सुप्रीम कोर्ट की ED को फटकार, 'सारी सीमाएं लांघ रही है प्रवर्तन निदेशालय', CJI गवई की सख्त टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ED की उन कार्रवाइयों पर विशेष रूप से आपत्ति जताई, जहां व्यक्तियों को बिना स्पष्ट आरोप पत्र या ठोस सबूतों के लंबे समय त....

May 22, 2025 - 22:27
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सुप्रीम कोर्ट की ED को फटकार, 'सारी सीमाएं लांघ रही है प्रवर्तन निदेशालय', CJI गवई की सख्त टिप्पणी

By INA News Delhi.

नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि एजेंसी "सारी सीमाएं लांघ रही है।" यह सख्त टिप्पणी देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन.वी. रमना की अगुवाई वाली पीठ ने की, जिसका नेतृत्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के बाद अब CJI संजीव खन्ना कर रहे हैं। हालांकि, इस मामले में CJI बी.आर. गवई की टिप्पणी ने विशेष ध्यान खींचा है। यह टिप्पणी एक ऐसे समय में आई है जब ED की कार्रवाइयों और कथित दुरुपयोग के आरोपों को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। आइए, इस मामले को विस्तार से समझते हैं।

मामला क्या है?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाइयों पर सवाल उठे। यह याचिका धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत ED की गिरफ्तारियों और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी से संबंधित थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि ED अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है और बिना ठोस सबूतों के व्यक्तियों को लंबे समय तक हिरासत में रख रही है। इस दौरान, CJI बी.आर. गवई ने ED की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, "प्रवर्तन निदेशालय सारी सीमाएं लांघ रहा है। यह एजेंसी कानून के दायरे में काम करने के बजाय मनमानी कर रही है।"

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ED की उन कार्रवाइयों पर विशेष रूप से आपत्ति जताई, जहां व्यक्तियों को बिना स्पष्ट आरोप पत्र या ठोस सबूतों के लंबे समय तक हिरासत में रखा गया। CJI गवई ने कहा, "कानून का शासन सर्वोपरि है। कोई भी एजेंसी, चाहे वह कितनी भी शक्तिशाली हो, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अनुचित रूप से प्रभावित नहीं कर सकती।" कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि PMLA के तहत दी गई शक्तियां ED को असीमित अधिकार नहीं देतीं और उसे संवैधानिक दायरे में रहकर काम करना होगा।

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कोर्ट ने ED से यह स्पष्ट करने को कहा कि वह अपनी जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित करती है और यह कैसे तय किया जाता है कि किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया जाए। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या ED ने उन मामलों में उचित प्रक्रिया का पालन किया, जहां लोग बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रहे।

ED की भूमिका और विवाद

प्रवर्तन निदेशालय (ED) भारत में धन शोधन और विदेशी मुद्रा उल्लंघन से संबंधित मामलों की जांच करने वाली एक केंद्रीय एजेंसी है। PMLA, 2002 के तहत ED को व्यापक शक्तियां प्राप्त हैं, जिसमें बिना वारंट के गिरफ्तारी, संपत्ति जब्त करने, और लंबी पूछताछ जैसे अधिकार शामिल हैं। हाल के वर्षों में, ED की कार्रवाइयां, विशेष रूप से राजनेताओं, कारोबारियों, और प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ, चर्चा का विषय बनी हैं।

विपक्षी दलों और कई कानूनी विशेषज्ञों ने ED पर आरोप लगाया है कि वह केंद्र सरकार के इशारे पर चुनिंदा लोगों को निशाना बनाती है। इस तरह के आरोपों ने ED की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब ED की कार्रवाइयों को लेकर पहले से ही कई याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहले भी PMLA के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए हैं। 2022 में, कोर्ट ने PMLA के कुछ प्रावधानों को बरकरार रखते हुए कहा था कि इनका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि गिरफ्तारी और हिरासत की प्रक्रिया में संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो सकता। इस बार CJI गवई की टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि कोर्ट ED की कार्रवाइयों पर कड़ी नजर रख रहा है और आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करने को तैयार है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की इस टिप्पणी ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों ने इसे अपनी बात के समर्थन में देखा है, जबकि सरकार और ED की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। यह टिप्पणी उन लोगों के लिए राहत की बात हो सकती है, जो ED की कार्रवाइयों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खतरा मानते हैं। साथ ही, यह जांच एजेंसियों को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए एक चेतावनी भी है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ED को अपनी जांच प्रक्रिया में सुधार करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि वह इस मामले में आगे भी सुनवाई करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि कानून का दुरुपयोग न हो। विशेषज्ञों का मानना है कि इस टिप्पणी के बाद ED को अपनी कार्यशैली में बदलाव करना पड़ सकता है, खासकर उन मामलों में जहां सबूतों की कमी या प्रक्रियात्मक खामियां सामने आई हैं।

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