Pilibhit News: भारत एवं नेपाल के शोधार्थियों ने जैव विविधता, फिश सैंपलिंग और सर्वाइवल स्किल्स को सीखा। 

पीटीआर में चल रह स्कूल ऑफ ऑफ एक्वाटिक वाइल्डलाइफ बायोलॉजी एंड कंजर्वेशन का आठवां संस्करण, नेपाल और भारत के आठ आठ वन्य जीव शोधकर्ता संरक्षण विद कर रहे हैं प्रतिभग...

Mar 26, 2025 - 17:04
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Pilibhit News: भारत एवं नेपाल के शोधार्थियों ने जैव विविधता, फिश सैंपलिंग और सर्वाइवल स्किल्स को सीखा। 

रिपोर्ट- कुँवर निर्भय सिंह 

Pilibhit News: पीलीभीत टाइगर रिजर्व में स्कूल का एक्वाटिक वाइल्डलाइफ बायोलॉजी एंड कंजर्वेशन का आठवां संस्करण आयोजित हो रहा है जिसमें पड़ोसी देश नेपाल सहित भारत के विभिन्न राज्यों के 16 वन्य जीव शोधकर्ता संरक्षण कर्ता प्रतिभाग कर रहे हैं।

पीलीभीत टाइगर रिजर्व में चल रहे हैं छ: दिवसीय टीएसए फाउंडेशन इंडिया, उत्तर प्रदेश वन विभाग और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के तत्वावधान में स्कूल ऑफ एक्वाटिक वाइल्डलाइफ बायोलॉजी एंड कंजर्वेशन में  भारत के उत्तराखंड मध्य प्रदेश दिल्ली उत्तर प्रदेश के आठ एवं पड़ोसी देश नेपाल के आठ वन्य जीव शोधकर्ता संरक्षण विधि और छात्र-छात्राएं शामिल होकर यहां की जैव विविधता के बारे में बारीकी से सीख रहे हैं। 

संस्करण में डाक्टर अरुणिमा सिंह ने विद्यार्थियों को कछुआ पारिस्थितिकी एवं जीव विज्ञान के बारे में बताया उन्होंने कछुआ के व्यवहार और संरक्षण आदि पर फोकस किया।टीएसएएफआई के निदेशक डॉक्टर शैलेंद्र सिंह ने ग्रांट लेखन, एंक्लोजर,डिजाइनिंग और जलीय जीवों के प्रबंधन के बारे में बताया। अंजलि अग्रहरी ने वेदों ,कहानियां फिल्मांकन के द्वारा वन जीवन के संरक्षण के तरीकों को बताया। महोफ रेंज के रेंजर  अधिकारी  साहेंद्र यादव ने ग्रासलैंड मैनेजमेंट पर फील्ड टॉक आयोजित की। उन्होंने घासभूमि प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण में इसकी भूमिका और निवास स्थान के संतुलन को बनाए रखने के महत्व पर चर्चा की। आर. पी. सिंह ने सस्टेनेबल टूरिज्म (सतत पर्यटन) पर एक सत्र लिया।

जिसमें उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने के तरीकों पर प्रतिभागियों को मार्गदर्शन दिया। संस्करण में विद्यार्थियों ने कछुआ जीवविज्ञान, जल्य पौधों की विविधता, मछली सैंपलिंग और सर्वाइवल तकनीक जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन अभ्यास किया। श्रीपर्णा दत्त ने कछुआ जीवविज्ञान और कर्किंग तकनीक पर एक व्यावहारिक सत्र आयोजित किया। उन्होंने प्रतिभागियों को कछुओं के व्यवहार, जीवन चक्र और संरक्षण संबंधी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। इसके साथ ही, उन्होंने कर्किंग तकनीक (turtle marking) सिखाई, जिसके माध्यम से कछुओं की पहचान और मॉनिटरिंग की जाती है।

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इसके बाद, डॉ. सचित्र कुमार रथ (नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट) ने जल्य पौधों की विविधता और सैंपलिंग तकनीक पर सत्र लिया। उन्होंने जल पारिस्थितिकी तंत्र में पौधों की भूमिका, उनकी पहचान और संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला। मत्स्य जीवविज्ञानी डॉ. आशुतोष मिश्रा ने मछली सैंपलिंग और मॉर्फोमेट्रिक्स पर सत्र आयोजित किया। प्रतिभागियों ने मछलियों की सैंपलिंग तकनीक, आकार मापन (morphometrics) और उनके संरक्षण से जुड़ी बारीकियां सीखीं।

वैशाली बर्णवाल ने सर्वाइवल तकनीक और कैंपिंग स्किल्स पर एक व्यावहारिक सत्र लिया। उन्होंने प्रतिभागियों को आपातकालीन परिस्थितियों में जंगल में जीवित रहने, आश्रय बनाने, आग जलाने और भोजन जुटाने जैसी महत्वपूर्ण तकनीकें सिखाईं।

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