Viral: कानपुर मेट्रो घोटाला- तुर्की कंपनी गुलरमाक 80 करोड़ रुपये का बकाया छोड़कर फरार, ठेकेदारों में हड़कंप
कानपुर मेट्रो, जिसे दुनिया की सबसे तेजी से निर्मित मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के रूप में जाना जाता है, का निर्माण 2019 में शुरू हुआ था और इसका पहला चरण दिसंबर 2021 ...
कानपुर : उत्तर प्रदेश के कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro) प्रोजेक्ट में एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जहां तुर्की की निर्माण कंपनी गुलरमाक (Gulermak) ने 53 सब-कॉन्ट्रैक्टर्स के 80 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान किए बिना शहर छोड़ दिया है। यह कंपनी, जो भारतीय कंपनी सैम इंडिया के साथ संयुक्त उद्यम में मेट्रो के भूमिगत खंड (Corridor One) का निर्माण कर रही थी, ने कथित तौर पर अपने कार्यालय पर ताला लगा दिया और इसके शीर्ष अधिकारी फरार हो गए। इस घटना ने न केवल स्थानीय ठेकेदारों को आर्थिक संकट में डाल दिया है, बल्कि भारत-पाकिस्तान तनाव और तुर्की के रुख के कारण उत्पन्न हुए भू-राजनीतिक विवादों को भी उजागर किया है। ठेकेदारों ने उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (UPMRC) और जिला प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro), जिसे दुनिया की सबसे तेजी से निर्मित मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के रूप में जाना जाता है, का निर्माण 2019 में शुरू हुआ था और इसका पहला चरण दिसंबर 2021 में शुरू हुआ। इस प्रोजेक्ट के तहत, गुलरमाक और सैम इंडिया के संयुक्त उद्यम को Corridor One के चार भूमिगत स्टेशनों (आईआईटी कानपुर से मोतीझील तक) के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था। गुलरमाक ने इस काम को 53 सब-कॉन्ट्रैक्टर्स को आउटसोर्स किया, जिनमें मेट्रो मार्बल, रेडियंट सर्विसेज, और श्रेयांस इन्फ्राटेक जैसी कंपनियां शामिल हैं।
हालांकि, ठेकेदारों का आरोप है कि गुलरमाक ने पिछले 10 महीनों से उनके भुगतान को लटकाए रखा और छोटे-मोटे भुगतान करके मामले को टालता रहा। ठेकेदारों के अनुसार, कंपनी के शीर्ष अधिकारियों ने भारत-पाकिस्तान तनाव और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद उत्पन्न तुर्की विरोधी भावनाओं का फायदा उठाकर शहर छोड़ दिया। गुलरमाक के कानपुर कार्यालय पर ताला लटका हुआ है, और इसके अधिकारियों के फोन बंद हैं या वे अस्पष्ट जवाब दे रहे हैं।
ठेकेदारों की शिकायत और बकाया राशि
सोमवार, 26 मई 2025 को, नौ प्रभावित ठेकेदारों ने कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट (DM) कार्यालय में एक लिखित शिकायत दर्ज की, जिसमें उन्होंने अपनी बकाया राशि का विवरण दिया। इनमें शामिल हैं: मेट्रो मार्बल (3.70 करोड़ रुपये), रेडियंट सर्विसेज (1.20 करोड़ रुपये), श्रेयांस इन्फ्राटेक (1.70 करोड़ रुपये), एस इंटीरियर (74.80 लाख रुपये), एमडी एहसान पेंटर (39.80 लाख रुपये), विनोद गुप्ता एंटरप्राइजेज (8.54 लाख रुपये), नंदन प्रीफैब (29.50 लाख रुपये), और श्री बालाजी एंटरप्राइजेज (21.50 लाख रुपये)। रेडियंट सर्विसेज के ठेकेदार गजेंद्र सिंह ने बताया कि उनकी कंपनी को अब तक केवल 50% भुगतान मिला है, और बाकी राशि अटकी हुई है।
ठेकेदारों ने बताया कि गुलरमाक ने काम पूरा करवाने के बाद बड़े पैमाने पर भुगतान रोक लिया और छोटे-छोटे भुगतान करके समय निकालने की कोशिश की। इस स्थिति ने ठेकेदारों को आर्थिक संकट में डाल दिया है, क्योंकि कई ने कर्ज लेकर या अपनी बचत लगाकर प्रोजेक्ट में निवेश किया था। कुछ ठेकेदारों ने तो गार्ड्स की सैलरी तक नहीं चुकाई जाने की शिकायत की।
उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (UPMRC) के संयुक्त महाप्रबंधक (जनसंपर्क) पंचनन मिश्रा ने दावा किया कि गुलरमाक को चार स्टेशनों का काम पूरा करने के बाद पूरा भुगतान कर दिया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये ठेकेदार गुलरमाक के सब-कॉन्ट्रैक्टर्स हैं, और UPMRC की उनसे कोई प्रत्यक्ष जवाबदेही नहीं है। हालांकि, मिश्रा ने कहा कि UPMRC ने कुल अनुबंध मूल्य का 5% रिजर्व में रखा है, जो सामान्य रूप से एक साल बाद जारी किया जाता है। यदि गुलरमाक अपने ठेकेदारों को भुगतान नहीं करता, तो UPMRC इस राशि को जारी करने पर विचार कर सकता है। हालांकि, ठेकेदारों का कहना है कि UPMRC को उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसके कारण उन्हें DM कार्यालय का रुख करना पड़ा।
भू-राजनीति और तुर्की विरोध
ठेकेदारों का दावा है कि भुगतान में देरी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद शुरू हुई, जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ 7 मई 2025 को शुरू हुआ था, जिसमें भारतीय सशस्त्र बलों ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में PoK में आतंकी ठिकानों पर हमले किए थे। इस दौरान तुर्की पर पाकिस्तान को सैन्य समर्थन देने का आरोप लगा, जिसके बाद भारत में तुर्की के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। ठेकेदारों का मानना है कि गुलरमाक ने इन विरोधों का फायदा उठाकर अपने वित्तीय दायित्वों से भागने की रणनीति बनाई।
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने तूल पकड़ा। @news24tvchannel ने X पर पोस्ट किया, “कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro) प्रोजेक्ट में 80 करोड़ रुपये का बकाया कर भागी तुर्की कंपनी। ठेकेदारों ने जिला प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।” @abcnewsmedia ने दावा किया कि गुलरमाक ने जवाब दिया है और जल्द भुगतान करने की बात कही है, लेकिन ठेकेदारों को अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।
कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro) और इसकी प्रगति
कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro) का निर्माण 11,076.48 करोड़ रुपये की लागत से 2019 में शुरू हुआ था, और इसे पांच साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। इसका पहला चरण, जो आईआईटी कानपुर से मोतीझील तक 8.98 किमी का है, दिसंबर 2021 में शुरू हुआ। गुलरमाक और सैम इंडिया ने Corridor One के चार स्टेशनों का काम पूरा किया था, लेकिन इस घोटाले ने प्रोजेक्ट की साख पर सवाल उठा दिए हैं।
इस घटना ने स्थानीय ठेकेदारों को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाया है, जिनमें से कई छोटे और मध्यम उद्यमी हैं। यह घटना भारत में अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों और विदेशी कंपनियों के साथ काम करने की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है। ठेकेदारों ने सरकार से मांग की है कि भविष्य में ऐसी परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro) प्रोजेक्ट में गुलरमाक का 80 करोड़ रुपये लेकर फरार होना न केवल एक वित्तीय घोटाला है, बल्कि यह भारत में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में विदेशी कंपनियों की जवाबदेही पर सवाल उठाता है। ठेकेदारों का आर्थिक संकट और UPMRC की निष्क्रियता ने इस मामले को और जटिल बना दिया है। जिला प्रशासन और UPMRC को तत्काल कार्रवाई कर ठेकेदारों को उनका हक दिलाना होगा, ताकि कानपुर मेट्रो (Kanpur Metro) जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की साख बरकरार रहे।
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