रणथम्भौर के हठीले शासक राव हम्मीरदेव चौहान के बलिदान का ऐतिहासिक शोध।
Edited By- Vijay Laxmi Singh
रणथम्भोर का चौहान शासक राव हम्मीर एक ऐसा विराट इतिहास पुरुष है ,जिस पर सर्वाधिक कृतियां रची गयी हैं। उनके शौर्यशाली चुम्बकीय व्यक्तित्व से आकर्षित होकर महाकाव्य ,रासो ,नाट्य काव्य ,गद्यनाटय, और गद्य गाथाएं लिखी गयी है।उनके अनुपम उत्सर्ग पर अनेक चित्रकारों ने कुंचियाँ चलाई है।
राव हमीर की यशगाथा पर 14 वीं सदी से 20वीं सदी तक पर प्राकृत पैलगम ,संस्कृत ,देवनागरी तथा राजस्थानी में सतत सृजन होता रहा।हमीरमहाकाव्य (नयनचंद सूरी तथा ताऊ शेखावाटी ) ,हमीर रासो(कवि महेश,शारंगधर ,जोधराज एवं सवाई प्रतापसिंह ), हमीरायण (व्यास भांडा) , हमीर हठ (चंद्र शेखर वाजपेयी एवं ग्वालकवि ) , हमीर प्रबन्ध (अमृत कलश तथा भुलनदास कवि),रणथम्भौर रै राणे हमीर हठाले रा कवित्त (कवि मल्ल) , राजा हम्मीर दे कवित्त (भाट खेम) ,हम्मीरदेव वचनिका (भटट मोहिल), हमीरोत्सर्ग नाटकम (बैकुंठनाथ शास्री), रणत भंवरनाटक (जयगोविंद बेदिल ) आदि।
इसके अतरिक्त अन्याय वीर काव्यों के रचनाकरभी हम्मीरदेव चौहान के पराक्रम की प्रशंसा से अछूते नहीं रह सके।यथा -रणमल छन्द (श्रीधर) ,कान्हड़दे प्रबन्ध (पदम् नाथ) ,अचलदास खींची री वचनिका (शिवदास गाडण) ,विद्यापति कृत पुरुष परीक्षा , सारंग पद्धति (शारंगधर) आदि में हम्मीर के बारे में उल्लेख मिलता है।
देश ,धर्म एवं हिंदुत्व के लिए चौहानों का सर्वाधिक बलिदान-
क्षत्रियों के छत्तीस राजकुलों में चौहान राजपूतों ने वीरता ,स्वाभिमान ,शौर्यता ,त्याग ,बलिदान और आन -बान -शान का सम्पूर्ण रक्षण करके भारतभूमि की राष्ट्रीयता और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने बाहरी सुखों एवं भोगों का ही नही ,प्रियतम आत्मीयजनों का और स्वयं के प्राणों का भी बलिदान करने में सदा उत्सुक और तत्पर रहे।ऐसा सर्वानुमते स्वीकार हुआ है ,और इस प्राचीन एवं गौरवशाली वंश के कई राजपुत्रों की प्रशंसा में प्रत्येक भाषा में पूर्वकाल से ही अनेक काव्य ग्रन्थ रचे हुए है। स्वतंत्रता ,स्वाभिमान और नेक -टेक की धुन में ही मंच -पंच हठीले चौहानों ने वैभव ,सत्ता तथा राज्य का लोभ नहीं करते हुये कीर्ति का लोभ रखने के कारण कई महान योद्धा मुग़ल शासनकाल में गमा दिए।
हमीर हठ एवं शरणागत रक्षक-
भारतीय इतिहास के पन्नों में अमर दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशज रणथम्भौर के यशस्वी शासक राव हम्मीरदेव चौहान को वीरता के साथ ही उनकी हठ के लिए भी याद किया जाता है ।उनकी हठ के विषय में यह दोहा प्रसिद्ध है---
सिंह सवन सत्पुरुष वचन ,कदली फलत इकबार ।
तिरिया -तेल हम्मीर हठ ,चढ़े न दूजी बार।।
अर्थात सिंह एक ही बार संतान को जन्म देता है ,सच्चे लोग बात को एक ही बार कहते है ।केला एक ही बार फलता है ।स्त्री को एक ही बार तेल एवं उबटन लगाया जाता है ।ऐसी ही राव हम्मीरदेव चौहान की हठ थी ।वह जो ठानते थे ,उस पर पुनः विचार नहीं करते थे ।
वीर शिरोमनि अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद चौहानों के इतिहास में राव हमीर देव चौहान ही महान व्यकित्तव ,आन -बान -शान वाले साहसी व् तेजस्वी महान योद्धा थे।
रणथंभोर दुर्ग की महिमा-
