मीरा-भायंदर में Raj Thakrey का जोरदार भाषण- मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए हिंदी थोपने का विरोध, केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधा
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख Raj Thakrey ने मीरा-भायंदर के नित्यानंद नगर में आयोजित एक विशाल जनसभा में मराठी अस्मिता और भाषा को लेकर जोरदार भाषण दिया। उन्होंने केंद्र और महाराष्ट्र की बीजेपी-नीत सरकार पर हिंदी को थोपने का आरोप लगाते हुए कड़ा विरोध जताया। ठाकरे ने कहा कि मराठी भाषा और महाराष्ट्र की पहचान को मिटाने की कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस सभा में उन्होंने गैर-मराठी लोगों से जल्द से जल्द मराठी सीखने की अपील की और बीएमसी चुनाव से पहले मराठी अस्मिता को मजबूत करने का संकल्प दोहराया।
मीरा-भायंदर में आयोजित जनसभा में Raj Thakrey ने कहा, "महाराष्ट्र का क्या हो गया है? हमारी मराठी भाषा और अस्मिता पर हमला हो रहा है। केंद्र और राज्य सरकार हिंदी को थोपकर मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साजिश रच रही है।" उन्होंने मराठा साम्राज्य का जिक्र करते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कई राज्यों पर मराठों का शासन था, लेकिन उन्होंने कभी किसी पर मराठी थोपी नहीं। ठाकरे ने चेतावनी दी, "जो लोग मराठी का अपमान करेंगे, उन्हें महाराष्ट्र में सबक सिखाया जाएगा।"
उन्होंने गैर-मराठी लोगों से कहा, "महाराष्ट्र में रहते हो तो जल्दी से मराठी सीखो। हम किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मराठी का सम्मान जरूरी है।" ठाकरे ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के "पटक-पटक कर मारेंगे" वाले बयान पर भी जवाब दिया, "मैं मराठी और महाराष्ट्र के लोगों के लिए कोई समझौता नहीं करूंगा।"
महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी विवाद हाल के महीनों में तेज हुआ है। अप्रैल 2025 में मनसे ने स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य करने के सरकार के फैसले का विरोध शुरू किया। 29 जून 2025 को मीरा-भायंदर में मनसे कार्यकर्ताओं ने एक गुजराती दुकानदार की पिटाई की, क्योंकि वह मराठी नहीं बोल रहा था। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके बाद विवाद और भड़क गया।
इसके बाद, 5 जुलाई 2025 को Raj Thakrey और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुंबई के वर्ली में मराठी विजय रैली में एक मंच साझा किया। यह 20 साल बाद ठाकरे बंधुओं का पहला संयुक्त मंच था, जिसे मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए एक बड़ा कदम माना गया। रैली में दोनों ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के सरकार के फैसले का विरोध किया। इस दबाव के बाद, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 29 जून 2025 को त्रिभाषा नीति को वापस ले लिया और डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने की घोषणा की।
Raj Thakrey के भाषणों के बाद मनसे कार्यकर्ताओं पर गैर-मराठी लोगों के खिलाफ हिंसा के आरोप लगे। बॉम्बे हाईकोर्ट के तीन वकीलों ने महाराष्ट्र के डीजीपी को शिकायत देकर ठाकरे के खिलाफ FIR और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत कार्रवाई की मांग की। शिकायत में कहा गया कि ठाकरे के बयानों ने गैर-मराठी लोगों के खिलाफ हिंसा और नफरत का माहौल बनाया, जो संविधान का उल्लंघन है।
वकीलों ने ठाकरे के बयानों को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 123(45) (जाति, धर्म, भाषा के आधार पर वैमनस्य फैलाना), 124 (देश की एकता पर हमला), 232 (आतंक फैलाना), 345(2) (जानबूझकर वैमनस्य फैलाना), और 357 (सार्वजनिक दहशत फैलाना) के तहत अपराध बताया। हालांकि, पुलिस ने अभी तक इस मामले में कोई FIR दर्ज नहीं की है।
यह विवाद बीएमसी चुनाव से पहले मराठी अस्मिता को केंद्र में लाकर ठाकरे बंधुओं के लिए राजनीतिक अवसर बन गया है। Raj Thakrey की मनसे को 2024 के विधानसभा चुनाव में केवल 1.6% वोट मिले थे, और उनकी पार्टी कोई सीट नहीं जीत सकी। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने 10.03% वोट शेयर के साथ 20 सीटें जीतीं। मराठी अस्मिता के मुद्दे ने Raj Thakrey को फिर से सुर्खियों में ला दिया, जिससे उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता बढ़ी है।
हालांकि, उद्धव ठाकरे ने बार-बार सफाई दी कि वह हिंदी या किसी अन्य भाषा के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि किसी भी भाषा को जबरन थोपे जाने का विरोध करते हैं। उन्होंने बीजेपी पर मराठी और गैर-मराठी लोगों को लड़ाने का आरोप लगाया। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने ठाकरे बंधुओं पर बीएमसी चुनाव के लिए "सस्ती राजनीति" करने का आरोप लगाया और कहा, "मराठी एक सम्मानित भाषा है, लेकिन हिंदी और उर्दू भाषी लोगों को निशाना बनाना गलत है।"
इस विवाद ने महाराष्ट्र में सामाजिक तनाव को बढ़ाया है। मुंबई और मीरा-भायंदर में हिंदी भाषी दुकानदारों, ऑटो चालकों, और अन्य लोगों के साथ मारपीट की घटनाएं सामने आई हैं। व्यापारियों ने विरोध में दुकानें बंद कीं, और पुलिस ने मनसे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। कांग्रेस के मुंबई उत्तर भारतीय प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अवनीश सिंह ने कहा कि मुंबई में उत्तर भारतीय समाज वर्षों से समरसता के साथ रहता है, और इसे बिगाड़ने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।
मराठी अस्मिता और गैर-मराठी लोगों के खिलाफ राजनीति महाराष्ट्र में नई नहीं है। 1960 में भाषाई आधार पर महाराष्ट्र और गुजरात के अलग होने के बाद से मराठी अस्मिता का मुद्दा जोर पकड़ता रहा है। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने 1980 के दशक में उत्तर भारतीयों को निशाना बनाकर मराठी मानुष की राजनीति शुरू की थी। Raj Thakrey ने 2006 में मनसे बनाकर इस मुद्दे को और आक्रामक तरीके से उठाया।
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