शहीदों के परिवारों को सम्मान दिलाने को निकला 26 साल का युवा, 47000 किमी की यात्रा के संकल्प के साथ 67वें दिन हरदोई पहुंचा
19 दिसम्बर 2024 को देवरिया (Deoria) से यह यात्रा शुरू की थी, गुरुवार को हरदोई पहुंचे अभिषेक (Abhishek) की यात्रा का 67 वां दिन है। इस बीच वे 4200 किमी का सफ़र कर चुके हैं। उन्होंने लगभग ...
Reported By Vijay Laxmi Singh(Editor-In-Chief)
By INA News Uttar Pradesh.
भारत का एक युवा देश के लिए शहीद (Martyr) सैनिकों व उनके परिवारों को सम्मान दिलाये जाने के महत्वपूर्ण उद्देश्य के साथ 47,000 किमी की भारत यात्रा पर निकल चुका है, जिसकी शुरुआत देवरिया (Deoria) जिले से उन्होंने की थी। आज की युवा पीढ़ी महंगे मोबाइल, महंगी बाइक और महंगी कार के शौकीन होते हैं,और एक लग्जरी लाइफ जीना चाहते हैं लेकिन कुंभ मेला में एक युवक ऐसा पहुंचा जिसका शौक कोई लग्जरी लाइफ, लग्जरी गाड़ी, या महंगा मोबाइल फोन नहीं है, बल्कि उसका मकसद देश के नाम शहीद (Martyr) होने वाले परिवार के लोगों की आर्थिक मदद करना है। लिहाजा वह साइकिल से ही देश के भ्रमण पर निकल चुका है। साइकिल भी इसकी बहुत निराली। इस पर उन्होंने अपने मकसद का थीम भी लिख रखा है। इसी थीम को हर देश वासी के चित्त पर वे भावपूर्ण तरीके से कुरेदना चाहते हैं, यही उनका लक्ष्य है।
अभिषेक यादव ने हरदोई पहुंचकर अपनी भारत यात्रा को मानचित्र के माध्यम से समझाया
19 दिसम्बर 2024 को देवरिया (Deoria) से यह यात्रा शुरू की थी, गुरुवार को हरदोई पहुंचे अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) की यात्रा का 67 वां दिन है। इस बीच वे 4200 किमी का सफ़र कर चुके हैं। उन्होंने लगभग पूरा उत्तर प्रदेश का भ्रमण कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा शहीद (Martyr) सैनिकों व बॉर्डर पर हमारे देश की रक्षा कर रहे सैनिकों के सम्मान के लिए है। उन्होंने युवाओं को सन्देश दिया कि सबसे पहले आप सम्मान देना सीखें। देश के भीतर हम अपने घर, समाज में स्वयं को सुरक्षित महसूस कर घूम रहे हैं, रह रहे हैं और खेल रहे हैं तथा महाकुंभ जाकर स्नान कर पा रहे हैं, इसके पीछे सैनिकों का त्याग और बलिदान है, जो अपना घर छोडकर देश की सुरक्षा के लिए हर मिनट बॉर्डर पर तैनात रहते हैं।
सैनिक भारत माता और देश की रक्षा के लिए अपनी खुशियाँ और परिवार को त्याग कर अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं। उनके परिवार, सैनिकों के माता-पिता और बहन-बेटियों का सम्मान कीजिये। आज जो नये जनरेशन के लोग हैं, जिनकी मानसिकता छोटी है और वे सम्मान देने जैसा काम नहीं कर पाते हैं, उन्हें स्वयं को बदलना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश की रक्षा में तैनात घर से दूर रहने वाले सैनिकों के परिवार का हम सम्मान करें। सैनिकों के प्रति हमारा भी दायित्व है। उन्होंने कुछ लोगों द्वारा महाकुम्भ में स्नान करने गयीं महिलाओं के साथ अभद्रता और अभद्र टिप्पणी करने वालों के बारे में बात करते हुए कहा कि यदि इस जगह पर आपकी बहन बेटी होती तो क्या फिर भी आप ऐसा ही व्यवहार करते।
अभिषेक यादव ने भारत यात्रा के दौरान शहीद सैनिकों के परिवार वालों के लिए संक्षिप्त बोर्ड पर मांगें अपने शब्दों में लिखीं हैं
कहा कि मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि जिस बेटी के पिता या जिस बहन के भाई बॉर्डर पर देश की सुरक्षा के लिए तैनात हैं, वह बहन-बेटी देश के किसी भी कोने में जाये तो उसे स्वयं के लिए सुरक्षा का अहसास हो, उसे ऐसा लगे कि उसके साथ कोई गलत व्यवहार नहीं करेगा। कहा कि मैं अपना पूरा जीवन शहीद (Martyr) व उनके परिवारों के लिए समर्पित कर चुका हूँ। अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) ने बताया कि वर्ष 2019 में दिल्ली कनॉट प्लेस पर एक सेना के अफसर से उनकी मुलाकात हुई और उसने 1962 रेजागंला युद्ध में शहीद (Martyr) हुए 120 सैनिकों के आश्रितों के विषय में बताया।
अपनी भारत यात्रा को दूसरे मानचित्र के आधार पर बताते अभिषेक यादव