पूर्वी राजस्थान के सवाईमाधोपुर से लगभग 12 किलोमीटर दूर रणथम्भोर अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा एक विकट ,अजेय ऐतिहासिक दुर्ग रणथम्भौर चौहान राजाओं का एक प्रमुख साम्राज्य रहा है जिसका शासन अंतिम हिन्दू सम्राट परमवीर साहसी पृथ्वीराज चौहान के वंशजों द्वारा किया जाता था। रणथम्भौर को सर्वाधिक गौरव मिला यहाँ के वीर और पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चौहान के अनुपम त्याग और बलिदान से।
हमीर का जन्म-
हम्मीर देव चौहान का जन्म 7 जुलाई 1272 को चौहान वंशी राजा जैत्र सिंह के तीसरे पुत्र के रूप में अरावली पर्वत मालाओं से घिरे हुये रणथम्भोर दुर्ग में हुआ था ।इनकी माता का नाम हीरा देवी था। बालक हम्मीरदेव इतना वीर था कि तलवार के एक ही प्रहार से मदमस्त हाथी का सिर काट देता था। उसके मुक्के के प्रहार से बिलबिला कर ऊंट धरती पर लेट जाता था। उसकी वीरता से प्रभावित होकर राव जैत्र सिंह ने अपने जीवन काल में ही 16 दिसंबर 1282 को उनका राज्यभिषेक कर दिया था। इसका शासन 1281 -1301 तक रहा था।
हमीर देव की दिग्विजएं-
गद्दी पर बैठने के बाद हम्मीर ने दिग्विजय प्राप्त की। आबू ,काठियावाड़ ,पुष्कर ,चम्पा तथा धार आदि राज्यों को इन्होंने अपनी अधीनता मानने के लिए बाध्य किया।मेवाड़ के शासक समरसिंह को परास्त करके उसने अपनी धाक राजपूताने में भी जमा दी उसके बाद उसने 1288 में अपने कुल पुरोहित विश्वरूपा की देख रेख में कोटि यज्ञ किया। 1290ई0 में दिल्ली सल्तनत में वंश परिवर्तन हुआ और जलालुद्दीन खिलजी शासक बना।उसने रणथम्भोर की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए 1290 ई0 में कूच किया और मार्ग में स्थित झैन (झाइन)को जीता। हिन्दू मंदिरों को लूटा व ध्वंस किया।
जलालुद्दीन खिलजी का रणथंभोर दुर्ग पर आक्रमण-
जलालुदीन ख़िलजी ने रणथम्भौर पर चढ़ाई की तो झाइन पर हम्मीर की सेना ने सेनापति गुरुदास सैनी के नेतृत्व में भीषण युद्ध किया ।यह स्थान अब नारायणपुर ततवाड़ा कहलाता है। युद्ध में जब हम्मीर का सेनापति गुरुदास सैनी मारा गया तब सुल्तान की सेना रणथम्भौर पहुंची ।किला फतह करने हेतु उसने मंजीकने लगवायेऔर साबातें बनवायी परन्तु दुर्ग की दुर्भेद्यता और रक्षात्मक तैयारियों को देख कर तथा सभी अथक प्रयासों के बाद भी सफलता न मिलने पर निराश होकर झैन या झांई वापस लौट आया।
उसने अपने सैनिक सरदारों से कहा कि --"वह मुसलमान सैनिकों के जीवन के मूल्य पर इस किले को जितने के लिए तैयार नहीं है क्यों कि वह एक मुसलमान के बाल को भी ऐसे दस किलों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण मानता है ।"अतः वह 2जून 1291 ई0 को वापस दिल्ली लौट गया ।इसके दिल्ली लौटते ही रणथम्भोर के शासक हम्मीरदेव चौहान ने झाइन(आधुनिक नारायणपुर तटवाडा) पर कब्जा कर लिया ।पुनः 1292ई0 में सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी ने हमीर पर चढ़ाई की किन्तु इस बार भी विफल रहा।
