Sambhal News: एतिकाफ अल्लाह के करीब होने का बेहतरीन ज़रिया- मुफ़्ती रियाज उल हक कासमी
रमज़ान के आखिरी अशरा (दस दिन) को खास अहमियत का बताया, क्योंकि इसमें शबे-कद्र जैसी अज़ीम रात मौजूद होती है। इसे कुरआन में ....

उवैश दानिश, सम्भल
Sambhal News: रमज़ान मुबारक में एतिकाफ की फज़ीलत पर रोशनी डालते हुए जामा मस्ज़िद दरबार सरायतरीन के इमाम मौलाना मुफ्ती रियाज़ उल हक़ क़ासमी ने बताया कि एतिकाफ में मोताकिफ को 20 रमज़ान को सुरज छुपने से पहले मस्ज़िद में आना होता है। रमज़ान के आखिरी अशरा (दस दिन) को खास अहमियत का बताया, क्योंकि इसमें शबे-कद्र जैसी अज़ीम रात मौजूद होती है। इसे कुरआन में एक हज़ार महीनों से बेहतर बताया गया है।
रसूलुल्लाह सल्लाहो अलैहे वसल्लम रमज़ान के आखिरी अशरे में एतिकाफ का खास एहतिमाम फरमाया करते थे। एतिकाफ का मतलब ठहरने और रुकने से है। शरई इस्तिलाह में एतिकाफ का मतलब है कि मुसलमान इबादत की नियत से मस्ज़िद में कयाम करे और दुनियावी मामलों से अलग होकर सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए इबादत में मसरूफ हो जाए। जामा मस्ज़िद दरबार सरायतरीन के इमाम मौलाना मुफ्ती रियाज़ उल हक़ क़ासमी बताते हैं कि शुरुआत एतिकाफ आमतौर पर रमजान की 20 तारीख को मगरिब की नमाज के बाद शुरू होता है और ईदुल-फित्र की चांद नजर आने तक जारी रहता है।
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इस दौरान एतिकाफ करने वाले मस्ज़िद में इबादत, ज़िक्र-ओ-अज़कार, तिलावत-ए-कुरआन, नफ्ल नमाज़े और दुआओं में मसरूफ रहते है। मौलाना ने एतिकाफ के फायदे और रूहानी फलसफे बताते हुए कहा कि एतिकाफ कुरबत-ए-इलाही (अल्लाह के करीब होने) का बेहतरीन ज़रिया है।
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