नरम रुख अपनाने के लिए कहा था, जिससे जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठे। प्रज्ञा और मुजावर के हालिया बयानों ने इस मामले को फिर से चर्चा में ला दिया है। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी इस मामले में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने "वोट बैंक की राजनीति" के लिए RSS और हिंदुत्व को बदनाम करने की कोशिश की।
- प्रज्ञा ठाकुर का पक्ष
प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया और कहा कि उन्हें नौ साल तक जेल में रखा गया, जहां उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। उन्होंने कहा, "मुझे मुंबई के बायकुला जेल में रखा गया, जहां मेरी सेहत खराब होने के बावजूद जमानत नहीं दी गई।" 2017 में उन्हें स्वास्थ्य आधार पर जमानत मिली थी। प्रज्ञा ने यह भी कहा कि वह इस मामले में अपनी पूरी कहानी एक किताब में लिखेंगी, जिसमें वह जांच के दौरान हुए अन्याय को सामने लाएंगी।
प्रज्ञा ठाकुर का यह दावा कि ATS ने उनसे नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और मोहन भागवत जैसे बड़े नेताओं का नाम लेने के लिए यातनाएं दीं, ने मालेगांव बम विस्फोट मामले को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। पूर्व ATS अधिकारी मेहबूब मुजावर के समान दावों ने इस मामले में जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विशेष NIA अदालत के फैसले ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन प्रज्ञा और मुजावर के बयानों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों और जांच प्रक्रिया पर नई बहस छेड़ दी है।
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