जलालुद्दीन खिलजी को क़त्ल कर उसका भतीजा एवं जमाता अल्लाउद्दीन ख़िलजी1296 ई0 में दिल्ली का सुल्तान बन गया था ।उसने अपने सेनापति उलूगखां और नुसरतखां को गुजरात विजय करने हेतु भेजा जब इनकी सेना वापस लौट रही थी तो जालोर के पास बगावत हो गई ।बागी दल के नेता सेनापति मीर मोहम्मदशाह और उसका भाई मीर गाभरू भागकर रणथम्भोर के राजा हमीर देव चौहान की शरण में आ गये। उस समय देश भर में ये दोनों सभी राजाओं एवं महाराजाओं के पास शरण मांगते फिरे लेकिन किसी भी राजा ने अलाउद्दीन ख़िलजी साम्राज्य के इन भगोड़ों को शरण नहीं दी ।महाजनों ने राजा हमीर से शरण देने का घोर विरोध किया किन्तु हम्मीर ने उन्हें नही हटाया। हम्मीरदेव चौहान को रणथम्भोर दुर्ग की अभेधयता पर भी विश्वास था जिससे टकराकर जलालुदीन खिलजी जैसे कई लुटेरे वापस लौट चुके थे ।
अलाउद्दीन ख़िलजी का रणथंभोर दुर्ग पर आक्रमण-
अलाउदीन खिलजी ने भी अपने बागी सैनिकों को हमीर देव चौहान से वापस माँगा किन्तु नही दिया इस पर सुलतान ख़िलजी ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु सेनापति अलगाखां को सन् 1299 -1300 ई0 की सर्दी में रणथम्भोर पर आक्रमण करने भेजा लेकिन किले की घेरेबंदी करते समय हम्मीर के सैनिकों द्वारा दुर्ग से की गई पत्थर वर्षा से वह मारा गया।
इस पर क्रुद्ध हो अलाउद्दीन स्वयं 1301 में रणथंभोर पर चढ़ आया तथा विशाल सेना के साथ दुर्ग को घेर लिया ।पराक्रमी हम्मीर ने इस आक्रमण का जोरदार मुकाबला किया ।हम्मीर की सेना ने दुर्ग के भीतर से ही ख़िलजी की सेना को काफी क्षति पहुंचाई ।इस तरह रणथम्भोर का घेरा लगभग एक वर्ष तक चला ।अंततः ख़िलजी ने छल और कूटनीति का आश्रय लिया तथा हम्मीर के दो मंत्रियों रतिपाल और रणमल को बूंदी का परगना इनायत करने का प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया ।इस विश्वासघात के फलस्वरूप हम्मीर को पराजय का मुख देखना पड़ा।
रणथंभोर दुर्ग में जौहर -
अंततः उसने केसरिया करने की ठानी ।दुर्ग की ललनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया।कहा जाता है कि रणथम्भोर में हमीर की सेनाओं की पराजय होते देख इस दौरान महारानी रंगादेवी ,पुत्री देवल देवी एवं 12 हजार वीरांगनाओं ने अपने मान -सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया तथा राव हम्मीर अपने कुछ विश्वस्त सामंतों तथा महमाँशाह सहित दुर्ग से बाहर आ शत्रु सेना से युद्ध करता हुआ 29 वर्ष की अल्प आयु में 11जुलाई 1301 को वह वीरगति को प्राप्त हुआ।
अलाउद्दीन खिलजी का रणथंभोर दुर्ग पर आधिकार-
12जुलाई 1301 ई0 में रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउदीन ख़िलजी का अधिकार हो गया ।इस प्रकार राव हम्मीर चौहान ने शरणागत बत्सलता के आदर्श का निर्वाह करते हुये राज्य लक्ष्मी सहित अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया ।हम्मीर ने अपने जीवन काल में 17 युद्ध किये ,जिनमें 16 में उन्हें सफलता मिली ।17वा युद्ध उनका विजय अभियान का अंग नहीं था।
भारतीय इतिहास की यह एक मात्र घटना है ,जिसमें किसी परमवीर महाराजा ने अपनी संप्रभुता अपने राज्य के लिए नहीं ,बल्कि शरणागत मुग़ल के परिजनोंकी रक्षार्थ ,अपने जीवन एवं विशाल साम्राज्य को समाप्त कर दिया। 12 हजार वीरांगनाओं और अनगिनित केसरिया वाना पहने वीरों का सर्वस्व बलिदान कर दिया।
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हम्मीर के शौर्य और बलिदान की प्रशंसा करते हुये किसी ने लिखा है कि उसमें वे सब गुण थे ,जो एक आदर्श क्षत्रिय के चरित्र में होने चाहिए ।राजा हम्मीर के इस अदभुत त्याग और बलिदान से प्रेरित हो संस्कृत ,प्राकृत ,राजस्थानी व् हिंदी आदि सभी प्रमुख भाषाओं में कवियों ने उसे अपना चरित्रनायक बनाकर उसका यशोगान किया है।
