Deoband News: अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत में ‘हेयर फ़्लिपिंग डांस’- इस्लामिक संस्कृति पर एक गंभीर हमला। 

हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति के इस्तकबाल (स्वागत) के लिए नौजवान....

May 21, 2025 - 14:17
May 21, 2025 - 14:23
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Deoband News: अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत में ‘हेयर फ़्लिपिंग डांस’- इस्लामिक संस्कृति पर एक गंभीर हमला। 

देवबंद: हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति के इस्तकबाल (स्वागत) के लिए नौजवान लड़कियों द्वारा हेयर फ़्लिपिंग डांस किया जा रहा है। लेकिन अफ़सोसनाक बात यह है कि इसे कुछ माध्यमों से इस्लामिक कल्चर (इस्लामी संस्कृति) से जोड़ा जा रहा है।

यूएई चूंकि एक अरबी और मुस्लिम बहुल देश है, इसलिए इस दृश्य ने पूरी दुनिया के मुसलमानों में गहरी चिंता और नाराज़गी पैदा कर दी है। मुस्लिम रहनुमा, उलेमा और बुद्धिजीवी वर्ग ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे इस्लामी मूल्यों के खिलाफ एक गंभीर सांस्कृतिक विकृति करार दिया है।

इस्लाम ने महिलाओं को वह मुक़ाम अता किया है जो किसी भी और मज़हब या समाज में देखने को नहीं मिलता। महिला को माँ, बहन, बेटी और पत्नी के रूप में बेहद सम्मानजनक दरजा दिया गया है। शरीअत इस्लामिया यह हुक्म देती है कि महिला को पर्दे में रखा जाए न कि मंच पर लाकर उसकी अदाओं और हरकतों को तमाशा बनाया जाए।

मशहूर देवबन्दी उलेमा और जमीयत दावातुल मुस्लिमीन के संरक्षक मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने इस पूरी घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि नौजवान लड़कियों से ऐसे डांस करवाना और उसे इस्लामिक कल्चर का हिस्सा बताना न सिर्फ़ क़ाबिले अफ़सोस है, बल्कि क़ाबिले मज़म्मत भी है। यह इस्लाम की शरीअत और तहज़ीब से सरासर टकराव रखता है। इसका इस्लामी संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं। हम इस हरकत की सख़्त तौर पर निंदा करते हैं।

उन्होंने ये भी कहा कि “इस्लाम में औरत को एक कीमती मोती की तरह समझा गया है। जिस तरह किसी बेशकीमती चीज़ को ढाँककर और छुपाकर रखा जाता है, उसी तरह इस्लाम ने महिलाओं के लिए पर्दा और तहज़ीब का हुक्म दिया है। यह पर्दा कोई ज़ंजीर नहीं, बल्कि इज़्ज़त की चादर है।”

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इस्लामी तहज़ीब कोई शो-बिज़नेस नहीं है जिसे कैमरे की चमक और नाच-गानों से सजाकर पेश किया जाए। यह रब की तरफ़ से नाज़िल की गई एक पाकीज़ा और मुक़द्दस राह है, जो इंसान की ज़िंदगी को तजुर्बे, इख़लास, हया और रूहानी सफ़ाई से संवारती है। इस्लाम का मज़मून ‘प्रदर्शन’ नहीं,बल्कि पर्दा है। यूएई में इस तरह की हरकत और फिर उसे इस्लामी पहचान से जोड़ने की कोशिश,न केवल गुमराह करने वाली है, बल्कि एक सुनियोजित सांस्कृतिक हमला भी प्रतीत होती है जो इस्लामी क़ौमों को तहज़ीबी तौर पर कमज़ोर करने की साज़िश का हिस्सा हो सकती है।

मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने तमाम मुस्लिम हुक्मरानों, उलेमा और दीनी इदारों से अपील की है कि वे इस तरह की ग़लत बयानी और सांस्कृतिक विकृति के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज़ बुलंद करें। उन्होंने कहा कि “इस्लामी मुल्कों की हुकूमतों पर यह फ़र्ज़ है कि वे अपनी सरज़मीं पर ऐसे तमाम फितनों को रोकें जो इस्लामी अस्मिता और शरीअत की रूह के खिलाफ़ हैं। किसी भी ऐसी हरकत की तस्दीक़, जो उम्मत को गुमराही और फितने में डाले, न केवल बे-हिसी है बल्कि दीनी नाकामी भी है।

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