शिक्षक दिवस पर विशेष : निःशुल्क शिक्षा और समर्पण से बच्चों का भविष्य संवार रहे आधुनिक द्रोणाचार्य
अजय सिंह ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए निपुण अधिगम कैलेंडर, स्वलिखित पुस्तकें जैसे ‘समझ हिंदी व्याकरण’, ‘नन्हीं तूलिका’, ‘पॉकेट डिक्शनरी’, ‘निपुण अभ्यास
रायबरेली : शिक्षक दिवस के अवसर पर रायबरेली के कई शिक्षक अपने समर्पण और निस्वार्थ सेवा से बच्चों के जीवन को नई दिशा दे रहे हैं। ये शिक्षक न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा बनकर सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के समकक्ष खड़ा कर
रहे हैं। कुछ शिक्षक अपने खर्चे पर बच्चों को शैक्षिक सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं, तो कुछ ने विषम परिस्थितियों में भी शिक्षा की अलख जगाई है। इनमें से तीन शिक्षकों की कहानियां विशेष रूप से प्रेरणादायक हैं, जो अपने कार्यों से एकलव्यों के सपनों को साकार कर रहे हैं।
दीनशाह गौरा विकास खंड के दाऊदपुर गड़ई गांव में फातिमा बानो शिक्षा के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य कर रही हैं। फातिमा स्वयं दिव्यांग हैं और बचपन में उनके माता-पिता ने उन्हें स्कूल भेजने से मना कर दिया था। लेकिन उनके शिक्षक सुरेंद्र बहादुर मौर्य ने उन्हें अपनी साइकिल पर स्कूल ले जाकर पढ़ाई पूरी करवाई। स्नातक करने के बाद फातिमा ने संकल्प लिया कि वे गांव के किसी भी बच्चे को शिक्षा से वंचित नहीं होने देंगी। पिछले 10 वर्षों से वे अपने छप्पर वाले घर में गांव के बच्चों को निःशुल्क पढ़ा रही हैं। वे प्राथमिक विद्यालय दाऊदपुर गड़ई की प्रभारी प्रधानाध्यापिका दीपिका सिंह के सहयोग से बच्चों को कॉपी, पेन, बैग जैसी शैक्षिक सामग्री भी उपलब्ध कराती हैं।
फातिमा आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की मदद करती हैं और स्कूल में रोजाना दो-तीन घंटे शैक्षिक सहयोग देती हैं। वे अभिभावकों को बच्चों को नियमित स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती हैं और पारिवारिक समस्याओं के कारण पढ़ाई से वंचित बच्चों का मनोबल बढ़ाती हैं। हर मासिक और पीटीएम बैठक में वे अभिभावकों को जागरूक करने का प्रयास करती हैं। फातिमा की समाजसेवा और समर्पण ने गांव के बच्चों के भविष्य को रोशन करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सतांव ब्लॉक के देदौर गांव के निवासी अरुणेश चौधरी पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर हैं, लेकिन उनका दिल सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए धड़कता है। पिछले आठ वर्षों से वे हर महीने किसी न किसी सरकारी स्कूल में जाकर बच्चों को स्टेशनरी, टी-शर्ट, खेल किट, ट्रैक सूट, डिजिटल स्लेट, खिड़की के पर्दे और राइटिंग पैड जैसी सामग्री उपलब्ध कराते हैं। वे स्कूल के शिक्षकों और रसोइयों को भी सम्मानित करते हैं, जिससे शिक्षा के प्रति उत्साह बढ़ता है। अरुणेश अपने गांव के उन बच्चों को भी पुरस्कृत करते हैं, जो हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में 80 प्रतिशत से अधिक अंक लाते हैं। उनका लक्ष्य जिले के सभी सरकारी स्कूलों तक पहुंचकर बच्चों की मदद करना है। उनकी इस पहल ने बच्चों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है और वे शिक्षकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।
राही ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय राजापुर में शिक्षक अजय सिंह ने अपने प्रयासों से स्कूल की तस्वीर बदल दी है। जब वे फरवरी 2021 में यहां आए, तो स्कूल में बाउंड्री, डेस्क-बेंच और अन्य संसाधनों का अभाव था। बच्चों को टाट-पट्टी पर बैठना पड़ता था। अजय सिंह ने अपने सहयोगी शिक्षकों के साथ मिलकर जनसहयोग से 1.08 लाख रुपये जुटाए और 40 सेट डेस्क-बेंच की व्यवस्था की। पंचायत राज विभाग के सहयोग से स्कूल में बाउंड्री, टाइल्स और माइक सिस्टम लगवाया गया। आलंबन ग्रुप की मदद से स्मार्ट टीवी भी स्थापित हुआ। स्कूल परिसर में पौधरोपण से यह हरा-भरा बन गया है।
अजय सिंह ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए निपुण अधिगम कैलेंडर, स्वलिखित पुस्तकें जैसे ‘समझ हिंदी व्याकरण’, ‘नन्हीं तूलिका’, ‘पॉकेट डिक्शनरी’, ‘निपुण अभ्यास माला’, ‘बोधनाता बोधमाला’, ‘मेरे सुनहरे सपने डेस्क स्लिप’ और ‘शब्द गंगा’ जैसी सामग्री तैयार की। इन प्रयासों ने स्कूल को निजी स्कूलों के समकक्ष ला खड़ा किया। आज लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों से हटाकर इस सरकारी स्कूल में भेज रहे हैं। अजय सिंह के नवाचारों की सराहना पूरे जिले में हो रही है।
ये शिक्षक और समाजसेवी अपने कार्यों से साबित कर रहे हैं कि समर्पण और मेहनत से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। शिक्षक दिवस पर इनके प्रयास न केवल बच्चों के लिए प्रेरणा हैं, बल्कि समाज के लिए एक मिसाल भी हैं।
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