सवाईमाधोपुर जिले में स्थित रणथम्भोर दुर्ग के खण्डहरों में विद्यमान बाजार ,व्यवस्थित नगर, महल ,छतरियां आदि इस बात की गवाह हैं कि उनके राज्य में प्रजा सुख से रहती थी ।यदि एक मंगोल मुसलमान विद्रोही को शरण देने की हठ ,हठीले हम्मीरदेव चौहान न ठानते ,तो शायद भारत का इतिहास कुछ और ही होता ।
रणथंभोर के चौहानों पतन -
हम्मीर की मृत्यु के उपरान्त रणथम्भोर के चौहान वंश का पतन हो गया जिस वजह से इस दुर्ग में किया गया बलिदान और जौहर चित्तोड़ में किये गए जौहरों की तरह इतिहास में ख्याति प्राप्त नहीं कर सका ।ये इस दुर्ग का दुर्भाग्य रहा।राजस्थान के इतिहास में हमीर का स्मरण युद्ध में अपनी वीरता के लिए ही नहीं बल्कि अन्य संप्रदायों के प्रति सहिष्णुता के लिए भी किया जाता है।
जीवन के उदात मूल्यों की रक्षा करते हुए आत्मोसर्ग का भाव ही हम्मीर की चरित्रगत विशेषताओं का प्रमुख बिन्दु है।राजपूताना में भाटों ,चारणों द्वारा गायी जाने वाली विरुदावली में एक उक्ति आती है कि वीर का मरण ही उसका श्रंगार है।ऐसा वीर चाहे स्त्री हो या पुरुष। हम्मीर के आत्मोसर्ग ने जो अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया ,उससे उसे अपूर्व लोक कीर्ति प्रदत्त की।ऐसी कीर्ति जो सदियों से भिन्न -भिन्न भाषाओं और बोलियों में अक्षुण्ण है।इस प्रकार रणथम्भोर के राव हम्मीर देव चौहान ने अपने पूर्वज पृथ्वीराज चौहान से जनमानस में अधिक लोकप्रयिता प्राप्त की।उन्होंने शरणागत को प्रश्रय देने की हमारी संस्कृति में प्राचीन भारतीय परम्परा का पूर्ण निर्वहन किया जो अनुकरणीय है।
संदर्भ-
- तारीख ए किला रणथम्भोर ,लेखक हीरानन्द कायस्थ ।
- हमीर महाकाव्य , लेखक
- राजस्थान का इतिहास , लेखक गोपीनाथ शर्मा।
- दि अर्ली चौहान डायनेस्टीज ,लेखक डा0 दशरथ शर्मा
- ऐतिहासिक स्थानवाली ।
- दिल्ली सल्तनत ,लेखक डा0 ए0 एल0 श्रीवास्तव ।
- श्रीगणेश यात्रा रणथम्भोर दुर्ग , लेखक गोवर्धन लाल वर्मा ।
- खलजी कालीन भारत , अनुवादक सैयद अतहर अब्बास रिजवी ।
- तारीखे फ़िरोजशाही (इलियट -डाउसन )।
- हमीर प्रबन्ध ,लेखक अमृत कैलाश।
- राजस्थान का इतिहास,लेखक वी0एस0 भार्गव ।
- सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध ,लेखक अशोककुमार सिंह ।
- हमीरायण ,लेखक डॉ0 दसरथ शर्मा ।
- रावर्ती-तवकाते नासिरी , जिल्द 1 ।
- वीरविनोद ,प्रथम खण्ड ,लेखक स्यामलदास ।
- शारदा-हमीर ऑफ रणथम्भोर ।
- राजस्थान के प्राचीन दुर्ग, लेखक डा0 मोहनलाल गुप्ता ।
- विश्व विरासत स्थल रणथम्भोर ,लेखक डा0 सूरज जैदी ।
- दुर्ग रणथम्भोर एवं उसका सुरभ्य अंचल ,लेखक गोकुलचन्द गोयल।
- ए हिस्ट्री ऑफ रणथम्भोर ,लेखक जावेद अनवर ।
- ऐतिहासिक किला रणथम्भोर , लेखक डा0 अर्चना तिवारी ।
- भारत के दुर्ग ,लेखक पंडित छोटे लाल शर्मा ।
- राजस्थान के प्रमुख दुर्ग , लेखक डा0 राघवेन्द्र सिंह मनोहर।
- रणथम्भोर -इतिहास के पृष्ठों पर ,लेखक आर0 एस0 राणावत ।
लेखक:- डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन
गांव:- लढोता, सासनी, जिला-हाथरस, उत्तरप्रदेश
प्राचार्य:- राजकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,सवाईमाधोपुर (राजस्थान) 322001
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