इसके लिए वह हरियाणा के रेवाड़ी जिले के धर्मपुर गांव गए और शहीद (Martyr) के आश्रितों से मिले। उनसे मिलकर हृदय बहुत द्रवित हुआ और मन में ठान लिया कि शहीद (Martyr) के आश्रितों के लिए कुछ करुंगा। अब भारत भ्रमण में शहीद (Martyr) के आश्रित बच्चों की अच्छी शिक्षा, बच्चियों की शादी, उनके लिए घर और आश्रितों को सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक अलग यूनिट बनाने की अपील के साथ यात्रा शुरू की है। अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) ने यह भी बताया कि इस पूरी यात्रा के दौरान वे टेंट में विश्राम करेंगे, ऐसा उनका संकल्प है। साथ ही उन्होंने किसी से भी एक पैसा न लेने का भी संकल्प लिया है।
शहीदों के सम्मान में 1 रू. का अनुदान करने के लिए बैनर के माध्यम से प्रेरित करते हैं' अभिषेक यादव
इस शख्स का नाम अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) है जो कि यूपी के जिला देवरिया (Deoria) का और उसकी उम्र महज 26 साल है। पढ़ाई ग्रेजुएशन के साथ डिग्री धारक अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) के पिता एक किसान है। उनकी मुहिम दिल को छू जाने वाली है क्योंकि आज का युवा वर्ग जिस दौर से गुजर रहा है वहां पर सिर्फ स्वार्थी जिंदगी देखने को मिल रही है और सब अपने आप में खो रहे हैं। अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) ने अपने जीवन का मकसद कुछ और बना लिया है, जिसे देखकर हर कोई उसे सलाम कर रहा है। अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) की शहीद (Martyr) सम्मान भारत साइकिल यात्रा तकरीबन 47000 किलोमीटर और 31 राज्य और 61 सी छावनी होते हुए यह यात्रा 900 दिनों में समाप्त होगी। अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) प्रत्येक भारतीय से शहीद (Martyr) के सम्मान में सिर्फ एक रुपए डोनेट करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने ट्रस्ट अकाउंट द इंडियन हीरोज के नाम से अकाउंट भी बनाया है। अभिषेक ने जिला कर्नल ओपी मिश्रा(जिला सैनिक बोर्ड) से मुकालात की और उन्हें अपने इस यात्रा के उद्देश्यों के बारे में बताया, इस पर कर्नल ओपी मिश्रा ने अभिषेक यादव का उत्साहवर्धन किया तथा युवाओं के लिए इसे प्रेरणा बताया।
इसके जरिए उन्होंने प्रत्येक शहीद (Martyr) के सम्मान और उनके परिवारों की समस्याओं को सुनने के हेतु हर जिले में एक विशेष पुलिस यूनिट का गठन भी किए जाने की मांग उठाई है। इसके अलावा उन्होंने सरकार से प्रत्येक सैनिक के लिए आवास की व्यवस्था का अनुरोध किया है। यही नहीं बल्कि वे सैनिकों की बेटियो के लिए 20 लाख की आर्थिक मदद और बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की भी मांग की है। बकौल अभिषेक यादव (Abhishek Yadav), अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) बताते हैं कि उनकी यात्रा उत्तर प्रदेश के देवरिया (Deoria) से शुरू हुई है। जो उत्तराखंड, हिमाचल, लद्दाख, कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड होते हुए बांग्लादेश के रास्ते मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, अरुणांचल प्रदेश, असम, बिहार होते हुए उत्तर प्रदेश के देवरिया (Deoria) में आकर खत्म होगी।
अभिषेक यादव ने सांकेतिक बोर्ड के माध्यम से शहीदों के सम्मान व उनके परिवार वालों के लिए कुछ मांगे रखीं
अभिषेक यादव (Abhishek Yadav) ने आगे कहा कि पीएम मोदी जब महाकुंभ स्नान करने के लिए आये तो उनके साथ नाव पर सवार 7 कमांडो उनकी सुरक्षा में थे, ऐसे में ये कमांडो प्रोटोकॉल की वजह से स्वयं स्नान नहीं कर पाए, उन्हें इस बात का गम जरूर होगा कि जिस कुम्भ में 144 साल बाद लोग देश विदेश से आकर स्नान कर रहे हैं, वे उस संगम के बीच में रहकर भी स्नान नहीं कर सकते। एक कमांडों ने पल भर में हाथ में जल की कुछ बूदें लीं और आसपास के सभी लोगों के ऊपर उसे पहले छिड़का और अंत में आखिरी बूँद स्वयं के ऊपर डाली। यह भी कमांडों का एक बड़ा त्याग का उदाहरण है। यह बहुत बड़ी बात है। उन्होंने बताया कि भारत में सबसे पहले सम्मान का यदि कोई हकदार है तो वह सैनिक है। उन्होंने भावुक होकर कहा कि एक मां अगर अपने बच्चे से बिछड़ जाए तो उसे बहुत पीड़ा होती है। जबकि एक सैनिक की मां उसे 9 माह पेट में रखकर पाल पोसकर बड़ा करती है और फिर भारत माँ व देश की रक्षा के लिए उसे समर्पित कर देती है। उसे कितनी पीड़ा होती होगी। क्या हम ऐसे सैनिक और उसके परिवार के लोगों को सम्मान भी नहीं दे सकते?
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